नजरिया/ अग्निपथ: आशंकाएं तो दूर करें
“केंद्र को सोचना होगा कि उसकी कथित महत्वपूर्ण योजनाओं का इतना विरोध क्यों होता है”
सरकार ने सेना में भर्ती के लिए ‘अग्निपथ’ योजना का ऐलान किया है। योजना के अंतर्गत युवाओं को चार साल के लिए भर्ती किया जाएगा और उन्हें अग्निवीर कहा जाएगा। छह महीने के प्रशिक्षण और साढ़े तीन साल की सेवा के बाद उनमें से जो युवा (25 प्रतिशत तक) श्रेष्ठ होंगे, उन्हें सेना में स्थायी रूप से ले लिया जाएगा। शेष 75 प्रतिशत को 11.7 लाख रुपये की सेवा निधि मिलेगी और, सरकारी घोषणाओं के अनुसार, केंद्रीय पुलिस बल, राज्य पुलिस बल, कोस्ट गार्ड और पब्लिक सेक्टर प्रतिष्ठानों वगैरह में भर्ती में वरीयता दी जाएगी। केंद्रीय अर्धसैनिक बलों में 10 प्रतिशत पदों के आरक्षित किए जाने की भी घोषणा की गई है। युवा अपनी पसंद की कोई नौकरी या व्यापार भी कर सकते हैं। योजना को लेकर कई प्रदेशों में हिंसात्मक विरोध की घटनाएं हो रही हैं। रेलवे संपत्ति का विशेष तौर से नुकसान किया जा रहा है। पुलिस पर भी यदा-कदा हमले हुए हैं। घटनाएं मुख्य रूप से बिहार, उत्तर प्रदेश, पंजाब, हरियाणा तेलंगाना, पश्चिम बंगाल और राजस्थान में हुई हैं।
युवाओं में आक्रोश के तीन मुख्य कारण हैं। एक तो यह कि योजना में केवल 17.6 से 21 वर्ष तक के युवाओं की भर्ती का प्रावधान है। कोरोना के कारण दो साल से भर्तियां नहीं हुईं, इसलिए बहुत-से युवाओं की उम्र बढ़ गई। उन्हें लगा कि फौज में भर्ती का दरवाजा उनके लिए बंद हो गया है। सरकार ने उनकी दिक्कत को देखते हुए इस वर्ष आयु सीमा में दो साल की छूट दे दी है और अब 23 वर्ष तक के युवा इस योजना के अंतर्गत नौकरी के लिए आवेदन दे सकते हैं। दूसरा कारण यह है कि चार साल के बाद जो युवा छंट जाएंगे, उनके भविष्य के बारे में कोई गारंटी नहीं है, केवल आश्वासन है। तीसरा कारण यह है कि अग्निपथ योजना में 75 प्रतिशत युवाओं के लिए सेवाकाल का समय अल्प है और पेंशन का कोई प्रावधान नहीं है। योजना के ‘नो रैंक,नो पेंशन’ पहलू की गंभीर आलोचना हो रही है।
सरकार का कहना है- और इसमें काफी दम है- कि दुनिया में अब लड़ाई का स्वरूप बदल रहा है। जनशक्ति से ज्यादा आधुनिक हथियार और वैज्ञानिक उपकरणों की आवश्यकता है। वास्तविक लड़ाई के पहले साइबर युद्ध शुरू हो जाता है, जिसके जरिए एक देश दूसरे देश की संचार और अन्य व्यवस्था को ध्वस्त करने की कोशिश करता है। लड़ाई के दौरान अब ड्रोन बहुत प्रभावी साबित हो रहे हैं। अजरबैजान और अर्मीनिया की लड़ाई में ऐसा देखने को मिला। आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस का अधिक प्रयोग हो रहा है। इसके अलावा, डिफेंस बजट का करीब 25 प्रतिशत केवल पेंशन में चला जाता था। इसमें बचत की आवश्यकता समझी गई क्योंकि अमेरिका जैसे देश में मात्र 10 प्रतिशत पेंशन का भुगतान होता है। हाल में कई देशों ने अपनी सैन्य-शक्ति में भी कटौती की है और जो धनराशि इस प्रकार बची है उसका सदुपयोग ये देश आधुनिकतम हथियार और उपकरण खरीदने में कर रहे हैं। चीन ने पीपुल्स लिबरेशन आर्मी की संख्या 40 लाख से घटाकर करीब 20 लाख कर ली है। अग्निपथ योजना की भी यही पृष्ठभूमि है। सरकार चाहती है कि उसकी फौज में जो अग्निवीर हो, उनकी उम्र कम हो, वह शारीरिक दृष्टि से हृष्टपुष्ट हो और तकनीकी दृष्टि से दक्ष हो। सेना के तीनों अंगों के प्रमुखों ने इस योजना का समर्थन किया है। ऐसा प्रतीत होता है कि इस विषय पर रक्षा मंत्रालय में उच्चतम स्तर पर काफी मंथन हुआ है और उसके बाद ही यह योजना लागू की गई है।
युवाओं के मन में जो आशंकाएं हैं और भविष्य की जो अनिश्चितता उन्हें सता रही है, उसको दूर करने की आवश्यकता है। योजना में आंशिक संशोधन किए जा सकते हैं, जैसे 25 प्रतिशत के बजाए स्थायी रूप से लिए जाने वाले अग्निवीरों का प्रतिशत बढ़ाया जा सकता है। लेकिन सबसे जरूरी बात यह है कि चार साल के बाद जो अग्निवीर बाहर निकल जाएंगे, उनकी नौकरी या रिहैबिलिटेशन की एक निश्चित योजना होनी चाहिए। पिछले कुछ दिनों में जो घोषणाएं अग्निवीरों को नौकरी देने के संबंध में हुई हैं, उनको अगर कानूनी आधार दे दिया जाए तो शायद युवा हिंसा का मार्ग छोड़ देंगे।
केंद्र सरकार को यह भी सोचना होगा कि उसकी महत्वपूर्ण योजनाओं को लागू करने में इतना विरोध क्यों होता है। तीन विवादास्पद केंद्रीय कृषि कानूनों को लेकर लंबे समय तक विरोध चला और आखिरकार सरकार ने उन्हें वापस ले लिया। वर्तमान में अग्निपथ योजना को लेकर प्रदेशों में हिंसात्मक घटनाएं हो रही हैं। राजनीतिक पार्टियां तो अपनी रोटी सेकेंगी ही और इस आंदोलन को हवा देने की कोशिश करेंगी, लेकिन युवाओं के इस आक्रोश के पीछे मुख्य रूप से उनका बेरोजगार होना और एक बड़ी संभावना का समाप्त होना प्रतीत होता है। सरकार को इन घटनाओं से सबक लेते हुए भविष्य में यह सुनिश्चित करना होगा कि कोई बड़ी योजना लागू करने से पहले उसके बारे में जनता को विश्वास में लिया जाए, विपक्षी पार्टियों से विमर्श हो और योजना के हर पहलू के बारे में विस्तार में सभी को बता दिया जाए, ताकि उसके बारे में कोई भ्रम न फैला सके। डिमॉनेटाइजेशन (नोटबंदी) की योजना प्रधानमंत्री ने स्वयं देश को समझाई थी। अच्छा होता, अगर अग्निपथ योजना को लागू करने के पहले भी प्रधानमंत्री स्वयं टेलीविजन पर आते और योजना के हर पहलू और उसकी आवश्यकता के बारे में देशवासियों को समझा देते।
(लेखक सीमा सुरक्षा बल के पूर्व महानिदेशक हैं। यहां व्यक्त विचार निजी हैं)