बैंकों में बढ़ती आत्महत्याएं
आजकल बैंकों में काम के दबाव के कारण कर्मचारियों द्वारा आत्महत्याओं की घटनाओं में बढ़ोतरी हो रही है। आये दिन किसी न किसी राज्य में बैंक के कर्मचारी/अधिकारी द्वारा आत्महत्या की खबर आ जाती है। सबसे ज्यादा दुर्भाग्यपूर्ण यह है कि ज्यादातर आत्महत्या करने वाले युवा बैंकर्स हैं। एक महीने में ही बैंक कर्मचारियों द्वारा आत्महत्याओं के तीन कैस सामने आये हैं। पहले चंडीगढ़ के एक चीफ मनेजेर, फिर केरल के एक ब्रांच मनेजेर और 4 दिन पहले पंजाब के एक सीनियर मनेजेर द्वारा आत्महत्या की खबर है। बैंकिंग इंडस्ट्री में पिछले चार वर्षों में 100 से ज्यादा बैंकर्स ने आत्महत्या की है। बैंकिंग इंडस्ट्री के लिए इस तरह आत्म्हात्याओं का बढना बहुत ही दुर्भाग्यपूर्ण और डराने वाला है।
आत्महत्या के कई कारण हो सकते हैं जैसे परिवारिक या बैंक से सम्बन्धित। बैंक से सम्बंधित कारणों में काम का दबाव, उच्च प्रबंधन द्वारा उत्पीडन, उच्च प्रबंधन द्वारा गलत लोन को देने के लिए दबाव, थर्ड पार्टी प्रोडक्ट्स के टारगेट का दबाव और किसी गलत लोन देने के बाद रिकवरी न होना और गलत लोन के कारण बाद सी.वी.सी. और सी.आई.डी जेसी संस्थाओं से कार्यवाही का खतरा हो सकते हैं। कुछ कर्मचारी अधिकारी इन सब कारणों में भी दबाव में नहीं आते लेकिन कुछ संवेदनशील कर्मचारी अधिकारी इन परिस्थितियों का सामना नहीं कर सकते और आत्महत्या कर लेते हैं। जिस संस्था में प्रबंधन और कर्मचारियों के बीच अच्छा तालमेल होता है वो संस्था ज्यादा प्रगति करती है। बैंकों में आज एच. आर. विंग ( मानव संसाधन विंग) तो हैं लेकिन ह्यूमन रिलेशन और मानवता जैसी कोई चीज नहीं है। बैंकों की प्रगति के लिये यह अच्छा नहीं है।
आज इस वातावरण से निबटने के लिये बैंक प्रबंधन, बैंक यूनियनस और कर्मचारियों, अधिकारियों को सोचना होगा। बैंक प्रबंधन कर्मचारियों, अधिकारियों को सिर्फ कर्मचारी, अधिकारी न समझें। कर्मचारी और अधिकारी बैंकों की ह्यूमन कैपिटल हैं। बैंकों में ट्रेनिंग के दौरान इस विषय पर चर्चा होनी चाहिए और इससे निजात पाने के रास्ते तलाशने की जरूरत है। मनोचिकित्सक द्वारा भी ट्रेनिंग के दोरान दबाव को कम करने के लिए परामर्श देने की जरूरत है। उच्च बैंक प्रबंधन द्वारा भी अपने जूनियर्स के साथ उचित और दोस्ताना व्यवहार बरतने की जरूरत है। यूनियंस को भी अपनी जिम्मेदारी समझते हुए समय समय पर होने वाली अपनी मीटिंग्स में इस विषय पर चर्चा करके अपने सदस्यों को शिक्षित करने की जरूरत है। जब कभी भी लगता है कि कोई कर्मचारी/अधिकारी दबाव में है तो उसकी उचित काउंसलिंग की जानी चाहिए। सरकार को भी इस तरफ ध्यान देने की जरूरत है। बैंकों में काम के लिए दबावमुक्त वातावरण बनाने, उच्च प्रबंधन द्वारा जूनियर्स के साथ उचित व्यवहार करने जैसे विषयों पर एक कमेटी बनाकर इन कारणों को जानने और उनको ठीक करने की जरूरत है।
(लेखक नेशनल ऑर्गेनाईजेशन ऑफ़ बैंक वर्कर्स के पूर्व महासचिव हैं। लेख में व्यक्त विचार निजी हैं)