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11 September 2020

फेक न्यूज चलाने वालों ने माफी तक नहीं मांगी: इसरो के पूर्व वैज्ञानिक नंबी नारायण का नजरिया

बात 1994 की है, जब इसरो जासूसी केस शुरू हुआ था। जिस तरह से पूरे मामले पर क्षेत्रीय मीडिया कवरेज कर रहा था, ऐसा लग रहा था कि सब कुछ बिना सोचे-समझे लिखा जा रहा है। वे इस केस को लेकर एक उपन्यास की तरह रिपोर्टिंग कर रहे थे। जिस पागलपन तक वह सोच सकते थे, उस हद तक कहानियां बनाकर लिख रहे थे। जनता को भी उन कहानियों का हर रोज एक धारावाहिक की तरह इंतजार रहता था। उदाहरण के तौर पर एक कहानी बताता हूं, जिसमें लिखा गया कि रॉकेट बनाने का फॉर्मूले चोरी छिपे भेजने के लिए टूना मछली का इस्तेमाल किया गया। उसके पेट में फॉर्मूले की जानकारियां लिखकर डाल दी गईं और कंटेनर नहीं मिलने पर, टोकरियों में रखकर तस्करी के जरिए भेजी गईं। मीडिया में दो महिलाओं की भी स्टोरी काफी अभद्रता के साथ लिखी गई।

परेशान करने वाली बात यह थी कि मीडिया में जो भी जानकारियां दी जा रहीं थी, उनकी सत्यता जानने की कोशिश नहीं की गई। ऐसा नहीं है कि यह तबाही किसी एक प्रेस की तरफ से की जा रही थी, बल्कि उस समय का कोई भी अखबार, टीवी या पत्र-पत्रिका देखिए, वे सब ऐसा ही कर रहे थे। खास बात यह थी कि सबकी खबरों का सूत्र एक ही था और सभी एक ही तरह की खबरें लिख रहे थे। किसी भी रिपोर्ट में सूत्र का नाम नहीं बताया जा रहा था। ऐसा शायद इसलिए था कि सूत्र ही खबरों को तोड़-मरोड़ रहा था। उस समय टीवी चैनल काफी कम थे। मलयालम भाषा में एशिया नेट और कुछ अंग्रेजी भाषा के चैनल ही प्रसारित होते थे। उस वक्त एशिया नेट न्यूज चैनल ने पूरे मामले पर बेहतरीन कवरेज कर सच को बाहर निकालने का काम किया। वरिष्ठ पत्रकार टी.एन.गोपाकुमार ने अपने प्रोग्राम कन्नाडी के जरिए दर्शकों को यह समझाने की कोशिश की, कैसे पूरे मामले को तोड़-मरोड़ कर पेश किया गया है। एक और अहम बात, जब सीबीआइ को पूरा मामला सौंपा गया और उसके बाद जब जांच शुरू हुई तो क्षेत्रीय भाषा की मीडिया में अचानक खबरें कम हो गईं।

इसके बाद धीरे-धीरे सभी क्षेत्रीय मीडिया में सकारात्मक खबरें आने लगीं और सच लोगों के सामने आता गया। जब खबरें अफवाहों के आधार पर लिखी जा रही थीं, उस वक्त क्षेत्रीय  पत्रकार रमन्ना, एम.पी. नारायण पिल्लै, के.एम रॉय जैसे लोग भी थे, जो कल्पनाओं के आधार पर की जा रही स्टोरी के बीच सच लाने की कोशिश कर रहे थे। इसी तरह आउटलुक मैगजीन पहला पब्लिकेशन था जिसने इसरो षड्यंत्र में शामिल आइबी अधिकारियों के नाम उजागर किए। यहां मैं एक बात कहना चाहता हूं कि पिछले कुछ वर्षों में खोजी पत्रकारिता के जरिए कई ऐसे मामले सामने आए हैं, जिसमें प्रेस ने दोषियों को न्याय की चौखट तक पहुंचाया। मेरे मामले में शुरुआत में मीडिया को गुमराह किया गया और कुछ मामलों में मीडिया ने भी सनसनी फैलाने की कोशिश की।

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प्रेस से मेरी केवल यही शिकायत है कि जब उसे सच की जानकारी मिली तो उसे अपने किए पर माफी मांगनी चाहिए थी। लेकिन एक भी समाचार पत्र ने अपने संपादकीय में न तो यह बताया कि उनके पत्रकारों ने कैसे लोगों को गुमराह किया और न ही किसी ने माफी मांगी। सुप्रीम कोर्ट ने अब पूरे मामले पर सेवानिवृत न्यायधीश डॉ डी.के.जैन के साथ भारत सरकार और केरल राज्य सरकार के सदस्यों को शामिल कर समिति का गठन कर दिया है, जो तोड़-मरोड़ कर पेश की गई स्टोरी के लिए जिम्मेदार लोगों की पहचाने करने का क्या तरीका होगा, उसका रास्ता बताएगी। यह रास्ता जितनी जल्दी सामने आएगा, उतना अच्छा रहेगा।

(लेखक इसरो के पूर्व वैज्ञानिक हैं। जासूसी मामले में इनके खिलाफ झूठी खबरें चलाई गई थीं, लेकिन सीबीआइ जांच में वे निर्दोष साबित हुए)

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TAGS: नंबी नारायण, इसरो के पूर्व वैज्ञानिक, इसरो जासूसी केस, फेक न्यूज़, भारतीय मीडिया, Nambi Narayan, former ISRO scientist, ISRO espionage case, fake news, Indian media
OUTLOOK 11 September, 2020
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