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22 April 2015

पिपली लाइवः दिल्ली में किसान की जान के मायने

आज एक किसान ने देश की राजधानी दिल्ली में आकर किसानों के मुद्दे पर चल रही रैली में फांसी लगाई, यानी उन्हें भी बाकी किसानों की तरह मौजूदा व्यवस्था से किसी भी प्रकार की कोई राहत मिलने की रत्ती भर उम्मीद नहीं थी। इस आत्महत्या पर जिस तरह का दिशाहीन विमर्श चल रहा है, उससे किसानी की खौफनाक स्थिति पर पूरी व्यवस्था की बर्बर उदासीनता का हल्का सा अंदाजा होता है। देश भर में खासतौर से पूरे उत्तर भारत में बेमौसम बारिश और खराब मौसम की वजह से फसल खराब होने के चलते मार्च से लेकर अब तक सैंकड़ों किसान आत्महत्या कर चुके हैं, उनकी सदमे से मौत हो चुकी है। लेकिन संसद से लेकर राजनीतिक गलियारों तक में कोई गंभीर चिंता नहीं जताई गई।

मुआवजे को लेकर खींचतान जरूर है, लेकिन अभी तक जमीन पर पीड़ित किसानों को मुआवजा नहीं मिलना शुरू हुआ है। दिल्ली में आज जिस किसान ने फांसी लगाई, वह राजस्थान के दौसा इलाके के रहने वाले थे। फसल बर्बाद होने के बाद कहीं न्याय न मिलने के बाद वह दिल्ली आए होंगे और कहीं कोई हल न मिलने पर जान दी होगी।

यह घटना पूरी व्यवस्था के किसान विरोधी होने का परिचायक है। यह विस्फोटक होती स्थिति का नमूना है। दिल्ली के बाहर हजारों किसानों की आत्महत्याओं पर न ध्यान देने वाले मीडिया पर सवाल है। दिल्ली में एक किसान के मरने पर राजनीतिक खलबली, उन लाखों किसानों की आत्महत्याओं पर मजाक जैसी दिखाई दे रही है, जिनकी मौत से किसी को कोई फर्क नहीं पड़ता। ऐसा लग रहा था कि जैसे आज दिल्ली में फिल्म पीपली लाइव, की रील दोबारा चल गई हो...। 

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TAGS: जंतर मंतर, किसान आत्महत्या, मीडिया, बेशर्मी, राजनीतिक सत्ता, उदासीनता
OUTLOOK 22 April, 2015
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