रेट कट की 3 बातें जो आपको पता होनी चाहिए
इसका आपके लिए क्या अर्थ है
मंगलवार को रिजर्व बैंक की बहुप्रतीक्षित मौद्रिक समीक्षा कटौती की घोषणा बैंक के गवर्नर रघुराम राजन ने की। रेपो रेट में 25 बेसिस अंकों की कटौती कर इसे 7.25 प्रतिशत पर ला दिया गया है। वर्ष 2015 में अबतक 75 बेसिस अंकों की कटौती की जा चुकी है। इसके बाद की कार्रवाई डाटा आधारित होगी जो कि आर्थिक आंकड़ों पर निर्भर करेगी ताकि आगे और कटौती की जा सके। आज की कटौती ने शेयर बाजारों को बिल्कुल भी उत्साहित नहीं किया इस लिए शेयर बाजारों ने ऊपर चढ़ने की कोई कोशिश नहीं की।
आपको इससे क्या निष्कर्ष निकालना चाहिए
जबकि रिजर्व बैंक ने कह दिया है कि आगे की कटौती आंकड़ों पर निर्भर करेगी, रिजर्व बैंक की वास्तविक दर (मुद्रास्फीति की दर से ज्यादा मिलने वाला ब्याज) को 1.5 से 2 प्रतिशत तक रखने की इच्छा का अर्थ यह हो सकता है कि रिजर्व बैंक जितना चाहता है उसने उससे ज्यादा रेट कट किया है (यह देखते हुए कि उसे जनवरी 2016 तक मुद्रास्फीति 6 फीसदी तक आने की उम्मीद है)। हालांकि हमें 2018 की शुरुआत तक मुद्रास्फीति के 4 फीसदी आने तक यानी और ज्यादा लंबे समय तक देखने की जरूरत है। कम से कम दोनों का औसत यानी मुद्रास्फीति 5 फीसदी तक आने की उम्मीद की ही जा सकती है। कॉरपोरेट इंडिया इस रेट की व्याख्या इसी प्रकार कर रहा है और मानता है कि अभी इसमें और कटौती की गुंजाइश है और यदि मानसून अच्छा रहता है और मुद्रास्फीति खेल नहीं बिगाड़ती तो ये रेट कट उनकी गतिविधियों में मदद करेगा।
इसमें निवेशकों के लिए क्या है?
वर्तमान कटौती से बाजार में तत्काल कोई सुधार आने की उम्मीद नहीं की जा सकती। पिछले पांच महीनों में तीन-तीन बार 25 बेसिस अंकों की कटौती के बावजूद क्या हुआ इसे देखना जरूरी है। डॉलर के मुकाबले रुपया गिरता रहा है, कच्चा तेल मजबूती से ऊपर चढ़ रहा है और विदेशी कर्ज बाजार (खासकर जर्मनी) मजबूत मुनाफाखोरी का गवाह बना है।
इसका अर्थ निवेशकों के लिए यह है कि मुनाफा कमाने का मौका बढ़ा है और आगे भी रहेगा। दूसरे शब्दों में सुधार के अवसर अब भी कायम हैं। हालांकि इसके लिए मुद्रास्फीति और सामान्य मानसून के सूक्ष्म आंकड़ों से परिचालित लाभ की जरूरत है। निवेशकों को एक्युरल या डायमेमिक बॉन्ड फंडों में अपना पैसा लगाए रखना चाहिए और अभी इन फंडों से अल्पकालिक रिटर्न की उम्मीद नहीं करनी चाहिए। अल्पकालिक दरों में कमी की उम्मीद की जानी चाहिए बशर्ते तरलता या फिर मुद्रास्फीति का कोई मसला न खड़ा हो। इस मौके पर मध्यम या दीर्घ अवधि वाले डेट फंडों से रिटर्न के अवसर अल्पावधि वाले फंडों से बेहतर हैं। साथ ही, इस तथ्य को ध्यान में रखते हुए कि जमा दरों में आगे भी कटौती हो सकती है लोगों को बैंक में पैसे जमा करने से कहीं अलग निवेश के अवसर तलाशने होंगे।