Advertisement
16 May 2015

राजस्थान में दलित क्यों असुरक्षित

पीटीआइ

 

इनमें दलित परिवारों पर हमले, उनकी जमीनों पर कब्जे करने, उनकी महिलाओं से बलात्कार और दलित दूल्हों को घोड़ी से उतार देने की घटनाएं शामिल हैं। ऐसा लग रहा है जैसे राजनीति में दलितों का कोई पैरोकार नही है, न ही वे अपनी आवाज उठा पा रहे हैं। ऐसा इसलिए कि सवर्ण जातियां और  दबंग तबके मानते हैं कि उन्हीं की गोलबंदी ने चुनाव में वसुंधरा राजे की सरकार गठित करने के लिए वोट बरसाए। उसमें दलितों, आदिवासियों और अल्पसंख्यकों जैसे कमजोर तबकों की कोई भूमिका नहीं थी। इन्हीं की कड़ी में डांगावास की घटना हुई जिसमें दबंग जाट जाति के एक व्यक्ति की हत्या के बाद तीन दलित ट्रैक्टर से कुचलकर मार डाले गए। बीस लोग घायल हुए और दलित महिलाओं के साथ बलात्कार की घटनाएं भी बताई गईं। बीस लोग घायल बताए जाते हैं और आसपास भी स्थिति तनावपूर्ण है।

ताजा घटना राजस्‍थान के नागौर जिले में हुई, जो किसान राजनीति का केंद्र माना जाता है। यही वह जिला है, जहां से पहले प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू ने पंचायती राज प्रणाली को राष्ट्र के नाम समर्पित किया था। लेकिन अब बदले हुए राजनीतिक माहौल में दलित हाशिए पर हैं। सत्तारूढ़ भारतीय जनता पार्टी बोल नहीं रही है, और कांग्रेस भी खामोश नजर आती है।

Advertisement

इस घटना के दो-तीन दिन बाद भी पक्ष-विपक्ष का कोई प्रमुख नेता दलितों को सात्वना देने नहीं पहुंचा है। दलितों की समस्या और बढ़ जाती है, जब अनुसूचित जाति के 30 विधायक भी सब कुछ खामोशी से देखते रहते हैं। डांगावास गांव नागौर जिले के उस विधानसभा क्षेत्र में आता है, जहां से सत्तारूढ़ भाजपा के विधायक सुखराम हैं। वह खुद भी दलित हैं, लेकिन इन तीन दलितों की हत्या पर चुप्पी साधे हुए हैं।

इससे पहले 18 फरवरी को नागौर के ही बसवानी गांव में जमीन को लेकर एक दलित परिवार का घर जला दिया गया। इसमें एक महिला की मौत हो गई थी। लेकिन पुलिस ने कोई कार्रवाई नहीं की और दलितों को धरना देना पड़ा। पिछले माह नागौर के एक गांव में 2 दलित दूल्हों को सरेराह घोड़ी से उतारकर अपमानित किया गया। तब भी राजनीति मौन साधे रही। ऐसे ही गत 30 अप्रैल को करौली जिले के एक गांव में डकैतों ने दलितों को बंधक बनाया और दो महिलाओं के साथ बलात्कार किया। राज्य के और भी जिलों में दलितों के सा‌माजिक बहिष्कार और ज्यादती करने की शिकायतें मिल रही हैं, लेकिन न कोई आंदोलन है, न कहीं कोई प्रतिकार।

अनुसूचित जाति और जनजाति के अध्यक्ष पी.एल. पूनिया नागौर के डांगावास गांव के लिए रवाना हो गए हैं जहां यह घटना हुई है। एक उनकी भी रिपोर्ट आ जाएगी। उसके बाद पक्ष-विपक्ष की राजनीति कुछ गरमाएगी, फिर ठंडी पड़ जाएगी। लेकिन जब तक दलित अपनी जमीन पर खुद नहीं जागेगा, तब तक भला क्या होगा?

अब आप हिंदी आउटलुक अपने मोबाइल पर भी पढ़ सकते हैं। डाउनलोड करें आउटलुक हिंदी एप गूगल प्ले स्टोर या एपल स्टोरसे
TAGS: राजस्थान, नागौर, डांगावास, बसवानी गांव, वसुंधरा राजे, जवाहर लाल नेहरू, भारतीय जनता पार्टी, पंचायती राज प्रणाली, विधायक सुखराम, दलित, आदिवासी, दलित दूल्हे, सवर्ण जातियां, पी.एल. पूनिया
OUTLOOK 16 May, 2015
Advertisement