अगस्ता प्रकरणः पैसा हर सौदे में शामिल
लेकिन महत्वपूर्ण बात यह है कि रक्षा सौदों का राजनीतीकरण नहीं किया जाना चाहिए। क्योंकि जिस तरीके से इसकी खरीद की प्रक्रिया है उसको लेकर सभी दलों के भीतर आम सहमति होनी चाहिए। क्योंकि यह देश की सुरक्षा से जुड़ा हुआ मसला है। आज अगर कोई सौदा होता है तो उसकी प्रक्रिया पूरी होने में आठ से दस साल लग जाते हैं।
ऐसे में जरूरी यह नहीं है कि जिस सरकार ने सौदा किया उसकी सत्ता बरकरार रहे। जो दूसरी सरकार आएगी अगर उसको लगता है कि खरीद में कुछ कमी पाई गई है तो उसकी प्रक्रिया की जांच करा ले या फिर कोई संसदीय समिति बनाकर सौदे पर नजर रखी जाए। लेकिन दुख का विषय यह है कि इसका राजनीतीकरण हो गया है। क्योंकि इस तरह के हंगामे से सबसे बड़ा नुकसान आपकी सुरक्षा को लेकर पड़ता है।
कारगिल युद्ध के समय कुछ घोटाले सामने आए। मेरा साफ तौर पर मानना है कि अगर आप देश की सुरक्षा को लेकर इस तरह की राजनीति करोगे तो दूसरे को आंख दिखाने का मौका मिलेगा। आज हमारी रक्षा खरीद की जो नीति है उसको लेकर बहस नहीं हो रही है बल्कि बहस यह हो रही है कि किसने कितना पैसा खाया। जिस तरह बोफोर्स घोटाले के समय में हंगामा मचा था, उसी तरह का हंगामा आज भी मचता नजर आ रहा है। बोफोर्स के हंगामे का असर यह रहा कि लंबे समय तक देश में तोप खरीदी नहीं जा सकी। संसद में बहस हो रही है।
कौन सी कंपनी को ब्लैकलिस्ट किया गया है इसको लेकर चर्चा हो रही है। कंपनी को ब्लैकलिस्ट कर देने से अगर रास्ता निकल जाए तो करना चाहिए। लेकिन मेरा मानना है कि कंपनी पर जुर्माना लगाया जाना चाहिए। अगर जुर्माना लगाया तो दूसरी कंपनियां इससे डरेंगी। क्योंकि आज जिस तरह के बयान आ रहे हैं उससे हमारी चिताएं बढ़ गई हैं कि कैसे हम सेना को मजबूत कर पाएंगे। सैन्य बल के मामले को राजनीतिक अखाड़ा न बनाया जाए क्योंकि इससे सेना के लोगों का मनोबल भी कम होता है। इस तरह के सौदों के लिए ऐसी प्रक्रिया बनाई जानी चाहिए जिसका कि सभी दलों का समर्थन प्राप्त हो। लेकिन दुख की बात यह है कि राजनीतिक दल अपने सियासी फायदे के लिए किसी भी हद तक जाने के लिए तैयार दिख रहे हैं।
(अशोक मेहता रिटायर्ड मेजर जनरल हैं)