आवरण कथा/ बेंजामिन नेतन्याहूः संकट और सवाल कई
इज्राएल के सबसे लंबे समय, लगभग 17 साल तक प्रधानमंत्री पद पर काबिज 75 वर्षीय बेंजामिन नेतन्याहू इन दिनों बाहर-भीतर कई मुद्दों से घिरे हुए हैं। लेकिन उनके सबसे बड़े संकटमोचन अब अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प बने हुए हैं, जिनसे अगले हफ्ते 7 जुलाई के आसपास न्यूयॉर्क में गजा पर लड़ाई बंदी को लेकर बातचीत होनी है। संगीन मुद्दों में उन पर देश में चल रहा भ्रष्टाचार का मुकदमा है। उन पर तीन बड़े मामले केस संख्या 1000, केस संख्या 2000 और केस संख्या 4000 चल रहे हैं। इन सभी में घूसखोरी, धोखाधड़ी और विश्वासघात के अभियोग हैं। इन मामलों में तीन-चार बड़े अरबपतियों से शानदार तोहफे लेना, मीडिया कवरेज अपने हक में करने के लिए दबाव डालना तथा हेरफेर करना और पक्ष में समाचार कवरेज के बदले में एक दूरसंचार कंपनी को नियम-कानूनों के जरिए मुनाफा दिलाना वगैरह है। तोहफों का मामला अरबों डॉलर का है, जिसमें महंगे शिगार भी शामिल हैं। इनमें देसी के अलावा कुछ बहुराष्ट्रीय कंपनियां भी हैं, जिन्हें फायदा दिलाने के लिए नीतियों में फेरबदल किया गया है। फिर, मुख्यधारा के मीडिया घरानों को अपने पक्ष में खबरें चलाने के लिए आकर्षक पेशकश का भी मामला है। उन पर ये मामले 2019 से जारी हैं। नेतान्याहू इन सभी आरोपों से इनकार करते हैं और मुकदमों को उन्हें सत्ता से हटाने के लिए राजनैतिक बदले की कार्रवाई बताते हैं।
ट्रम्प ने 26 जून को इज्राएल के लोगों से अपील की कि नेतन्याहू के भ्रष्टाचार के मुकदमे को खारिज कर दें या उन्हें माफ कर दें। उन्होंने इन मामलों को "विच-हंट" या बदले की कार्रवाई कहा। ट्रम्प ने अपने ट्रुथ सोशल प्लेटफॉर्म पर लिखा, "बीबी नेतन्याहू का मुकदमा फौरन खारिज किया जाना चाहिए या एक महान नायक को माफी दी जानी चाहिए, जिसने देश (इज्राएल) के लिए बहुत कुछ किया है।" उन्होंने यह भी लिखा कि उन्हें पता चला है कि नेतन्याहू जल्द ही अदालत में पेश होने वाले हैं और "इतना कुछ देने वाले शख्स के लिए ऐसा विच-हंट मेरे लिए अकल्पनीय है।"
लेकिन येरुशलम की अदालत से नेतन्याहू को महज हफ्ते भर की मोहलत मिली। उनकी ओर से अर्जी लगाई गई थी कि ईरान और गजा के जंगी हालात तथा अंतरराष्ट्रीय व्यस्तताओं की वजह से उनकी पेशी और जिरह को अनिश्चित काल तक मुल्तवी कर दिया जाए। लेकिन 28 जून को अदालत ने कहा कि लंबा वक्त बीत गया है और अब ज्यादा नहीं टाला जा सकता क्योंकि प्रथम दृष्टया सबूत काफी गहरे हैं। इस बीच देश में ईरान के मिसाइलों से मची तबाही का भी दोषी उन्हें ठहराया जा रहा है। हाल के कुछेक जनमत सर्वेक्षणों में नेतन्याहू की लोकप्रियता में 80 फीसदी तक उछाल की बात बताई गई है, लेकिन विपक्ष इन सर्वेक्षणों को मैनेज किया हुआ कहता है।
मदद सामग्री के लिए बच्चों की कतार
इधर, अदालती फैसले के फौरन बाद 29 जून को इज्राएल ने गजा में फिर बमबारी की, जिसमें 72 लोगों के जान जाने की खबरें हैं। उसी के बाद ट्रम्प ने फौरन अपने सोशल मीडिया पर पोस्ट किया कि ‘‘रोको, रोको, गजा से डील करो, यह सब खत्म करो।’’ शायद इसी के बाद वे ट्रम्प से उनके राष्ट्रपति बनने के बाद तीसरी बार मिलने वाले हैं। वे फरवरी में उनसे मिलने वाले सबसे पहले नेता थे।
दूसरे सियासी मसले
दरअसल नेतन्याहू का 2022 से मौजूदा प्रधानमंत्री कार्यकाल कई विवादों से घिरा रहा है। उनकी सरकार अल्पमत की है, जो कुछ अति-दक्षिणपंथी पार्टियों के सहारे टिकी हुई है, जिसकी तीखी आलोचना देश और बाहर खासकर यूरोपीय देशों में होती है। कहा जाता है कि अपने ऊपर मुकदमों से परेशान होकर ही पिछले साल उन्होंने न्यायिक सुधार की पहल की थी, जो दूसरा सबसे विवादास्पद मसला है। इसको लेकर लोगों में भारी नाराजगी है। उनकी सरकार ने इज्राएल के सुप्रीम कोर्ट की शक्तियों को कमजोर करने और न्यायिक नियुक्तियों पर सरकारी नियंत्रण बढ़ाने की गरज से नया कानून पेश किया था। उनके आलोचक इसे देश के लोकतांत्रिक ढांचे और सत्ता-संतुलन के लिए गंभीर खतरा बताते हैं।
कथित न्यायिक सुधार के विरोध में ऐसे प्रदर्शन हुए, जो इज्राएल के इतिहास में कम ही देखे गए हैं। इन प्रदर्शनों में पूर्व फौजी तथा पुलिस अधिकारियों, अर्थशास्त्रियों और टेक्नोलॉजी के पेशेवर भी बड़ी संख्या में शामिल हुए। हर रंग-पांत के सियासी नेताओं और पार्टियां तो झंडा उठाए ही हुए हैं।
दक्षिणपंथी दलों से टकराव
नेतन्याहू अति-दक्षिणपंथी और अति-रूढ़िवादी दलों के साथ गठबंधन की वजह से भी विपक्ष और लोगों के निशाने पर हैं। बहुमत जुटाने के लिए उन्होंने इटमार बेन-ग्वीर और बेज़ेलेल स्मोट्रिच जैसे नेताओं के साथ गठबंधन किया है, जिनके फलिस्तीनियों, नागरिक स्वतंत्रता और धर्मनिरपेक्षता के खिलाफ कट्टर विचारों से देश के साथ विदेश में भी में लोगों की भौंहें तनी हुई हैं। मीडिया रिपोर्टों से पता चलता है कि कई इज्राएलियों को डर है कि सरकार में ऐसे कट्टरपंथियों की वजह से आंतरिक तनाव बढ़ रहा है और लोकतांत्रिक ढांचा कमजोर हो रहा है।
गजा का संकट
नेतन्याहू के सुरक्षा संबंधी मामले, खासकर हमास और गजा पर कार्रवाइयां भी जांच के दायरे में हैं। रिपोर्टों के मुताबिक, आलोचकों की दलील है कि नेतन्याहू के पास हमास से निपटने की कोई दीर्घकालिक रणनीति नहीं है और न्यायिक फेरबदल जैसे घरेलू राजनैतिक उलझनों में फंसने से वे तत्काल सुरक्षा खतरों से नावाकिफ रह गए, जिसकी वजह से 7 अक्टूबर, 2023 को हमास के हमलों में गंभीर खुफिया और प्रशासनिक संबंधी खामियां उजागर हुईं। इस तरह उनकी नाकामियों का मुद्दा और बड़ा हो गया।
नेतन्याहू का रसूख भले अमेरिका की रिपब्लिकन पार्टी में बना हुआ है, लेकिन अमेरिका के बाकी सियासी सामूहों और दुनिया भर में उनकी सरकार में अतिवादी तत्वों, वेस्ट बैंक में आक्रामक नीतियों और गजा में बड़े पैमाने पर मौतों से उनके खिलाफ भारी नाराजगी है। इससे इज्राएल की राजनयिक स्थिति को जटिल बना दिया है, खासकर पश्चिमी लोकतंत्रिक देश नेतन्याहू की हरकतों से काफी असहज होते जा रहे हैं।
सुरक्षित ठिकानों की ओर जाते लोग
नेतन्याहू के सियासी तौर-तरीकों ने इज्राएल के भीतर सामाजिक विभाजन की खाई चौड़ी कर दी है। आलोचकों का कहना है कि उनके सर्वसत्तावादी रवैए से लोगों का न्यायपालिका, मीडिया और दूसरी संस्थाओं तक से भरोसा उठता जा रहा है। इसके उलट, उनके समर्थक उन्हें इज्राएली हितों की रक्षा करने वाले मजबूत नेता मानते हैं। तो, कानूनी लड़ाइयों और नीतियों में भारी फेरबदल से देश में पैदा हुआ ध्रुवीकरण नए राजनैतिक टकराव को आकार दे रहा है। अब, देखना है कि ईरान से जंग और ट्रम्प की मदद नेतन्याहू के किस हद तक काम आती है।
नेतन्याहू के 1996 से 1999 तक और फिर 2009 से 2021 तक के अपने पहले के कार्यकालों भी कम विवादों में नहीं रहे हैं। इन तमाम वजहों से उनकी तथा उनकी लिकुद पार्टी की लोकप्रियता काफी घट गई थी। कहते हैं, गजा और ईरान में हमले नहीं हुए होते तो उनके लिए मुश्किलें काफी बढ़ गई थीं। हालांकि यह दंश देश में बना हुआ है कि 7 अक्टूबर के हमास के हमले में मृतकों के अलावा जिन 251 लोगों को बंधक बना लिया था, उनमें अभी भी 49 उनके पास बताए जाते हैं।
अब ईरान पर हमले और उसमें अमेरिका की शिरकत करवाने में कामयाबी से उनकी लोकप्रियता बढ़ने की खबरों के बाद वहां मध्यावधि चुनाव कराने की बात सुर्खियों में है। वैसे, 2026 में वहां चुनाव तय हैं। एक पूर्व प्रधानमंत्री ने हाल में ब्रिटिश विदेश मंत्रालय की समिति के सामने नेतन्याहू को मानसिक तौर पर बीमार तक कह दिया। नेतन्याहू की हमेशा खूनी जंग की मानसिकता पर भी इज्राएल में नए सिरे से चर्चा है। उन पर इज्राएली खुफिया एजेंसी मोसाद के दुरुपयोग के भी आरोप हैं। उसके सहारे उन्होंने कथित तौर पर लेबनान से लेकर ईरान तक कई हत्याओं को अंजाम दिलवाया है। हालांकि देश में कुछ तबकों में उन्हें लेबनान में हिजबुल्लाह को कमजोर करने और सीरिया में असद अल बशर का तख्तापलट करवाने का श्रेय दिया जाता है और ईरान पर हमले के लिए भी पीठ ठोकी जाती है। तो, नेतन्याहू की किस्मत कैसे करवट बदलती है, यह शायद इसी पर निर्भर है कि ट्रम्प उनके लिए कितने मददगार साबित होते हैं।