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08 January 2015

शहर के साथ समस्‍याएं भी बढी


शहरीकरण

इतिहास में पहली बार वर्तमान दशक ने दुनिया की आबादी का ज्यादा बड़ा हिस्सा गांवों की बजाय शहरों में दर्ज किया है। भारत भी उस दिशा में तेजी से बढ़ रहा है। इसके मद्देनजर     साल 2014 के लोकसभा चुनाव में भारतीय जनता पार्टी ने अपने चुनाव घोषणा पत्र में 100 नए स्मार्ट शहर बसाने की बात कही थी। पार्टी का तर्क था नए शहर बसेंगे तो अर्थव्यवस्था को और गति मिलेगी लेकिन सवाल यह है कि जो पुराने शहर हैं उनका क्या होगा। क्या ये शहर जो मूलभूत सुविधाओं से जूझ रहे हैं उसी तरह से जूझते रहेंगे या फिर उनका भी कायाकल्प होगा। बीते 12 सालों में शहरों में रहने वाले लोगों की संख्या में अंधाधुध वृद्घि हुई है और नए शहर भी बनाए गए हैं। साल 2011 के आंकड़ों के अनुसार इस समय देश में छोटे बड़े कुल मिलाकर 5161 शहर हैं और इसमें अगर 100 जोड़ दें तो इसकी संख्या बढ़कर 5261 हो जाएगी। विशेषज्ञों के मुताबिक स्मार्ट शहर बनाने की बजाय पुराने शहरों को ही अगर स्मार्ट लुक दे दिया जाए तो विकास की गति और तेज होगी। क्योंकि नए शहर बसाने के लिए शून्य से शुरूआत करनी होगी और उसके लिए समय भी चाहिए। भारत के अलग-अलग राज्यों पर यदि शहरीकरण के क्षेत्र में विकास की दृष्टिï से विश्लेषण किया जाए तो यह स्पष्ट है कि विभिन्न राज्यों में शहरीकरण की गति एक जैसी नहीं है। उत्तर प्रदेश, आंध्र प्रदेश, मध्य प्रदेश और राजस्थान जैसे आर्थिक दृष्टि से पिछड़े राज्यों में शहरी जनसंख्या में वृद्घि दर राष्टï्रीय औसत से ऊपर थी। वहीं पंजाब, तमिलनाडु, गुजरात, पश्चिम बंगाल और कर्नाटक में शहरी जनसंख्या में वृद्घि राष्ट्रीय औसत से नीचे थी। प्रति व्यक्ति अधिक आय वाले राज्यों में महाराष्ट्र और हरियाणा ऐसे राज्य हैं जहां शहरी जनसंख्या में वृद्घि दर राष्ट्रीय औसत से अधिक थी। आंकड़ों के मुताबिक 1951 से 1991 के दौरान बिहार, मध्य प्रदेश और उड़ीसा में शहरी जनसंख्या की वृद्घि दर प्राय: अधिक रही है, लेकिन उड़ीसा और बिहार में 1981 से 1991 के बीच शहरीकरण की गति कुछ धीमी पड़ गई थी। औद्योगिक दृष्टि से विकसित राज्यों महाराष्ट्र, गुजरात और तमिलनाडु में शहरी जनसंख्या 34 प्रतिशत से अधिक है। इन राज्यों में और अधिक औद्योगीकरण होने पर  इनकी शहरी जनसंख्या बढ़ती है लेकिन आधार बड़ा होने के कारण शहरी जनसंख्या में वृद्घि की दर प्राय: अपेक्षाकृत पिछड़े राज्यों से कम देखने को मिलती है।
योजना आयोग की एक रिपोर्ट के अनुसार हर साल भारत में लगभग 27 लाख लोग गांव छोड़कर रोजगार की तलाश में शहरों की ओर पलायन करते हैं। संयुक्त राष्ट्र संघ की रिपोर्ट के मुताबिक भारत शहरी क्रांति की ओर बढ़ रहा है। इस रिपोर्ट के अनुसार 2031 तक भारतीय शहरों और कस्बों में करीब साठ करोड़ लोग रहने लगेंगे। रिपोर्ट यह भी बताती है कि बीते एक दशक में भारत की शहरी आबादी 21 करोड़ 70 लाख से बढ़कर 37 करोड़ 70 लाख हो चुकी है। जिस तरह से यह संख्या बढ़ रही है उससे अनुमान है कि आबादी का यह आंकड़ा 2031 तक बढ़कर कुल जनसंख्या का चालीस प्रतिशत हो जाएगा। शहरीकरण विकास का एक सूचक होते हुए भी कई तरह की समस्याओं का जन्मदाता भी है। इसमें पीने के पानी से लेकर सीवरेज, यातायात, आवास की समस्या गंभीर है। विशेषज्ञ मानते हैं कि शहरीकरण हो लेकिन आर्थिक विषमता का अगर ध्यान रखा जाए तो शायद विकास को और गति मिलेगी। योजना आयोग की एक रिपोर्ट के अनुसार भारत की जनसंख्या का पांचवा भाग झुज्गी-झोपड़ी में रहता है। बेंगलूरु में 10 प्रतिशत, कानपुर में 17 प्रतिशत, मुंबई में 38 प्रतिशत तथा कोलकाता में 42 प्रतिशत लोगों के सामने आवास की कठिन समस्या है। भारत में आवास के बारे में एक विडंबना यह भी है कि एक तरफ तो आलिशान भवन हैं तो दूसरी ओर टूटे-फूटे मकान है। उनमें भी 75 फीसदी मकान ऐसे हैं जिनमें खिड़कियां नहीं हैं तो 80 फीसदी मकानों में शौचालय की व्यवस्था नहीं है।
अब सवाल उठता है कि नए शहर के बारे में सरकार की जो परिकल्पना है वह कितनी कारगर है। हैजार्ड सेंटर के निदेशक और सामाजिक कार्यकर्ता दुनू राय के मुताबिक सरकार अगर पुराने शहरों की मूलभूत जरूरतों को पूरा कर दे तो इससे बढिय़ा विकास कुछ हो ही नहीं सकता। वह कहते हैं कि आज जो शहर बसे हैं उनमें मूलभूत सुविधाएं तो हैं नहीं ऐसे में विकास की बात करना बेमानी है। विशेषज्ञ भी मानते हैं कि पुराने शहरों की समस्याएं सुलझाकर विकास की राह तेज की जा सकती है क्योंकि आज नए शहर बसने से रोजगार में भी वृद्घि होगी इसका कोई तार्किक या सांख्यिकीय आधार नहीं है। नए शहर आवास की समस्या को तो कम कर सकते हैं लेकिन रोजगार के लिए घंटों की दूरी प्रतिदिन तय करना आम आदमी के लिए मुश्किल भरा काम है। आज दिल्ली जैसे शहर में एक व्यक्ति को घर से कार्यालय आने-जाने के लिए औसतन 45 किलोमीटर की दूरी तय करनी पड़ती है जिसमें कुछ लोगों को 4 से 6 घंटे सफर में ही व्यतीत करने पड़ते हैं। बढ़ती आबादी और बढ़ते वाहनों के दबाव के आगे मेट्रो शहरों की यातायात व्यवस्था भी पूरी तरह से चरमरा गई है। दिल्ली जैसे शहर में एक जगह से दूसरी जगह की दूरी तय करने में लोगों को कई घंटे का समय लग जाता है। कमोबेश ऐसी स्थिति हर मेट्रो शहर की है। विशेषज्ञ मानते हैं कि अगर छोटे शहरों में ही औद्योगीकरण को बढ़ावा देकर स्मार्ट शहर में तब्दील कर दिया जाए तो इससे विकास को गति भी मिलेगी और लोगों का पलायन भी रुकेगा।
बीते 12 सालों में एक बड़ा बदलाव यह आया है कि आजीविका के अभाव या परियोजनाओं से उजड़कर लोग गांवों से निकलकर शहरों की ओर रुख ज्यादा ही करने लगे हैं। आज हर मेट्रो शहर के आसपास नए उपनगर बसने लगे हैं। अगर दिल्ली और उसके आसपास की बात की जाए तो बीते 12 सालों में कई नई कॉलोनियां बस गई हैं और कई जगह पर बसाने की तैयारी चल रही है। दिल्ली के पास ग्रेटर नोएडा, नोएडा वेस्ट, राजनगर एक्सटेंशन, ग्रेटर फरीदाबाद से लेकर हर शहर के आसपास कोई न कोई नया उपनगर बस रहा है। सेंटर फॉर पॉलिसी रिसर्च से जुड़े पार्थ मुखोपाध्याय के मुताबिक भारत के शहरीकरण की गति धीमी नहीं कही जा सकती। बल्कि यह बहुत व्यापक पैमाने पर हो रहा है। लेकिन यह प्रक्रिया कैसे शहरीकरण के दो रास्तों या दो स्वरूपों के तनाव को दर्शा रही हैं। इनमें से एक महानगर केंद्रित जमाव है जिसमें देश के विभिन्न हिस्सों से लोग कस्बों-शहरों का रुख कर रहे हैं। दूसरा है देश के विभिन्न स्थानों पर मौजूदा रिहाइशों के स्वरूप में आ रहा बदलाव। जवाहर लाल नेहरू विश्वविद्यालय में सेंटर फॉर इकोनॉमिक स्टडीज एंड प्लानिंग में प्रोफेसर अरुण कुमार के मुताबिक अव्यवस्थित शहरों को नए मॉडल के तौर पर विकसित करना चाहिए। तभी जाकर शहरों में आने वाली समस्या से निजात पाया जा सकता है।

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राज्यों में नगरीय
जनसंख्या का प्रतिशत

राज्य            प्रतिशत

आंध्र प्रदेश             27.05
अरुणाचल प्रदेश     20.41
असम             12.72
बिहार             10.47
छत्तीसगढ़             20.07
गोवा             49.76
गुजरात             37.35
हरियाणा             29.00
हिमाचल प्रदेश             9.78
जम्मू कश्मीर             24.87
झारखण्ड             22.24
कर्नाटक             33.98
केरल             25.96
मध्य प्रदेश             26.66
महाराष्ट्र             42.39
मणिपुर             23.88
मेघालय             19.62
मिजोरम             49.49
नागालैंड             17.74
उड़ीसा             14.97
पंजाब             33.94
राजस्थान             23.38
सिक्किम             11.10
तमिलनाडु             43.85
त्रिपुरा             17.01
उत्तर प्रदेश             20.78
उत्तराखण्ड             25.59
पश्चिम बंगाल             28.03


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TAGS: शहरीकरण, रोजगार, समस्‍या, जनसंख्‍या
OUTLOOK 08 January, 2015
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