उस जख्म से कैसे उबरेगा डांगावास?
दो महीने पहले 14 मई 2015 को राजस्थान के नागौर जिले के डांगावास गांव में निर्मम तरीके से पांच दलितों की हत्या की गई थी। जमीन के एक टुकड़े को लेकर दो पक्षों में जंग हुई। सुबह 11बजे गांव की एक अवैध खाप पंचायत ने अमानवीय तरीके से दलित परिवार पर हमला कर दिया था। इस हमले में पांच दलित मारे गए और 11 लोग घायल हो गए थे। यह दलित संहार मानवता की सारी हदों को पार करने वाला था। दलित स्त्रियों के साथ यौन उत्पीड़न किया गया। दलित पुरुषों पर ट्रैक्टर चढ़ा कर उन्हें कुचल दिया गया। इस घटना में गंभीर रूप से घायल दलितों की आंखें तक फोड़ दी गईं।
पांचाराम नाम के एक दलित व्यक्ति को गोली मारी गई थी। इसी दिन डांगावास के निवासी रामपाल गोस्वामी की भी सीने पर गोली मारकर हत्या की गई थी। रामपाल की हत्या का दोष दलितों पर मढ़ दिया गया। जिसके बाद दलित समुदाय के लोगों पर हमले किए गए। यही नहीं हमले में गंभीर रूप से घायल लोगों को मेड़तासिटी के अस्पताल ले जाया गया तो वहां पर भी पुलिस की मौजूदगी में उन पर हमला किया गया, लोगों को बुरी तरह पीटा गया। घायलों को ले जा रही एंबुलेंस पर भी हमला और पथराव किया। जिससे वहां भय और आतंक का वातावरण बन गया।
थाने से महज पांच किलोमीटर दूर इस घटना को अंजाम दिया गया। पुलिस को घटनास्थल तक पहुंचती‚ इससे पहले आततायी क्रूरता के खेल को अंजाम देकर लौट चुके थे। इस निर्मम नरसंहार के विरोध की आवाज पूरे राजस्थान में उठी। लोग सड़कों पर उतर आए। मजबूरन राज्य सरकार को इसकी जांच सीबीआई को सौंपनी पड़ी। तब से मेड़तासिटी में दो पुलिस अधीक्षकों सहित तकरीबन 26 लोगों की एक विशेष सीबीआई टीम ने डेरा डाल रखा है।
11 जुलाई की सुबह मैं फिर से डांगावास पंहुचा‚ यह देखने के लिए कि अब वहां के क्या हालात हैं। शुरुआत में तो गांव का कोई भी आदमी कुछ बोलने को तैयार नहीं था। मेघवाल समुदाय के वे परिवार जिन पर हमला किया गया था, दहशत में थे। लेकिन अन्य समुदायों के लोग सामान्य जीवन यापन करते नजर आए। गांव के चौराहे पर कुछ लोग ताश खेल रहे थे। दुकानें खुली हुई थीं। लग ही नहीं रहा था कि इसी गांव में दो महीने पहले छह लोगों की हत्या की गई थी। दुःख और डर की छाया कहीं दिखी तो सिर्फ मेघवाल और गोस्वामी परिवारों के घर। मेघवाल परिवार के लोगों की सुरक्षा के लिए गांव के रामदेव मंदिर के पास एक अस्थाई पुलिस चौकी लगाई गई है, जहां आरएसी के 20 जवान और राजस्थान पुलिस के 15 जवान तैनात किए गए थे। जिन लोगों को दलितों की सुरक्षा में तैनात किया गया है वे सभी गैर जाट हैं। कोशिश की गई कि दलितों की सुरक्षा में दलित पुलिसकर्मी ही तैनात किए जाएं। पुलिस फोर्स का यह जातीय विभाजन एक अलग तरह के खतरे की ओर भी संकेत करता है।
सबसे पहले दलित बस्ती में छात्र नरेंद्र मेघवाल से मुलाकात हुई। सत्रह वर्षीय नरेंद्र गंभीर रूप से घायल हुए खेमाराम मेघवाल का बेटा है। उसके बड़े भाई गणेश राम की इस जनसंहार में मौत हो गई थी। नरेंद्र मेड़तासिटी में था जब उसे फोन पर इस नरसंहार की सूचना मिली थी। अपने दोस्त के साथ मोटर साईकिल पर सवार हो कर घटना स्थल की तरफ भागा। उसने गांव के सैंकड़ों लोगों को हथियारों के साथ जश्न मनाते हुए देखा, उनमें से कई को वह पहचानता भी है। नरेंद्र कहता है कि पुलिस अगर लंबे घुमावदार रास्ते से न आकर सही रास्ते से घटनास्थल तक पहुंचती तो उसे सारे आरोपी सामने मिल जाते लेकिन पुलिस ने जानबूझ कर देरी की और दूसरा रास्ता लिया। घटना को याद करते हुए वह फफककर रोने लगा: चारों तरफ शव बिखरे हुए थे। मेरे बड़े पिताजी रतनाराम की मौत हो चुकी थी। मेरे पापा खेमाराम लहुलुहान पड़े थे, वह होश में थे, मैं जोर-जोर से रोने लगा तो बोले- रो मत,हिम्मत रख। तब तक पुलिसवाले आ गए। नरेंद्र बताता है कि पुलिस के साथ मिलकर उसने सबको अस्पताल पंहुचाया। इकहरे बदन का यह बच्चा उस दिन सबसे हिम्मतवाला साबित हुआ। नरेंद्र ने बताया कि वह जल्द ही कॉलेज जाना शुरू करेगा। हमले में बुरी तरह घायल हुए खेमाराम से भी मेरी मुलाकात हुई। मैंने जब उनसे कहा कि कहीं आप लोग घबरा कर समझौता तो नहीं कर लेंगे, तमतमाते हुए खेमाराम ने कहा – भले ही मेरी दोनों टांगे कट जाएं या जान ही क्यों ना चली जाए, समझौता करने का सवाल ही नहीं उठता है। खेमाराम अब भी खाट पर ही हैं। उनके एक पांव में स्टील की रॉड लगी हुई है।
उस हमले में घायल सोनकी देवी, बिदामी देवी, जसौदा देवी, भंवरकी देवी और श्रवणराम से भी मुलाकात हुई। वे सभी खुद कुछ भी नहीं कर सकते। सभी को गंभीर चोटें आई हैं। यहां अर्जुन राम भी मिला। जिसके बयान को आधार बना कर पुलिस ने प्राथमिकी दर्ज की थी। अर्जुनराम का कहना है, मुझे होश ही नहीं था कि वे क्या पूछ रहे थे और मैं क्या जवाब दे रहा था, पुलिस ने अपनी मनमर्जी से कुछ भी लिख लिया और मुझसे दस्तखत करवा लिए।
हालांकि इस घटना के बाद लगभग पूरा थाना निलंबित किया जा चुका है। मामले की जांच पहले सीबीसीआईडी और बाद में सीबीआई को सौंप दी गई।
कथित दलितों की गोली के शिकार हुए रामपाल गोस्वामी की हत्या अब भी यहां एक पहेली है। मृतक रामपाल की विधवा मां कहती है, हमारी तो मेघवालों से कोई लड़ाई ही नहीं है, वे मेरे बेटे को क्यों मारेंगे? दलितों पर दर्ज प्राथमिकी में बतौर गवाह सज्जनपुरी का कहना है कि वह तो उस दिन डांगावास में था ही नहीं। इस मामले में जिन लोगों पर आरोप है उनमें गोविंदराम, बाबूदेवी, सत्तूराम, दिनेश, सुगनाराम, कैलाश, रामकंवरी और नरेंद्र सहित 8 लोग तो घटनास्थल पर मौजूद थे ही नहीं। ये लोग सीधे अस्पताल पहुंचे थे फिर भी हत्या के मुकदमे में आरोपी बना लिए गए।
रामपाल गोस्वामी की हत्या में मुख्य आरोपी बनाये गए गोविंदराम मेघवाल ने बताया कि सीबीआई ने उससे और किशनाराम से नार्को टेस्ट कराने के लिए सहमति पत्र पर हस्ताक्षर करवाए हैं। सीबीआई ने पीड़ित दलितों से भी अलग अलग बयान लिए हैं।
मेघवाल समुदाय के लोग अपने बच्चों की सुरक्षा को लेकर बेहद चिंतित हैं। घटना में अपने भाई को खोनेवाली पप्पुड़ी देवी ने बेटे को पढ़ने के लिए अजमेर भेज दिया है।
गांव के लोगों से पता चला कि जिस जमीन को लेकर जंग हुई थी, उस जमीन को कुर्क कर दिया गया है। जबकि दोनों पक्षों में समझौते की शर्त में यह भी शामिल था कि दलितों को उनकी जमीन पर अधिकार दिया जाएगा। राज्य सरकार ने दलितों के आक्रोश को शांत करने के लिए जो वादे किए वे पूरे नहीं हुए। मृतकों के आश्रितों को नौकरी देने की कोई प्रक्रिया शुरू नहीं की गई। कुछ घायल ऐसे भी मिले जिन्हें मुआवजा नहीं दिया गया। पीड़ित दलित परिवारों को सिर्फ एक बार रसद विभाग की ओर से खाने पीने के सामान की मदद दी गई। जबकि पीड़ित लोग जब तक चलने फिरने में सक्षम नहीं हो जाते तब तक उन्हें राशन दिया जाना चाहिए। अवैध खाप पंचायत करनेवालों के विरुद्ध कोई कार्रवाई नहीं की गई। सबसे बड़ी चिंता तो डांगावास के पीड़ित दलित परिवारों की सुरक्षा को ले कर है। अभी तो सीबीआई का डेरा वहां है और अस्थाई चौकी भी लगी हुई है लेकिन सुरक्षा के स्थाई बंदोबस्त के लिए यहां एक स्थाई पुलिस चौकी बनायी जानी चाहिए। मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक सीबीआई ने अबतक जेल में बंद आरोपियों से ही पूछताछ की है। डांगावास पंचायत क्षेत्र के भूमि संबंधी दस्तावेज भी खंगाले हैं।
कुल मिलाकर सीबीआई जांच जारी है। डांगावास के मेघवाल समुदाय के दलित लोगों के चेहरे पर अब भी भय की छाया देखी जा सकती है। बाकी गांव अपनी दिनचर्या में मगन है।