स्वस्तिक मामला: छात्र के निलंबन को निरस्त करने की अपील
अमेरिका के कॉलेजों और विश्वविद्यालयों में लोगों के अधिकारों की रक्षा के लिए आवाज उठाने वाली फाउंडेशन फॉर इंडीविजुअल राइट्स इन एजुकेशन (फायर) ने कहा, जीडब्ल्यूयू हजारों वर्ष के इतिहास को नजरअंदाज नहीं कर सकती और यह सिर्फ इस आधार पर स्वस्तिक के सभी प्रयोगों पर रोक नहीं लगा सकती कि इसका इस्तेमाल नाजी जर्मनी द्वारा किया जाता था।
फायर के प्रोग्राम अधिकारी और अटॉर्नी अरि कोन ने कहा, यह विडंबना ही है कि छात्र के खिलाफ जो आरोप लगाए गए हैं, वह दरअसल वही बातें समझाने की कोशिश कर रहा था। वह बात है- संदर्भ महत्वपूर्ण है और स्वास्तिक के इतिहास के बारे में बहुत कुछ सीखा जाना बाकी है। 16 मार्च को इस छात्र ने कांस्य का बना एक छोटा सा भारतीय स्वस्तिक (हिंदुओं और बौद्ध लोगों के लिए पवित्र चिन) जीडब्ल्यूयू के इंटरनेशनल हाउस के रेजीडेंस हॉल के सूचना बोर्ड पर लगा दिया था।
एक मीडिया विग्यप्ति में कहा गया कि वह छात्र अपने दोस्तों और सह-निवासियों को इस चिन की उत्पत्ति के बारे में शिक्षित करना चाहता था। उसने यह जानकारी वसंत की छुट्टियों में भारत की यात्रा के दौरान जुटाई थी। मीडिया विग्यप्ति में कहा गया कि इस छात्र ने अपनी भारत यात्रा के दौरान जाना था कि स्वस्तिक का इस्तेमाल नाजी जर्मनी द्वारा किया जाता था लेकिन इस चिन का कई संस्कृतियों में एक पुराना इतिहास है। इन संस्कृतियों में यह चिन्ह सौभाग्य और सफलता का प्रतीक माना जाता है।
चिन बोर्ड पर लगाए जाने के बाद एक छात्र ने इसकी सूचना जीडब्ल्यूयू पुलिस विभाग को दी थी। विश्वविद्यालय ने अनुशासन संबंधी पांच आरोपों का निष्कर्ष लंबित होने के बावजूद कथित तौर पर छात्र को निलंबित कर दिया और विश्वविद्यालय के आवास से निकाल दिया। विश्वविद्यालय ने इस घटना की जानकारी डिस्टिक्ट ऑफ कोलंबिया की पुलिस को दी ताकि संभावित घृणा अपराध के तहत इसकी जांच की जा सके।
फायर ने विश्वविद्यालय से अपील करते हुए 27 मार्च को जीडब्ल्यूयू के अध्यक्ष स्टीवन नैप को पत्र लिखा कि छात्र के खिलाफ लगाए गए आरोपों को तत्काल हटा लिया जाए। फायर के पत्र में कहा गया कि किसी छात्र की अभिव्यक्ति की गतिविधि की गलत व्याख्या के कारण उसे दंडित किया जाना उच्च शिक्षा के एक संस्थान के उद्देश्य और मूल्यों के लिए अभिशाप है।
कोन ने कहा, जीडब्लयूयू को अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के अपने सुस्पष्ट वादों का सम्मान करना चाहिए। विश्वविद्यालय ने इस मामले में टिप्पणी करने से इंकार करते हुए कहा है कि वहां धार्मिक प्रतीक पर प्रतिबंध का कोई कदम नहीं उठाया गया। जॉर्ज वाशिंगटन यूनिवर्सिटी के मीडिया संबंधों के कार्यालय ने कहा, हम किसी छात्र विशेष के मामलों पर टिप्पणी नहीं करते। विश्वविद्यालय ऐसे मामलों पर प्रतिक्रिया देने के लिए स्थापित प्रक्रिया का पालन करता है, जिसका वर्णन छात्र आचार संहिता में है।
विश्वविद्यालय ने एक बयान में कहा, विश्वविद्यालय ने न तो धार्मिक प्रतीकों को प्रतिबंधित किया है और न ही वह ऐसी कोई कोशिश कर रहा है। छात्र संगठन और छात्र अपनी रूचि के सभी सवालों की जांच करने और उनपर चर्चा करने के लिए स्वतंत्र हैं। वह अपनी राय को सार्वजनिक तौर पर और निजी तौर पर व्यक्त करने के लिए भी स्वतंत्र हैं। इसमें कहा गया, वह व्यवस्थागत तरीके से विभिन्न ऐसे कामों को समर्थन देने के लिए स्वतंत्र हैं, जो संस्थान के नियमित एवं अनिवार्य कामकाज में बाधा नहीं पहुंचाते।