क्या वाकई राष्ट्रपति-प्रधानमंत्री सिर्फ हिंदी में देंगे भाषण? जानिए पूरा सच
- अक्षय दुबे 'साथी'
हाल में यह खबर मीडिया में छायी रही कि अब राष्ट्रपति और प्रधानमंत्री अपने हर भाषण में हिंदी देते नजर आएंगे। जबकि यह अर्धसत्य से ज्यादा कुछ नहींं है। अर्धसत्य भी ऐसा कि हिंंदी का नुकसान ही पहुंचाए। तथ्य यह है कि सिफारिशों के अनुसार, राष्ट्रपति और मंत्रियों सहित सभी गणमान्य व्यक्तियों, खास कर हिंदी पढ़ने और बोलने में सक्षम लोगों से अनुरोध किया जा सकता है कि वे अपने भाषण या बयान हिंदी में दें। इसमें हिंदी को अनिवार्य करनेे जैसा कुछ भी नहीं है। सिफारिशों में अनुरोध करने की बात स्पष्ट रूप से कही गई है। यह अनुरोध भी सिर्फ उनसे किया जा सकता है जो हिंदी बोलने और पढ़ने में सक्षम हों।
संपूर्णता में देखा जाए तो ये सिफारिशें भी उन्हीं पूर्ववर्ती सिफारिशों की तरह है जो भारत की स्वतंत्रता के बाद समय-समय पर की जाती रही हैं। उदाहरण के तौर पर, संविधान के अनुच्छेद-351 के अनुसार हिंदी भाषा का प्रसार, वृद्धि करना और उसका विकास करना ताकि वह भारत की सामासिक संस्कृति के सब तत्वों की अभिव्यक्ति का माध्यम हो सके, संघ का कर्तव्य है। राजकाज की भाषा के रूप में लोकप्रिय बनाने की जिम्मेदारी केंद्र सरकार को सौंपी गई है। ऐसे में यह स्वाभाविक है कि राष्ट्रपति, प्रधानमंत्री और अन्य गणमान्य हिंदी में अपना बयान या भाषण दें। ऐसे में इस सिफारिश को हिंदी भाषण के नाम पर बढ़ा-चढ़ाकर पेश करना हिंदी को जबरन थोपने जैसा आभास देगा, जो हिंदी के साथ-साथ देश की एकता और राष्ट्रीयता की भावना काेे भी नुकसान पहुुुंचा सकता है। छत्तीसगढ़ में हिंदी के सहायक प्राध्यापक अमित सिंह परमार कहते हैं कि इस रिपोर्ट में ज्यादातर पुरानी बातों का दुहराव भर है। हिंदी सहित अन्य भारतीय भाषाओं को लेकर सिफारिशों की नहीं बल्कि अमल करनेे की जरूरत है।
बता दें कि पी. चिदबंरम की अध्यक्षता वाली इस समिति ने हिंदी को लोकप्रिय बनाने के तरीकों पर 6 साल पहले कुल 117 सिफारिशें की थी। इनमें से सिर्फ भाषण वाली बात को महत्व देना, कई प्रमुख सिफारिशों से ध्यान हटा सकता है। संसदीय समिति ने सीबीएसई और केंद्रीय विद्यालय स्कू लों में कक्षा आठ से 10 तक हिंदी को अनिवार्य विषय करने की भी सिफारिश की थी। एयरलाइंस में यात्रियों के लिए हिंदी अखबार और मैगजीन उपलब्ध कराने की बात कही गई है। लेकिन यह सुझाव केवल सरकारी हिस्सेदारी वाली एयरलाइंस के लिए है। प्राइवेट कंपनियों में बातचीत के लिए हिंदी को अनिवार्य करने की सिफारिश को ठुकरा दिया गया है।