बचपन में पहनने को जूते भी नहीं थे , आज इस वैज्ञानिक ने दान किए 1.1 करोड़ डॉलर
यह इस विश्वविद्यालय के इतिहास में अब तक दान में दी गई सबसे बड़ी राशि है। यूसीएलए के चांसलर जीन ब्लॉक ने कहा, मैं मणि भौमिक के कल्याणकारी नेतृत्व के लिए और यूसीएलए में यकीन दिखाने के लिए उनका शुक्रिया अदा करता हूं। विश्वविद्यालय ने एक बयान में कहा कि मणि लाल भौमिक इंस्टीट्यूट फॉर थियोरेटिकल फिजिक्स को सैद्धांतिक भौतिकी के अनुसंधान और बौद्धिक जांच के लिए विश्व का प्रमुख केंद्र बनना है।
भौमिक इंस्टीट्यूट में यहां आने वाले कई विद्वानों की मेजबानी करेगा, अकादमिक समुदाय के लिए गोष्ठियां और सम्मेलन आयोजित करेगा और समुदाय को यूसीएलए के भौतिकविदों द्वारा की गई वैग्यानिक प्रगति के बारे में बताने के लिए एक सार्वजनिक संपर्क कार्यक्रम भी आयोजित करेगा। भौमिक ने बेहद गरीबी से एक प्रख्यात वैज्ञानिक बनने तक का सफर तय किया है। उन्होंने लेजर तकनीक विकसित करने में अहम भूमिका निभाई, जिससे लेजिक आई सर्जरी का रास्ता खुल गया। पश्चिम बंगाल के एक सुदूर गांव में पैदा हुए भौमिक बचपन में छप्पर की छत वाली और मिट्टी से बनी झोपड़ी में चटाई पर सोते थे। वहां वह अपने माता-पिता और छह भाई-बहनों के साथ रहते थे। यूसीएलए के बयान में उन्होंने कहा, 16 साल का होने तक मेरे पास एक जोड़ी जूते भी नहीं थे। मैं चार मील चलकर स्कूल जाता था और नंगे पैर ही वापस आता था। प्रख्यात भौतिकविद सत्येंद्र बोस के नेतृत्व में पढ़ते हुए उन्होंने कलकत्ता विश्वविद्यालय से मास्टर डिग्री ली। वर्ष 1958 में, भौमिक आईआईटी खड़गपुर से डॉक्टरेट करने वाले और फिजीक्स में डॉक्टरेट करने वाले पहले छात्र बन गए थे। भौमिक 1959 में यूसीएलए आए थे। उनके हवाले से बयान में कहा गया कि उस समय उनकी जेब में सिर्फ तीन डॉलर थे। वह स्लोन फाउंडेशन की पोस्ट डॉक्टरल फैलोशिप पर वहां आए थे। उनके लिए हवाई जहाज का किराया उनके गांव के लोगों ने जुटाया था।
वर्ष 1961 में जेरॉक्स इलेक्टो-ऑप्टिकल सिस्टम्स से बतौर लेजर साइंटिस्ट जुड़ने वाले भौमिक ने 1973 में, दुनिया के पहले एक्सिमर लेजर के समग्र प्रदर्शन की घोषणा की। यह पराबैंगनी लेजर का एक स्वरूप है, जिसका उपयोग अब उच्च सटीकता के लिए मशीनों में और जैविक उतकों को सफाई से काटने के लिए किया जाता है। अमेरिकन फिजिकल सोसाइटी और इंस्टीट्यूट ऑफ इलेक्ट्रिककल एंड इलेक्ट्रॉनिक्स इंजीनियर्स के फेलो भौमिक को 2011 में भारत ने पदमश्री से नवाजा था। उन्होंने कहा, इस क्षेत्र के लिए धन जुटाना बहुत मुश्किल है क्योंकि लोग नहीं जानते कि सैद्धांतिक भौतिक शास्त्री करते क्या हैं? लेकिन हमारे अस्तित्व से जुड़े मूल सवालों के जवाब भौतिकी में हैं। जरा कल्पना कीजिए कि ये सवाल यहां यूसीएलए में सुलझाए जा सकते हैं।