भारत में मोदी की प्रगति वैश्विक नेतृत्व के लिए जरूरी: बर्न्स
पूर्व उप विदेश मंत्री विलियम बर्न्स ने कहा, सुधारों की दिशा में मौजूद विपरीत परिस्थितियों के बावजूद, मैं उनके दृढ़ संकल्प और आशावाद से हैरान था। मोदी सरकार के एक साल के कार्यकाल का विश्लेषण करने के लिए बर्न्स ने एक ई-बुक में लिखा, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की उनके देश में प्रगति वैश्विक साझेदारी और नेतृत्व की जिम्मेदारी उठाने के लिए बेहद जरूरी है। यह अमेरिकियों और भारतीयों के संबंधों को मजबूत करने के लिए भी बेहद जरूरी है।
उप विदेश मंत्री के रूप में बर्न्स ओबामा प्रशासन के पहले वरिष्ठ अधिकारी थे, जिन्होंने मोदी द्वारा पिछले साल मई में पदभार संभाले जाने के बाद उनसे मुलाकात की थी। बर्न्स ने लिखा, प्रधानमंत्री मोदी ने यह बिल्कुल स्पष्ट कर दिया था कि उनकी निगाहें अपने देश के भविष्य पर मजबूती के साथ टिकी हैं। भारत का वादा पूरा करने का उनका संकल्प और अमेरिका के साथ रणनीतिक साझेदारी के नारे को मूर्त रूप देने का उनका संकल्प एकदम स्पष्ट था।
बर्न्स ने कहा कि राष्ट्र प्रमुखों के दौरों और उच्च स्तरीय रणनीतिक वार्ताओं से यह पहले से कहीं अधिक स्पष्ट हो गया कि आगामी प्रशांत शताब्दी में अमेरिकी और भारतीय हितों में समागम बढ़ रहा है। उन्होंने कहा, इन साझा हितों को व्यावहारिक उपलब्धियों और एक साझे भविष्य के रूप में बदलने का काम दोनों नेताओं और दोनों समाजों के सामने है। मैं और ज्यादा महत्वपूर्ण दीर्घकालीन रणनीतिक निवेश के बारे में नहीं सोच सकता।
कार्नेगी में एक शोधकर्ता मिलन वैष्णव ने कहा कि प्रथम वर्ष बहुत व्यस्तता भरा रहा है, जिसमें वृहद अर्थव्यवस्था में स्थिरता लाकर स्पष्ट लाभ प्राप्त करने, विदेशों में भारत की मौजूदगी में नई ऊर्जा डालना और पुरानी (या गैर उत्पादक) नीतियों के जाल को साफ करने का काम किया गया। वैष्णव ने लिखा कि नई नीतिगत पहलों की घोषणा के मामले में मोदी सरकार सक्रिय रही है, शायद अति सक्रिय भी।
मेक इन इंडिया से लेकर एक्ट ईस्ट तक सरकार ने घरेलू और अंतरराष्ट्रीय क्षेत्रों दोनों में ही नीतियों की सशक्त शुरूआत की है। वैष्णव ने कहा, हालांकि, नारेबाजी को क्रियांवयन और सही ढंग से निष्पादन की जगह नहीं लेनी चाहिए और कई मामलों में सरकार की ओर से आने वाले वाक्चातुर्य ने जमीनी स्तर पर बदलाव की गति को कहीं पीछे छोड़ दिया है। उन्होंने कहा कि एक बड़ी चुनौती, जो आगे तक चलेगी, वह भारत की कमजोर शासन क्षमता है।
उन्होंने कहा कि सरकार ने शासन की गुणवत्ता सुधारने के लिए कदम उठाए हैं। मोदी खुद को प्रधानमंत्री न कहकर भारत का प्रधान सेवक कह रहे हैं। फिर भी व्यापक और व्यवस्थागत प्रशासनिक सुधार अब तक इस सरकार का प्रतीक नहीं बन पाए हैं।