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26 November 2020

बेकार और अप्रासंगिक कानूनों का समापन जरूरी

26 नवंबर का दिन भारत के लिए काफी महत्वपूर्ण है। वर्ष 1949 में आज ही के दिन संविधान सभा ने देश के संविधान को स्वीकृत किया था। दो महीने बाद 26 जनवरी 1950 से यह पूरे देश में लागू हो गया। इस दिन की महत्ता को देखते हुए सुप्रीम कोर्ट बार एसोसिएशन ने वर्ष 1979 से इसे राष्ट्रीय कानून दिवस के रूप में मनाने की शुरुआत की। वर्ष 2015 में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने गजट नोटिफिकेशन के द्वारा इस दिन को संविधान दिवस के रूप में मनाए जाने की पहल की।

इससे पहले 2014 के आम चुनावों के दौरान उन्होंने अपनी जन सभाओं में कानून की किताब से पुराने और बेकार हो चुके कानूनों को समाप्त किए जाने की जरूरत को काफी प्रमुखता दी थी। मोदी यह अच्छी तरह जानते हैं कि नए कानून बन जाने के बावजूद पुराने कानूनों के दुरुपयोग किए जाने की संभावना हमेशा बनी रहती है। अपने पहले कार्यकाल में उन्होंने लगभग 2000 ऐसे कानूनों को समाप्त किया जो अब प्रचलन में नहीं रह गए थे।

लेकिन तमाम ऐसे क़ानून जो आज के समय में अत्यंत अप्रासंगिक हो चुके हैं, विधि की किताब में आज भी मौजूद हैं। कई ऐसे क़ानून जो समय के साथ बदलने या खत्म हो जाने चाहिए थे, आज भी पुराने प्रारुप में ही लागू हैं। इसके अतिरिक्त जरूरत के अनुसार कई विषयों के संदर्भ में नए कानून भी बन गए लेकिन संबंधित पुराने कानून समाप्त नहीं किए गए।

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आश्चर्य की बात यह है कि कई राज्यों की सरकारों को भी नहीं पता कि ऐसे कानून अस्तित्व में हैं और उनके राज्य में लागू होते हैं। उदाहरण के लिए पंजाब विलेज एंड स्मॉल टाऊंस पेट्रोल एक्ट 1918 जो कि दिल्ली में भी लागू होता है। इस कानून के मुताबिक यहां के गांवों और कस्बों में स्थानीय व्यस्क पुरूषों को रात में बारी बारी पेट्रोलिंग करना आवश्यक है। ऐसा न करने पर जुर्माने का भी प्रावधान है। द मद्रास लाइव स्टॉक इम्प्रूवमेट एक्ट 1940 के मुताबिक गाय का बछड़ा आगे चलकर बैल बनेगा अथवा सांड यह तय करने का अधिकार पशुपालक को नहीं बल्कि सरकार को है। सरकार द्वारा जारी लाइसेंस के अनुसार ही पशुपालक बछड़े को सांड या बैल के तौर पर अपने पास रख सकता है। सन 1916 में लागू एक ऐसा ही कानून है पंजाब मिलिट्री ट्रांसपोर्ट एक्ट। इस एक्ट के तहत सेना को यह अधिकार है कि वह परिवहन के लिए राज्य के नागरिकों के जानवर, वाहन, नाव आदि वस्तुओं को जबरन कब्जे में ले सके। मद्रास गिफ्ट गुड्स एक्ट 1961 के मुताबिक किसी व्यक्ति के पास वनस्पति तेल व दूध पाउडर की निर्धारित मात्रा से अधिक मात्रा पाए जाने पर उसके खिलाफ कार्रवाई का प्रावधान है।

किसी जनजाति विशेष के सभी लोगों को अपराधी मानते हुए उनके अधिकारों को सीमित करने वाला हैबिचुअल ऑफेंडर्स एक्ट हो या तांबे के पतले तारों को घर में रखने को अवैध मानने वाले द टेलीग्राफ एक्ट। ऐसे तमाम उदाहरण हैं जो या तो अब प्रयोग में नहीं हैं अथवा नए कानूनों के तहत उनकी विस्तृत व्याख्या की जा चुकी है। इसके बावजूद ऐसे कानून विधि की किताबों में जगह घेरे बैठे हैं। जिसका फायदा अगर कोई संबंधित अधिकारी गलत ढंग से उठाना चाहे तो उठा सकता है।

समय समय पर सरकारों द्वारा ऐसे कानूनों के समापन को लेकर कदम उठाए भी गए हैं। ऐसे कानूनों के खात्में की गंभीर शुरूआत वर्ष 2001 की भाजपा नीत एनडीए सरकार के दौरान देखने को मिली थी जिसे बाद में यूपीए एक व दो ने भी जारी रखा था। लेकिन इस विषय को आम जन के बीच ले जाने, विशेषज्ञों व नागरिक संगठनों के बीच बहस और शोध का मुद्दा बनाने का श्रेय वर्तमान प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को ही जाता है।

चूँकि देश में गैर-जरुरी कानूनों का मकड़जाल बेहद उलझा हुआ है लिहाजा एकबार में सबको समाप्त करना बेहद मुश्किल काम है। इसलिए यह जरूरी है कि वर्ष में कम से कम एक दिन विशेष रूप से निर्धारित हो जिस दिन कानून के निर्माता (कार्य पालिका), उसके संरक्षक (न्याय पालिका) व अनुपालन (व्यवस्थापिका) के जिम्मेदार लोग एक साथ बैठें और अप्रासंगिक एवं बेकार पड़े कानूनों के समापन के लिए कार्य करें। इस कार्य के लिये संविधान दिवस से बेहतर दिन कोई और नहीं हो सकता है। थिंकटैंक सेंटर फ़ॉर सिविल सोसायटी द्वारा 26 नवम्बर अर्थात संविधान दिवस को ‘नेशनल रिपील लॉ डे’ के तौर पर मनाने के लिये कई वर्षों से अभियान चलाया जा रहा है जिससे देश के प्रतिष्ठित कानूनविदों और संविधान विशेषज्ञों का समर्थन प्राप्त है।

पुराने और बेकार कानूनों को खत्म करने का एक तरीका कानून बनाते समय उसके लागू रहने की समयावधि तय करने की भी है जिसे कानूनी भाषा में सनसेट क्लॉज के नाम से जाना जाता है। इस प्रावधान के तहत कानून बनने के एक निश्चित समय सीमा के बाद वह निष्प्रभावी हो जाता है। यदि सरकार को लगता है कि उक्त कानून की प्रासंगिकता बरकरार है तो वह उसे संसद में एक्सटेंड कर सकती है।

(लेखक थिंकटैंक सेंटर फॉर सिविल सोसायटी में एसोसिएट डायरेक्टर हैं।)

 

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TAGS: संविधान की सुचिता, संविधान, अप्रासंगिक कानून, अविनाश चंद्र, Constitution, useless and irrelevant laws, Avinash Chandra
OUTLOOK 26 November, 2020
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