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12 July 2022

प्रथम दृष्टि: सबको मिले मौका

“अब ऑनलाइन शिक्षा की कुछ ऐसी व्यवस्था करनी चाहिए ताकि हर वह छात्र उस कॉलेज से डिग्री ले सके जहां वह 100 प्रतिशत अंक नहीं लाने या प्रवेश परीक्षा में असफल होने के कारण दाखिला नहीं ले सका था”

प्रतिभा के बीज किसी भी मिट्टी, मौसम या तापमान में अंकुरित हो सकते हैं। पिछले दिनों सोशल मीडिया पर एक चित्र वायरल हुआ, जिसमें एक खंडहरनुमा भवन के जंग खाए विशालकाय लोहे के द्वार में लगे ताले से एक कोपल निकलता दिख रहा था। टैलेंट भी कुछ वैसा ही है। अनगिनत अवरोध के बावजूद जिसे खिलना है, वह देर-सवेर खिल जाता है। यह बात और है कि सही समय पर सही मौके मिलने से प्रतिभाएं और निखरती हैं। अगर उन्हें वक्त रहते तराशा जाए, सही मार्गदर्शन मिले तो वे क्या कुछ नहीं कर सकतीं। शिक्षा के क्षेत्र में हमारा देश ऐसी प्रतिभाओं की खान है। पौराणिक गुरुकुल से वर्तमान आभासी दुनिया तक, भारतीय मेधा ने हर क्षेत्र में अपना लोहा मनवाया है। आज भी दुनिया भर में इंजीनियरिंग और मेडिकल के क्षेत्र में अगर किसी देश के युवाओं की सबसे ज्यादा तूती बोलती है तो वह भारत ही है। हालांकि ब्रेन ड्रेन के कारण उनकी प्रतिभा का लाभ अक्सर उन देशों को मिल रहा है, जहां वे तथाकथित बेहतर परिस्थितियों या संभावनाओं के कारण कार्यरत हैं। ये वे टैलेंट हैं जिन्हें अपने देश में शिक्षा ग्रहण कर अपनी उम्मीद के अनुसार भविष्य संवारने का मौका न मिला। लेकिन क्या ऐसे मौके अपने यहां सभी के लिए समान रूप से उपलब्ध रहे हैं? आर्थिक-सामाजिक विषमता की खाई लगातार बढ़ने के कारण यह साल दर साल बड़ा सवाल बना हुआ है।

आउटलुक का यह अंक उच्च शिक्षा प्रदान करने वाले देश के शीर्ष शैक्षणिक संस्थानों पर केंद्रित है, जिन्हें विभिन्न मानकों के आधार पर सूचीबद्ध किया गया है। इसका उद्देश्य उन छात्रों को एक विश्वसनीय निर्देशिका उपलब्ध कराना है जो आजकल इन संस्थानों में चल रहे दाखिला प्रक्रिया में शामिल होना चाहते हैं। हर वर्ष लाखों छात्र स्कूल की पढ़ाई पूरी करने के बाद इन संस्थानों में दाखिला लेने के लिए जद्दोजहद करते हैं। उनमें से कुछ के सपने पूरे होते हैं, लेकिन अधिकतर वहां शिक्षा ग्रहण करने से वंचित रह जाते हैं। गौरतलब है कि उत्कृष्ट संस्थानों की बात तो दूर, साधारण कॉलेज और यूनिवर्सिटी की संख्या भी अभी देश में नाकाफी है। जाहिर है, अधिकतर छात्र उन शिक्षण संस्थानों में पढ़ना चाहते हैं जिन्हें विशिष्ठता के लिए जाना जाता है। यही कारण है कि दिल्ली विश्वविद्यालय के कई कॉलेजों में सिर्फ उन्हीं का दाखिला हो पाता है जिन्हें शत-प्रतिशत अंक मिला हो। अधिकतर को निराशा ही हाथ लगती है।

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लेकिन, छात्रों की संख्या अधिक और संसाधन सीमित होने के कारण सभी का दाखिला उनके मनचाहे कॉलेज में नहीं कराया जा सकता। इनमें वैसे छात्र भी होते हैं जिनके गृह प्रदेश में या तो शिक्षा व्यवस्था चौपट हो चुकी है या जहां के संस्थान समय पर परीक्षाएं तक आयोजित करने में विफल रहे हैं। पिछले दिनों बिहार के दरभंगा में छात्रों का एक विशाल प्रदर्शन वहां की यूनिवर्सिटी में विलंब से चल रहे शैक्षणिक सत्र के विरोध में हुआ। दरअसल, किसी भी कालखंड में शिक्षा हुक्मरानों की प्राथमिकता नहीं रही है और बजट का आकार संकुचित होने के कारण किसी भी सरकार के लिए यह संभव नहीं है कि देश के हर प्रदेश में उतने उत्कृष्ट शैक्षणिक संस्थानों की स्थापना की जाए जो सुदूर इलाकों के छात्रों का महानगरों की ओर पलायन रोक सके।

इस समस्या का आखिर निदान क्या है? क्या ऑनलाइन शिक्षा इस दिशा में गेम चेंजर साबित हो सकती है? पिछले दो-ढाई वर्षों में जब दुनिया कोरोनावायरस से जूझ रही थी, तो अनेक संस्थानों ने इंटरनेट का उपयोग कर ऑनलाइन क्लासेज के जरिए अपने छात्रों को वर्चुअल क्लास रूम मुहैया कराया। कुछ निजी कोचिंग इंस्टीट्यूट ने तो इस माध्यम से अपने लिए आपदा को अवसर में तब्दील कर लिया। इसके बावजूद देहात और छोटे कस्बों में रहने वाले छात्र आर्थिक वजहों से इसका फायदा उठाने से वंचित रहे। जैसा हमारी आवरण कथा में बहुचर्चित सुपर 30 के संस्थापक आनंद कुमार लिखते हैं, आज जरूरत इस बात की है कि ऑनलाइन शिक्षा न सिर्फ आर्थिक रूप से कमजोर परिवारों के बच्चों को मुफ्त या कम कीमत पर उपलब्ध कराई जाए, बल्कि उन विद्यार्थियों को भी इसका लाभ मिले जो अपने मनपसंद उच्च संस्थानों में दाखिला लेने में असफल हो जाते हैं। तकनीकी शिक्षा प्रदान करने वाली उत्कृष्ट संस्थाओं को छोड़ बाकी सभी कॉलेजों में ऐसी व्यवस्था होनी चाहिए जो आकांक्षी छात्रों को ऑनलाइन माध्यम से जुड़ने की सहूलियत दे।

आज के दौर में हर विश्वविद्यालय को ऑनलाइन शिक्षा के माध्यम अपनी पहुंच व्यापक स्तर पर बढ़ाने की जरूरत है। सिर्फ उनके शिक्षकों की क्लासरूम टीचिंग को ‘लाइव’ दिखाकर ऐसा किया जा सकता है, जैसा कई संस्थानों ने लॉकडाउन के दौरान मुमकिन कर दिखाया। उसी अनुभव का लाभ उठाते हुए अब ऑनलाइन शिक्षा की कुछ ऐसी व्यवस्था करनी चाहिए ताकि हर वह छात्र वहां से डिग्री ले सके, जो 100 प्रतिशत अंक नहीं लाने या प्रवेश परीक्षा में असफल होने के कारण वहां दाखिला नहीं करा सके थे। कुछ स्वनामधन्य संस्थानों को इस पर आपत्ति हो सकती है, लेकिन डिजिटल युग में शिक्षा को प्रजातांत्रिक बनाने की ओर इससे प्रभावी कदम और क्या सकता है?

 

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TAGS: ऑनलाइन शिक्षा, आउटलुक हिंदी, संपादकीय, Outlook Hindi editorial, online education, Giridhar Jha, प्रथम दृष्टि
OUTLOOK 12 July, 2022
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