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19 May 2015

मंगोलिया में मोदी कूटनीति की घुड़-परीक्षा

नरेंद्र मोदी की यात्रा के दौरान भारत ने मंगोलिया में चीन के साथ उसी तरह का कुछ किया जैसा चीन ने भारत के साथ श्रीलंका में महेंद्र राजपक्ष के शासन काल में किया था। यानी श्रीलंका में चीन ने बंदरगाह विकास की परियोजना लेकर जैसे भारत के पैताने अपनी सामरिक उपस्थिति की जोरदार दस्तक दी थी वैसे ही भारत ने मंगोलिया में साइबर सुरक्षा केंद्र खोलने की परियोजना लेकर चीन के सिरहाने अपनी सामरिक उपस्थिति दर्ज करा दी है। साइबर युद्ध और साइबर सुरक्षा चीन की सामरिक चिंताओं में बहुत महत्व रखती है। इसलिए साइबर सुरक्षा उसके लिए अत्यधिक संवेदनशील मसला है। चीन की इसी संवेदनशील रग पर भारत ने मंगोलिया में उंगली रखी है। ठीक चीन के पिछवाड़े भारत की यह सामरिक दस्तक एक महत्वपूर्ण कूटनीतिक संकेत है।

 

चीन साइबर सुरक्षा के प्रति इतना संवेदनशील है कि उसने पश्चिमी प्रभुत्व वाले अंतरराष्ट्रीय सोशल मीडिया नेटवर्कों और सर्च इंजनों, यानी गूगल, फेसबुक आदि, से अलग अपना नेटवर्किंग संजाल विकसित किया है। ऐसी ही एक चीनी साइट पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अपना अकाउंट अकारण ही नही खोला। दरअसल, चीन एक प्राचीन सभ्यता है जो कूटनीति के ऐसे कूट संकेत परखने और समझने का आदी रहा है। मोदी की विदेश यात्राओं और राजनयिक पहलों के दौरान उनके मीडिया सलाहकारों के तमाम सतही छवि निर्माता बिंब संप्रेषणों के बावजूद यदि विदेश न‌ीति के मामले में भारतीय प्रधानमंत्री और उनके विदेश न‌ीति सलाहकारों का कोई श्रेय बनता है तो देना चाहिए। इसलिए इस अ‌हम मंगोलियाई उपकथा के लिए हमें मोदी सरकार की विदेश नीति को श्रेय देने से कोई परहेज नहीं है, हालांकि विदेशों में प्रवासी भारतीयाें की एकत्रित भीड़ के सामने अतिशयोक्तिपूर्ण आत्म प्रचार के सस्ते, सतही, तामझाम वाले चकाचक संदेशों को देशी मीडिया के जरिये भारतीय श्रोता समूहों और मतदाताओं के वास्ते परोसना हमें आडंबर और अतिरेक लगता है। 

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नरेंद्र मोदी की कूटनीतिक मंगोलियाई उपकथा को पड़ाेसी चीनी नीति निर्माता और सामरिक विशेषज्ञ भी गौर से पढ़ रहे होंगे। इसमें सबकुछ शामिल होगा जैसे कार्यक्रम और समारोह प्रबंधन, दैहिक भाषा, हावभाव, भंगिमा-मुद्राएं आदि। उन्होंने घोषणाएं, भाषण, वक्तव्य तथा विज्ञप्तियां ध्यान से पढ़ी-सुनी हाेंगी। रंगारंग कार्यक्रमों और मोदी के रंगारंग परिधानों पर भी गाैर किया होगा। मोदी का तीर धनुष संभालना तथा पारंपरिक मंगो‌िलयाई वाद्य ‘मोरिन खूर’ बजाना भी उनकी बारीक निगाहों और विश्लेषणों से गुजरा होगा। इस सब में एक चीज चीनियों को बहुत मजेदार लगी होगी।

 

मंगालियाई मेजबानों ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को घुड़दौड़ का एक घोड़ा भेंट में दिया। उन्होंने मोदी को उस घोड़े की सवारी के लिए आमंत्रित भी किया। लेकिन मोदी ने घोड़े पर चढ़ने से इनकार कर दिया। चीनी पर्यवेक्षकों ने इस घटना के बारे में भला क्या विश्लेषित किया होगा? कितने सवाल उनके मन में कौंधे होंगे?

 

मसलन, क्या भारतीय प्रधानमंत्री के साथ यात्रा में चल रहे राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजीत डोभाल के मातहतों ने सुरक्षा कारणों से मोदी को घोड़ा चढ़ने से तो नहीं रोक दिया? मंगोलिया के घोड़े अपनी ताकत और तेजी के लिए विश्व विख्यात हैं। बिगड़ जाने पर वे सवार को पटक भी सकते हैं जिससे सवार की जान भी जा सकती है या वह गंभीर रूप से घायल भी हो सकता है। सवार के चढ़ते ही कोई घोड़े को भड़का दे तो? क्या भारतीय प्रधानमंत्री को घोड़ा चढ़ने से रोकने में कहीं उनके मीडिया सलाहकारों की भूमिका भी तो नहीं थी? मान लो घोड़े की पटखनी से आप हताहत न भी हों तो भी घोड़े से गिरना अ‌थवा उसे साध पाने में असफल होने पर उसकी पीठ पर डगमगाना या संतुलन खो देना टेलीविजन पर भला अच्छा लगेगा? कहीं मोदी के छवि प्रबंधकों को यह तो नहीं लगा कि घुड़सवारी में असहजता, असंतुलन या घोड़े की पीठ से गिर जाना प्रधानमंत्री की '56 (इंच) नी छाती' वाली, सावधानीपूर्वक गढ़ी गई शक्तिशाली मर्द की छवि कुछ धूसरित तो नहीं हो जाएगी? क्या चीनियों को यह भी नहीं लगा होगा कि मोदी उतना भर ही जोखिम तो नहीं लेते जो बिल्कुल सुरक्षित और आरामदेह हो? क्या इसे ही मोदी के व्यक्तित्व की झलक के लिए एक महत्वपूर्ण खिड़की मानकर चीनी न‌ीति निर्माता उनसे विदेश नीति व्यवहार निर्धारित करेंगे? याद कीजिए चाढ़े चार दशक से ज्‍यादा पहले के वे दिन जब लंबी सार्वजनिक सदृश्‍यता के दौरान पश्चिम में माओ की बीमारी के बारे में चर्चाएं चली थीं जिनका खंडन माओ ने यांगत्‍सी नदी तैर कर पार करने की तस्‍वीरों से किया था। 

 

अब इन बातों काे ध्यान में रखने का दायित्व प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और उनके विदेश नीति सलाहाकारों के ऊपर है। मोदी सरकार चीनी ‌नीति निर्माताओं के लिए जो भी संदेश देना चाहती है और उनके आकलनों को अपने अनुकूल ढालना चाहती है तो उसके अनुरूप ही उसे अपनी राजनयिक कूट भाषा विकसित करनी होगी। 

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TAGS: नरेंद्र मोदी, मंगोलिया यात्रा, चीन यात्रा, कूटनीति, अंतरराष्‍ट्रीय संबंध, Narendra Modi, Mongolia Visit, Modi Diplomacy, International relations, Neelabh Mishra Column
OUTLOOK 19 May, 2015
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