पाकिस्तानी उच्चायोग में एक ‘राष्ट्रविरोधी’ शाम
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने पाकिस्तानी प्रधानमंत्री नवाज शरीफ को उनके राष्ट्रीय दिवस पर सोमवार को शुभकामना संदेश में दोनों देशों के बीच सभी लंबित समस्याएं हल करने की इच्छा व्यञ्चत की। इस मौके पर अपने ट्वीट में मोदी ने कहा, ‘मैंने पाकिस्तान के राष्ट्रीय दिवस पर प्रधानमंत्री श्री नवाज शरीफ को अपनी शुभकामनाएं लिखी हैं।’ शाम को मोदी ने विदेश राज्यमंत्री जनरल वीके सिंह को सरकारी प्रतिनिधि बनाकर पाकिस्तानी उच्चायोग के समारोह में भेजा।
भारत-पाक संबंधों में तमाम उतार-चढ़ाव के बावजूद पाकिस्तानी राष्ट्रीय दिवस नई दिल्ली के राजनयिक कैलेंडर में परंपरा से एक बड़ी घटना रहा है। हर वर्ष जीवन के विभिन्न क्षेत्रों से सैंकड़ों लोग इस समारोह में उपस्थित होते हैं। इनमें हर वर्ष राजनयिक, व्यापारी, राजनीतिज्ञ, बुद्धिजीवी और मीडिया टिप्पणीकार शामिल होते हैं। सर्वदलीय हुर्रियत कॉन्फ्रेंस के सदस्यों के शामिल होने की भी परंपरा रही है। उनके लिए अलग मेज आरक्षित होती है और पाकिस्तानी अधिकारी तथा मीडिया के सदस्य उनकी आवभगत में बिछे जाते हैं। इस साल भी ऐसा ही हुआ। लेकिन असामान्य बात यह थी कि पाकिस्तानी उच्चायोग के गेट के बाहर टीवी चैनलों के रिपोर्टरों और कैमरामेन की भीड़ थी जो यह नोट कर रहे थे कि कौन-कौन समारोह में शरीक होने जा रहा है। अधिकांश उपस्थित होने वालों को चैनलों ने भले ही राष्ट्रविरोधी करार दिया हो, इससे समारोह के उत्साह में कोई कमी नहीं आई और पाकिस्तानी मेजबान खुश थे कि सोमवार की शाम के कार्यक्रम के लिए बड़ी संक्चया में भारतीय पधारे।
पैंट-शर्ट के ऊपर हरी स्लीवलेस जैकेट पहने जनरल वीके सिंह भी उस शाम के समारोह में शरीक हुए। उनकी शिरकत ने मीडिया में अनुमानों की तमाम पतंगबाजी पर विराम लगा दिया कि ऐन अंतिम क्षण पर जनरल सिंह ‘बीमार’ पड़ जाएंगे और समारोह में शरीक नहीं होंगे। लेकिन मोदी सरकार ऐसा कोई नकारात्मक संकेत देकर मीडिया टिप्पणीकारों को संतुष्ट नहीं करना चाहती थी। लेकिन समारोह के बाद जनरल सिंह के ट्वीटों ने इस तरह की अनुमानबाजी को और हवा दी कि ञ्चया उनकी इच्छा के विपरीत उन्हें पाकिस्तानी उच्चायोग भेजा गया था। उस रात उच्चायोग से लौटकर उन्होंने कई ट्वीटों में ‘कर्तव्य’ और ‘वितृष्णा’ पर जोर दिया। हालांकि पाकिस्तान का उन्होंने कोई सीधा हवाला नहीं दिया। बहरहाल, इससे मीडिया में इन अनुमानों को बल मिला कि जनरल सिंह का यह कदम पाकिस्तानी उच्चायोग के उस शाम के समारोह के बारे में था।
पाकिस्तानी मीडिया टिप्पणीकारों को भी लगा कि भारत परस्पर विरोधी संकेत दे रहा है। यह इस आधार पर विदेश मंत्रालय के प्रवञ्चता सैयद अकबरुद्दीन ने बसीत के फैसले के बारे में पूछे जाने पर कहा, ‘मैं फिर कह रहा हूं कि सिर्फ दो पक्ष हैं और भारत-पाक मसलों के हल में किसी तीसरे पक्ष की कोई गुंजाइश नहीं है।’ इसके पहले पाकिस्तानी उच्चायुञ्चत ने हुर्रियत नेताओं को आमंत्रित करने के अपने फैसले को यह कहते हुए उचित ठहराया था कि भारत सरकार ने कश्मीरी अलगाववादी नेताओं के साथ उनकी मुलाकात पर किसी तरह की पाबंदी नहीं लगाई थी।
विभिन्न व्याक्चयाओं के बावजूद यह स्पष्ट है कि मोदी सरकार सोमवार के घटनाक्रम को इतना बड़ा नहीं मानती कि पाकिस्तान के साथ अपनी बातचीत को स्थगित करे। पिछले वर्ष इस्लामाबाद विदेश सचिव स्तर की निर्धारित भारत-पाक वार्ता के ठीक कुछ दिन पहले हुर्रियत नेताओं के साथ दिल्ली में बसीत की मुलाकात पर भारत ने बातचीत से हाथ खींच लिए थे। तब साल के अंत में जम्मू-कश्मीर के होने वाले चुनावों ने भी भारत के इस निर्णय में भूमिका निभाई होगी। हालांकि परंपरा से पाकिस्तानी उच्चायुक्त और हुर्रियत की बैठकें होती रही थीं। लेकिन उस अवसर पर बातचीत बंद करके भारत ने इन पर विराम लगाने की कोशिश की थी। बहरहाल, भारतीय विदेश सचिव एस जयशंकर इस बीच पाकिस्तान हो आए हैं और दोनों देशों के बीच औपचारिक संपर्क फिर शुरू हो गया।
भारतीय अधिकारियों के अनुसार, हालांकि वार्ताएं फिर शुरू होने से भारत को गतिरोध दूर होने की ज्यादा आशा नहीं है, फिर भी जब-जब दोनों पक्ष बातचीत बंद करते हैं तो अन्य देशों के असहज सवालों का सामना करना पड़ता है। इसलिए संभवत: आने वाले दिनों में विदेश सचिव स्तर की वार्ता तो शुरू हो जाए लेकिन भारतीय प्रधानमंत्री के इस्लामाबाद दौरे के लिए अगले साल तक इंतजार करना पड़े जब सार्क शिखर वार्ता में भागीदारी के दौरान मोदी की नवाज शरीफ के साथ अलग से एक बैठक संभावित है।
साउथ द्ब्रलॉक की बड़ी योजना के तहत सोमवार को पाकिस्तानी राष्ट्रीय दिवस पर हुर्रियत नेताओं की मौजूदगी सिर्फ एक गौण कथा है।