‘ट्रंप कार्ड’ से मुंह पर ताला
राष्ट्रपति पद संभालने से पहले ही डोनाल्ड ट्रंप ने अंतरराष्ट्रीय टी.वी. समाचार चैनल ‘सीएनएन’ को ‘फर्जी’ कहने के साथ पहली प्रेस कांफ्रेंस में चैनल की प्रमुख पत्रकार को सवाल पूछने से भी रोक दिया। अमेरिकी संविधान में अभिव्यक्ति का अधिकार सबसे शीर्ष स्थान पर है। अमेरिकी राष्ट्रपति रिचर्ड निक्सन के सत्ताकाल में वाटरगेट कांड और टेलीफोन टेपिंग के मामले से लेकर ट्रंप विरोधी हिलेरी के पति बिल क्लिंटन के सेक्स कांड के भंडाफोड़ पर भी किसी मीडिया को इस तरह सार्वजनिक ढंग से अपमानित और प्रतिबंधित नहीं किया गया। ब्रिटेन में प्रधानमंत्रियों के ही नहीं प्रिंसेस डायना और प्रिंस चार्ल्स तक पर कितनी ही आपत्तिजनक समझी जाने वाली बातें मीडिया में आती रहीं, लेकिन तानाशाही ढंग से उनका मुंह बंद नहीं किया गया। कानून के शिकंजे में आने के बाद अवश्य मीडिया सम्राट मुर्डोक को अपना एक अखबार बंद करना पड़ा, लेकिन उनकी प्रकाशन-प्रसारण कंपनी आज भी चल रही है।
कट्टर कम्युनिस्ट अथवा राजनीतिक विद्रोह से प्रभावित देशों में राष्ट्राध्यक्षों के विरुद्ध अभिव्यक्ति पर अंकुश है। लेकिन चीन या रूस में ही हाल के वर्षों में शासन से जुड़े मंत्रियों और वरिष्ठ अधिकारियों की गड़बड़ियों की आलोचना हो रही है। इसमें कोई शक नहीं कि भारत के पड़ोसी देश पाकिस्तान, बांग्लादेश, नेपाल, श्रीलंका आदि में समय-समय पर प्रेस को नियंत्रित किया जाता रहा है। भारत में आपातकाल की सेंसरशिप की लगभग डेढ़-दो वर्ष की अवधि में मीडिया पर कड़ा अंकुश रहा। पहले या बाद में प्रादेशिक या राष्ट्रीय स्तर पर दबाव की परिस्थिति आती-जाती रही है। लेकिन यह संस्थान, संपादक, प्रकाशक पर निर्भर रहा है कि वह कितना झुकें या दबें।
फिर भी यह मानना होगा कि भारत में मीडिया सर्वाधिक स्वतंत्र है। इस पृष्ठभूमि में दुनिया के सबसे शक्तिशाली देश अमेरिका में सत्ता संभालने जा रहे नए राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप की ‘आतंक शैली’ अतंरराष्ट्रीय लोकतांत्रिक व्यवस्था के लिए खतरे की घंटी है। ट्रंप अपने मित्र और शत्रु देशों में भी मीडिया को अपने ढंग से चलाने के षड्यंत्र करवा सकते हैं। अमेरिकी चुनाव में यदि ट्रंप के विरुद्ध कोई षडयंत्र हुआ, तो उसकी जांच के साथ दोषी दंडित किए जा सकते हैं, लेकिन संपूर्ण मीडिया को दबाने-कुचलने को उनका मीडिया भी बर्दाश्त नहीं करेगा।