प्रथम दृष्टि / ओटीटी का गणतंत्र: अब यह जरूरी नहीं कि ओटीटी का सुपरस्टार बांद्रा से ही आए, वह बिहार के बेलवा से भी आ सकता है
साल भर पहले बॉलीवुड विवादों के घेरे में था। अभिनेता सुशांत सिंह राजपूत की दुखद परिस्थितियों में मौत के बाद हिंदी फिल्म इंडस्ट्री की नामचीन हस्तियों पर भाई-भतीजावाद के आरोप लग रहे थे। कहा जा रहा था कि फिल्मोद्योग में सिर्फ उन्हीं कलाकारों को प्रश्रय दिया जाता है, जो किसी बड़े फिल्मी परिवार से ताल्लुक रखते हैं या जिन्हें इंडस्ट्री के किसी सूरमा का वरदहस्त प्राप्त है। आंखों में सपने संजोये दूरदराज से आए कथित बाहरी लोगों को मुंबई की मायानगरी में पैठ बनाने में एड़ी-चोटी का जोर लगाना पड़ता है। उनमें बिरले ही सफल हो पाते हैं। मनोरंजन की दुनिया में प्रतिभा को निखरने के लिए अवसर की आवश्यकता होती है, लेकिन अवसर बगैर किसी गॉडफादर के मिलना नामुमकिन नहीं, तो मुश्किल अवश्य समझा जाता रहा है।
पिछले वर्ष टेलीविजन चैनलों और सोशल मीडिया में ऐसे भी आरोप और कयास लगे कि सुशांत के साथ भी बाहरी होने के कारण फिल्म इंडस्ट्री में सौतेला व्यवहार किया गया, जिसके कारण उन्हें अवसाद के दिन देखने पड़े। मुंबई पुलिस ने इन आरोपों की जांच भी की। कई चर्चित हस्तियों को थाने बुलाकर पूछताछ भी की गई। सुशांत के साथ निजी या पेशेवर कारणों से किसी बड़े फिल्म निर्माता ने उनके करिअर को बर्बाद करने की कोशिश की या नहीं, इस पर किसी निष्कर्ष पर नहीं पहुंचा जा सका, लेकिन इस दौरान एक बात उभर कर आई है कि प्रतिभा अपना रास्ता खुद बना लेती है। वह किसी तथाकथित गॉडफादर की मोहताज नहीं होती, चाहे बॉलीवुड हो या मनोरंजन से जुड़ा कोई अन्य क्षेत्र।
पिछले डेढ़ वर्ष में जिस रूप में नेटफ्लिक्स, अमेजन प्राइम वीडियो, डिज्नी प्लस-हॉटस्टार जैसे ओवर-द-टॉप (ओटीटी) कहे जाने वाले मंचों की लोकप्रियता बढ़ी, उसने बॉलीवुड के स्टार सिस्टम को करीब-करीब ध्वस्त कर डाला। कोरोनावायरस महामारी के दौरान फिल्म इंडस्ट्री को अरबों रुपये का नुकसान जरूर हुआ लेकिन इस दौरान एक सुखद पहलू भी सामने आया कि प्रतिभा के बल पर कोई भी जाना-अनजाना अभिनेता न सिर्फ अपनी छाप छोड़ सकता है बल्कि बड़ा स्टार बन सकता है।
आउटलुक के इस अंक की आवरण कथा ऐसे ही एक कलाकार मनोज बाजपेयी की अद्भुत सफलता को रेखांकित करती है। मनोज नेपाल की सीमा से सटे बिहार के छोटे-से गांव बेलवा से आते हैं। अभिनेता बनने की चाह लिए वे मुंबई पहुंचे और उन्होंने परदे पर अपनी बहुमुखी प्रतिभा को भी साबित किया, लेकिन यह कहने में अतिशयोक्ति नहीं होनी चाहिए कि जैसी सफलता उन्हें वेब सीरीज द फैमिली मैन से मिली, वह उन्हें पिछले 27 वर्षों में कभी नहीं मिली। सत्या से भी नहीं। यहां तक कि अब उन्हें ‘ओटीटी का किंग’ भी कहा जा रहा है। ऐसी सफलता पाने वाले मनोज अकेले नहीं हैं। नवाजुद्दीन सिद्दीकी, पंकज त्रिपाठी, जयदीप अहलावत और प्रतीक गांधी सरीखे कई और कलाकार हैं, जिन्हें इस नए माध्यम ने लोकप्रियता की बुलंदी पर पहुंचा दिया। ये सभी कलाकार वर्षों से इंडस्ट्री में अपनी जगह बनाने की जद्दोजहद में लगे थे और उन्हें कुछ हद तक सफलता भी मिली थी, लेकिन सुपरस्टारों के साथ सौ-दो सौ करोड़ की फिल्म बनाने की बॉलीवुड की भेड़चाल के कारण उन्हें वह हक और रुतबा नहीं मिला, जिसके वे वाकई हकदार थे।
जैसा आप इस आवरण कथा में पढ़ेंगे, ओटीटी पर सफल हुए इन सभी अभिनेताओं में एक सामान विशेषता यह है कि सबने अपने बलबूते इंडस्ट्री में जगह बनाई है। उन्हें न तो किसी गॉडफादर का संरक्षण मिला और न ही किसी प्रभावशाली फिल्मकार ने उनके राह में रोड़े अटकाने में सफलता पाई। इस दृष्टि से ओटीटी का एक समानांतर इंडस्ट्री के रूप में अभ्युदय ऐसे हजारों नए कलाकारों के लिए किसी वरदान से कम नहीं है, जो हर वर्ष दिल में उम्मीद लिए मुंबई की मायानगरी पहुंचते हैं।
आज अधिकतर निर्माता अपनी फिल्मों और वेब सीरीज के लिए कास्टिंग डायरेक्टर की मदद से कलाकारों का चयन करते हैं। अगर किसी नए अभिनेता में प्रतिभा है, तो उसके लिए पहले के मुकाबले अच्छे मौके मिलने की संभावना कई गुना बढ़ गई है। यही नहीं, वेब सीरीज के लिए अच्छी कहानियां लिखी जा रही हैं, जिससे कलाकारों को अपना हुनर दिखाने के अवसर भी बढ़े हैं। इसके अलावा, इन प्लेटफॉर्मों की पहुंच पूरी दुनिया में है। किसी अभिनेता के बढ़िया प्रदर्शन की चर्चा आज वैश्विक स्तर पर होती है। यही कारण है कि आज मनोज बाजपेयी जैसे अभिनेता का वेब शो अंतरराष्ट्रीय स्तर पर सुपरहिट हो रहा है।
यह और कुछ नहीं, मनोरंजन की दुनिया का प्रजातंत्रीकरण ही है, जिसके कारण सुदूर गांवों से आए कलाकारों और फिल्म इंडस्ट्री में पले-बढ़े अभिनेताओं के बीच के फासले मिटने लगे हैं। परिवारवाद के कारण कोई अभिनेता मौके तो पा सकता है, लेकिन सफलता उसे तभी मिलेगी, जब उसमें काबिलियत होगी। अब यह कतई जरूरी नहीं कि ओटीटी का सुपरस्टार बांद्रा से ही आए, वह बेलवा से भी आ सकता है।