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15 October 2015

भारत को 50 करोड़ डॉलर की सैन्य मदद देने को तैयार थे कैनेडी

गूगल

कैनेडी की हत्या के कारण यह योजना सिरे नहीं चढ़ सकी। इसमें एक अन्य कार्यक्रम के तहत 12 करोड़ डॉलर की सहायता भी शामिल थी, जो अमेरिका और ब्रिटेन आधी-आधी देने वाले थे। किताब में उस दौर में भारत और अमेरिका के संबंधों में जबर्दस्त सुधार आने का दावा करते हुए कहा गया है कि यह करार न होने के कारण दोनो देशों ने संबंधों को बेहतर बनाने का एक अवसर गंवा दिया।

सीआईए के पूर्व अधिकारी ब्रूस रिडेल ने अपनी नई किताब में यह बात कही है। ‘जेएफकेज फोरगॉटन क्राइसेस : तिब्बत, द सीआईए एंड द साइनो इंडियन वॉर’ शीर्षक की यह किताब नवंबर में उपलब्ध होगी। इसमें कहा गया है कि भारत को दिए जाने वाले इस भारी सैन्य सहायता पैकेज के बारे में अंतिम फैसला 26 नवंबर, 1963 को कैनेडी के साथ व्हाइट हाउस में होने वाली एक बैठक में लिया जाना था, लेकिन इससे कई दिन पहले ही डलास में कैनेडी की हत्या कर दी गई।

किताब के अनुसार तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू के नेतृत्व में भारत सरकार 1.3 अरब डॉलर का सहायता पैकेज मांग रही थी मगर नई दिल्ली और वाशिंगटन के बीच गहन विचार-विमर्श के बाद दोनों देश 50 करोड़ डॉलर के सैन्य सहायता पैकेज पर राजी हुए। किताब के अनुसार राष्ट्रीय सुरक्षा कार्य परिपत्र सं 209 में भारत को जेएफके द्वारा 10 दिसंबर, 1962 को सैन्य सहायता योजना को मंजूरी दी गई थी। किताब में रिडेल ने लिखा है, ऐसी योजना थी कि अमेरिका भारत को हिमालयी क्षेत्र की हिफाजत के लिए छह नई पर्वतीय सैन्य इकाइयां बनाने और उन्हें साजो-सामान से लैस करने में मदद देगा, भारत को अपनी उत्पादन क्षमता बढ़ाने और यूएस-यूके वायु सुरक्षा कार्यक्रम के लिए तैयार होने में मदद देगा।

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इसके अनुसार,  पहले दो मिशन भारत को उसकी क्षमता निर्माण में मदद देने के लिए थे, जबकि तीसरा भारत में संयुक्त अमेरिकी ब्रिटिश सेना अभ्यास के लिए था। रिडेल लिखते हैं कि कैनेडी चाहते थे कि 12 करोड़ डॉलर का यह वित्तीय कार्यक्रम ब्रिटेन और उसके राष्ट्रमंडल सहयोगियों के साथ आधा-आधा बांटा जाए। रिडेल लिखते हैं कि नेहरू इस प्रस्तावित सहायता पैकेज से निराश थे क्योंकि वह इससे कहीं अधिक सैन्य सहायता और दीर्घावधि पैकेज चाहते थे। मई, 1963 में रक्षा उत्पादन के लिए नए भारतीय मंत्री टी.टी. कृष्णमाचारी वाशिंगटन आए थे और भारत की तरफ से 1.3 अरब डॉलर का सहायता कार्यक्रम संबंधी प्रस्ताव उनके सामने रखा था। इस बारे में दोनों पक्षों के बीच बातचीत के बाद पांच वर्ष की अवधि में 50 करोड़ डॉलर के सहायता पैकेज पर सहमति बनी, लेकिन इसकी घोषणा की जाती इससे पहले ही कैनेडी की हत्या कर दी गई। रिडेल के अनुसार कैनेडी के शासन के अंतिम वर्ष में भारत के साथ अमेरिका के संबंधों, जिनमें सैन्य क्षेत्र भी शामिल था, में नाटकीय रूप से सुधार आया था। वह लिखते हैं कि 1963 में अमेरिका, ब्रिटेन, आस्ट्रेलिया और कनाडा के पायलट भारत में बमवर्षक और जेट लड़ाकू विमानों का प्रशिक्षण ले रहे थे, जिनकी आपूर्ति इन्ही देशों द्वारा की गई थी।

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TAGS: भारत, अमेरिका, जॉन एफ कैनेडी, भारत-चीन युद्ध, जवाहर लाल नेहरू, सैन्य सहायता, India, United States, John F. Kennedy, the Indo- China war, Jawaharlal Nehru, logistical support
OUTLOOK 15 October, 2015
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