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19 October 2020

नीतीश से नाराजगी तो भारी

पहली नजर में तो दिखाई दे रहा है कि पूरे बिहार में लोगों के मन में मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के प्रति रोष है। उनकी कटु आलोचना हो रही है, इसमें कहीं कोई संदेह नहीं है। इसके बाद यह हम विपक्ष के ऊपर है कि नीतीश की आलोचना करने वालों का हम पर भरोसा जमता है या नहीं। जो नीतीश की आलोचना कर रहे हैं, अगर उन्हें कोई भरोसे के लायक नहीं मिलेगा, तो वे फिर वापस उन्हीं के पास चले जाएंगे। यह हम पर निर्भर करता है कि हम चुनाव में किस तरह के उम्मीदवारों का चयन कर रहे हैं। यह सब लोग देखेंगे। यह भी देखेंगे कि हम क्या मुद्दे उठा रहे हैं?

आजकल तेजस्वी प्रसाद यादव बेरोजगारी का मुद्दा उठा रहे हैं। यह मुद्दा वाकई गंभीर है और धीरे-धीरे देश भर में जोर भी पकड़ रहा है, खासकर नौजवानों के बीच। उन्होंने हाल ही में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के जन्मदिन को ‘बेरोजगार दिवस’ के रूप में मनाया। यह साबित करता है कि तेजस्वी ने इस मुद्दे को उठाकर नौजवानों का ध्यान खींचा है।

नीतीश कुमार के साथ एक दिक्कत साफ दिखाई दे रही है कि 15 साल लगातार सत्ता में रहने के बावजूद सिर्फ काम के आधार पर वोट मांगने का उनमें आत्मविश्वास नहीं है। अब भी वो जंगल राज जैसी पुरानी बात कर रहे हैं और कह रहे हैं कि लालू प्रसाद के शासनकाल के दौरान ऐसा था, वैसा था। अगर ईमानदारी से बिहार का इतिहास लिखा जाएगा तो एक बात स्पष्ट होगी कि बिहार में लालू यादव के पहले का एक दौर था और उनके बाद का दूसरा। लालू ने बाद के दौर में बिहार के समाज को बदला, इस बात को कोई चुनौती नहीं दे सकता है। अगर आज हर पार्टी में पिछड़ों और अति-पिछड़ों की बात हो रही है, तो इसका सेहरा निश्चित रूप से लालू यादव के सिर बंधेगा।

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लालू की आलोचना अपनी जगह है, लेकिन उनके विरोधी भी मानते हैं कि एक बड़ी आबादी थी जिसे लालू ने मुक्त कराया, आवाज दी। पिछड़ों में भी जो लोग उनको वोट नहीं देते हैं, वे भी इस बात को कबूल करते हैं और इसके लिए उनके मन में लालू के प्रति आदर का भाव है।  

दूसरा बड़ा काम, जो लालू ने अपने शासनकाल के दौरान किया वह था भारतीय जनता पार्टी के नेता लालकृष्ण आडवाणी की उनकी रथ यात्रा के दौरान गिरफ्तारी। इससे उनका नाम दुनिया के मुस्लिम समुदाय तक पहुंचा। यह उनकी दो बड़ी पूंजी है।

लालू के इन कार्यों की तुलना में नीतीश को देखिए तो क्या मिलेगा? ठीक है, वे कहते हैं कि सड़कें बनवाईं, बिजली दी। लेकिन, यह तो एक रूटीन काम है। ऐसा करने वाले वे अकेले मुख्यमंत्री तो हैं नहीं। बाकी मुख्यमंत्री क्या हाथ पर हाथ धरे बैठे रहते हैं? दरअसल, लालू के शासनकाल के दौरान परिस्थितियां अलग थीं। उस समय पिछड़े राज्यों के राजस्व की स्थिति बहुत ही खराब थी। राजस्व होता कहां था जो विकास होता? मैं राष्ट्रीय जनता दल का मंत्री और विधायक रहा हूं। उस दौरान मेरे क्षेत्र के लिए सड़क मरम्मत के नाम पर महज चार लाख रुपये मिलते थे। केंद्र सरकार के पास भी पैसा कहां था? स्थितियां तो 1991 के आर्थिक उदारीकरण के बाद धीरे-धीरे बदलीं और केंद्र सरकार का राजस्व बढ़ना शुरू हुआ। आजकल वित्त आयोग के फॉर्मूले के अनुसार राज्यों को राजस्व का अपना हिस्सा मिलने का जो संवैधानिक अधिकार है, उससे पिछड़े सूबों के हालात बदले हैं।

नीतीश के बारे में एक और बात यह है कि जब वे भाजपा से नरेंद्र मोदी के सवाल पर अलग हुए थे तो उन्होंने क्या-क्या नहीं कहा था? एक बार लुधियाना में पंजाब के तत्कालीन मुख्यमंत्री प्रकाश सिंह बादल के आयोजन में एनडीए की सभा में मंच पर मौजूद नरेंद्र मोदी ने उनका हाथ अपने हाथ में लेकर उठा दिया था। यह तस्वीर हर जगह छपी थी। वहां से लौटने वक्त रास्ते में उन्होंने अपने सहयोगी संजय झा को क्या कहा था? उन्होंने कहा था, जिस आदमी का नाम लेने से करोड़ों अल्पसंख्यकों के मन में भय व्याप्त हो जाता है, उस आदमी के साथ आपने मेरा फोटो खिंचवा दिया? वह उन्हीं का आकलन था, किसी दूसरे ने नहीं कहा था। आज वे उसी आदमी की सेवा में लगे हुए हैं। यह तो इतिहास में दर्ज होगा।

(लेखक राष्ट्रीय जनता दल के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष हैं, गिरिधर झा से बातचीत पर आधारित)

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TAGS: नीतीश कुमार, बिहार चुनाव, शिवानन्द तिवारी, आरजेडी, Shivanand Tiwari, Opinion, bihari voters, nitish Kumar, Bihar elections, RJD
OUTLOOK 19 October, 2020
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