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28 August 2015

छोटे कद का वह बड़ा आदमी | कुलदीप नैयर

आउटलुक

लाल बहादुर शास्त्री ने प्रधानमंत्री के तौर पर जब नेहरू जैसी बड़ी शख्सियत की जगह ली तो अक्सर उनके छोटे कद के कारण उन्हें हंसी का पात्र बनाया जाता। लेकिन जिस दिन उन्होंने भारतीय सेना को अंतरराष्ट्रीय सीमा को लांघने का आदेश दिया, उस दिन सबकुछ बदल गया। रावलपिंडी की ओर से (पाकिस्तानी सेना का मुख्यालय वहीं था) जम्मू-अख्नूर सेक्टर में एक बड़ा हमला बोल दिया गया। इसके जवाब में भारतीय सेना ने अमृतसर, फिरोजपुर और गुरुदासपुर से और कुछ दिनों बाद सियालकोट सेक्टर से कई हमले किए। शास्त्री ने तत्कालीन सेनाध्यक्ष जनरल चौधरी से कहा था, 'मैं उनके कश्मीर में दाखिल होने से पहले लाहौर पहुंचना चाहता हूं'।           

यह छोटे कद के आदमी का सबसे बड़ा फैसला साबित हुआ। विश्व राजनीति के सही-गलत को समझने वाले नेहरू भी कभी अंतरराष्ट्रीय सीमा न लांघते। शास्त्री नायक बन गए और देश उनके नेतृत्व में संगठित हुआ। 22 दिनों के युद्ध के दौरान चूंकि ज्यादातर संसाधनों का उपयोग युद्ध के काम में किया जा रहा था इसलिए शास्त्री ने दिल्ली की ट्रैफिक को नियंत्रित करने में आरएसएस कार्यकर्ताओं का उपयोग किया। इससे मुसलमानों में गलत संदेश गया जो असुरक्षित महसूस करने लगे। युद्ध ने इस विचार को पुनर्स्थापित किया कि कश्मीर एक विवादित क्षेत्र नहीं है बल्कि भारत का एक अभिन्न अंग है। 

शुरू में हर समझदार आदमी की तरह शास्त्री भी युद्ध के पक्ष में नहीं थे। कश्मीर में पाकिस्तान की घुसपैठ के खिलाफ विदेशी राय जुटाने के उन्होंने राजनयिक प्रयासों को तेज कर दिया था। शास्त्री के आग्रह पर वाशिंगटन ने एक दल भेजा और पाया कि रण क्षेत्र (गुजरात) में पाकिस्तानी सेना अमेरिका के दिए हथियारों से लैस है। अगर अमेरिका ने पाकिस्तान को उन हथियारों का इस्तेमाल करने से रोक दिया होता तो शायद उस युद्ध से बचा जा सकता था। तब के सोवियत प्रमुख एलेक्जी कोसिजीन ने भी भारत का समर्थन नहीं किया था। उसने दोनों युद्दरत देशों पर अमेरिकी उपनिवेशवाद के हांथों में खेलने का आरोप लगाया। 

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प्रधानमंत्री कार्यालय वार रूम में तब्‍दील कर दिया गया था। पूरी कमान शास्त्री के हाथ में थी। समूचा राजनीतिक जगत, यहां तक कि मोरारजी देसाई भी उनके समर्थन में आ गए थे। भारतीय सेना मानती है कि युद्ध उन्होंने जीता, जबकि पाकिस्तान दावा करता है कि वे युद्ध नहीं हारे। जनरल चौधरी मानते हैं कि पाकिस्तान के क्षेत्र में भारतीय सेना का अभियान बहुत धीमा था क्योंकि इसका मकसद केवल बख्तरों को नष्ट करना था न कि क्षेत्र पर कब्जा करना।

युद्ध के बाद सोवियत प्रमुख कोसजीन दोनों पक्षों को शांति के लिए ताशकंद में वार्ता की मेज पर लेकर आए। उससे पहले शास्त्री ने केंद्रीय वित्त मंत्री टीटी कृष्णामाचारी को बर्खास्त कर दिया था। उन्होंने इंदिरा गांधी के साथ मिलकर कैबिनेट के भीतर शास्त्री के विरूद्ध एक संयुक्त मोर्चा बना लिया था। शास्त्री ने मुझे बताया था कि नेहरू इंदिरा गांधी को अपना उत्‍तराधिकारी बनाना चाहते थे।शास्त्री के जय जवान, जय किसान के नारे ने देशवासियों की सोच काे छू लिया था। इंदिरा गांधी के बहुत करीब रहे एक वरिष्ठ कांग्रेस नेता दिनेश सिंह ने मुझे बताया था कि इंदिरा इंग्लैंड में बस जाने तक की बात सोचने लगी थीं।

लेकिन भाग्य को और कुछ और ही मंजूर था। ताशकंद समझौते पर हस्ताक्षर होने के कुछ ही घंटों के अंदर रहस्यमय परिस्थितियों में शास्त्री की मौत हो गई। उनके परिवार का मानना है कि उन्हें जहर दिया गया था। अब मैं भी यही महसूस करता हूं कि वह एक षड़यंत्र था। उनकी लाश का कोई पोस्टमॉर्टम नहीं हुआ। तब के विदेश सचिव टीएन कौल ने मुझसे यह बयान जारी करने का आग्रह किया था कि शास्त्री की मौत दिल का दौरा पड़ने की वजह से हुई। यह रहस्य इसलिए भी हो गया क्योंकि विदेश मंत्रालय ने शास्त्री की मौत से संबंधित कागजात देने से भी इंकार कर दिया था।

एक बार जब मैं शास्त्री से मिला था। तब वह पार्टी में काम करने के लिए नेहरू कैबिनेट छोड़ चुके थे। उनके कमरे के अलावा उनके बंगले की सारी बत्तियां बुझी हुई थीं। उन्होंने मुझसे बताया कि वह बिजली का बिल भरने में असमर्थ हैं। उन्होंने मुझे अपने साथ दाल-चावल और रोटी खाने के लिए बुलाया। शास्त्री एक साधारण आदमी जरूर थे लेकिन वह फैसले लेने में सक्षम एक तेजतर्रार और काबिल राजनेता थे।

 

(जैसा मिहिर श्रीवास्तव को बताया। मूल लेख OUTLOOK पत्रिका के 25 मई, 2015 अंक में प्रकाशित। http://www.outlookindia.com/article/a-long-shadow/294326)

 

 

 

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TAGS: लाल बहादुर शास्त्री, जवाहर लाल नेहरू, इंदिरा गांधी, पाकिस्तान, युद्ध, 1965, भारतीय सेना, अंतरराष्ट्रीय सीमा, Lal Bahadur Shastri, Jawahar Lal Nehru, Indira Gandhi, Pakistan, War, 1965, Indian Army, International Border
OUTLOOK 28 August, 2015
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