महादलित नेता मांझी की एनडीए में वापसी: चुनावी माहौल में नीतीश को मिली बड़ी बढ़त
जैसा कि कहते हैं 'राजनीति में कोई स्थायी दोस्त या दुश्मन नहीं होते।'
राजद के नेतृत्व वाले महागठबंधन में शामिल होने के पांच साल बाद, बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री जीतन राम मांझी राज्य में विधानसभा चुनावों से पहले राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (राजग) में लौट रहे हैं। वह औपचारिक रूप से नीतीश कुमार के नेतृत्व वाले एनडीए में 3 सितंबर को वापस आएंगे। उन्होंने पिछले महीने महागठबंधन छोड़ दिया था।
75 वर्षीय नेता की वापसी को एनडीए के लिए एक बड़ी बढ़त मानी जा रही है। क्योंकि वे महादलित समुदाय के एक दिग्गज नेता माने जाते हैं। महादलित समुदाय का राज्य में लगभग 15 प्रतिशत वोट है। वहीं लोक जनशक्ति पार्टी के अध्यक्ष और केंद्रीय मंत्री रामविलास पासवान के बेटे चिराग पासवान जो अपनी राजनीतिक जमीन को मजबूत कर रहे हैं वे सुशांत सिंह राजपूत की हाल के महीनों में हुई सीबीआई जांच की सिफारिश में राज्य सरकार द्वारा देरी सहित कई मुद्दों पर नीतीश पर निशाना साध रहे हैं। लिहाजा विद्रोही रुख को बेअसर करने के लिए नीतीश की ओर से यह एक सोची समझी रणनीति मानी जा रही है।
कमोबेश यह महादलित नेता श्याम रजक के बाहर निकलने के बाद जेडी-यू के नुकसान की भरपाई करता है। नीतीश सरकार में कैबिनेट मंत्री रहे पांच बार के विधायक रजक ने हाल ही में इस्तीफा दे दिया और राजद में शामिल हो गए। राज्य में लगातार चुनावों में महादलित वोट महत्वपूर्ण रहे हैं और हर पार्टी हर चुनाव में समुदाय से लोकप्रिय नेताओं को लुभाने की कोशिश करती है।
जीतन राम मांझी 2014 के लोकसभा चुनाव में जदयू के खराब प्रदर्शन के बाद नीतीश कुमार द्वारा दिए गए त्यागपत्र के कारण मुख्यमंत्री बने थे। हालांकि मांझी ने नीतीश के रबर स्टैंप बनने को खारिज कर दिया, उन्होंने मई 2014 में शपथ ली और शुरुआत में अपने नेता के निर्देशों का पालन करने की कसम खाई। लेकिन उन्होंने जल्द ही खुद को मुखर करना शुरू कर दिया, जिसमें कई फैसले हुए जिन्होंने नीतीश और उनकी पार्टी दोनों को परेशान किया।
आठ महीने बाद फरवरी 2015 में जेडी-यू नेतृत्व ने आखिरकार उन्हें नीतीश के लिए रास्ता बनाने के लिए इस्तीफा देने के लिए कहा लेकिन उन्होंने इनकार कर दिया। नतीजतन राजनीतिक उथल-पुथल के बीच, राज्यपाल ने उन्हें सदन में बहुमत साबित करने के लिए कहा, लेकिन भाजपा के समर्थन के बावजूद वे पर्याप्त संख्या में नहीं जुट सके। अंत में, उन्होंने मुख्यमंत्री की कुर्सी पर नीतीश के लौटने का मार्ग प्रशस्त किया।
मांझी ने तब अपनी पार्टी हिंदुस्तानी आवाम मोर्चा (सेक्युलर) की स्थापना की और एनडीए में शामिल हो गए। हालाँकि, बाद में वे महागठबंधन में लालू प्रसाद के साथ आ गए।
हालांकि अब एक तरफ जहां जद-यू के नेताओं ने मांझी की घर वापसी का स्वागत किया है, वहीं राजद ने उन पर निशाना साधा है, उन्हें अवसरवादी कहा है। पार्टी के प्रवक्ता मृत्युंजय तिवारी का कहना है कि मांझी अतीत में जेडी-यू द्वारा उनसे मिले अपमानजनक व्यवहार को भूल गए। उनका कहना है कि मांझी एक बार फिर अपमानित होंगे और एनडीए छोड़ देंगे।