दो महीने के लॉकडाउन में चीन ने कोरोना से अपनी 1.4 अरब आबादी को इस तरह बचाया
अपने सौ साल के इतिहास में सबसे बड़ी कोराना वायरस की महामारी से लड़ने के लिए चीन को लॉकडाउन शुरू किए दो महीने हो चुके हैं। इस दौरान चीन में 80,000 से ज्यादा लोग कोरोना वायरस से संक्रमित मिले और 3000 से ज्यादा लोगों की जान चली गई।
हुबेई को बाकी चीन से अलग कर दिया
कोरोना वायरस की चपेट में सबसे पहले आने वाली हुबेई प्रांत की राजधानी वुहान और अन्य शहरों में लॉकडाउन के इन आठ हफ्तों के दौरान जिंदगी सामान्य नहीं रही। इसके साथ ही चीन ने देश के बाकी हिस्सों को सेनेटाइज और यानी क्वैरेंटाइन करने का जोरदार अभियान चलाया ताकि वायरस को अपनी 1.4 अरब की आबादी में फैलने से रोका जा सके।
चीन में जैसे सब कुछ थम गया
वायरस के कारण घबराए दोस्तों के भारत लौटने और परिवारीजनों की चिंता के कारण मुझे भी दूसरों की तरह वापस आ जाना चाहिए था लेकिन मीडिया प्रोफेशनल होने के कारण कर्तव्य की मांग और पेड लीव रद्द होने की आशंका के कारण मुझे इसी महानगर में रुकना था। मेरा जीवन वहां उतना खराब नहीं रहा लेकिन किसी भी अनहोनी की अनिश्चितता और आशंका हमेशा बनी रही। उस समय कोराना वायरस के सबसे खतरनाक दौर में चीन में सब कुछ थम गया।
लॉकडाउन के बावजूद जिंदगी सुचारु
बीते 23 जनवरी को शटडाउन के बाद कुछ दिनों तक मैं अनिश्चितता के महासागर में तैरता रहा। लेकिन रोजमर्रा की जिंदगी को सुचारु करने के लिए स्थानीय प्रशासन के प्रबंधन से राहत मिली। पहले सप्ताह के दौरान चीन की राजधानी के कम प्रभावित क्षेत्रों में घर में कैद रहने की कोई अनिवार्यता नहीं थी। शहर के भीतर आने-जाने पर भी कोई पाबंदी नहीं थी। संयोग से चीन के नव वर्ष की छुट्टियां इसी पहले सप्ताह के दौरान पड़ीं। अधिकांश दुकानें और रेस्टोरेंट बंद थे। कोरोना से निपटने के लिए शॉपिंग मॉल्स, मूवी थिएटर, एम्यूजमेंट पार्क और ट्यूरिस्ट प्लेसेज भी बंद थे। लेकिन बीजिंग का पब्लिक ट्रांसपोर्ट नेटवर्क ब्रॉबडिंगेजियन और एप बेस्ड टेक्सी सर्विस डीडी चालू थी और चौबीसों घंटे उपलब्ध थी।
शहर की स्वच्छता के लिए कर्मचारियों की फौज
शहर को स्वच्छ और कीटाणु रहित रखने के लिए सेनीटेशन कर्मचारियों की टीमें चौबीसों घंटे तैनात रहती थीं। जबकि कम्युनिस्ट पार्टी ऑफ चायना के अनुशासित सदस्यों की स्थानीय कमेटियां शीर्ष स्तर के आदेश लागू करवाने में किसी तरह की कोताही नहीं करती थीं।
चीन की विशाल मैन्यूफैक्चिरिंग का रोल
चीन की विशाल डिजिटल इकोनॉमी और मोबाइल पेमेंट सिस्टम ने हमें अपने जीवन को सुचारु रखने में खासी मदद की। इसके अलावा खाद्य और अन्य रोजमर्रा की वस्तुएं भी पर्याप्त मात्रा में उपलब्ध थीं। इसके साथ ही अनुशासित और सख्त प्रशासन ने वायरस का संक्रमण रोकने के लिए पर्याप्त सतर्कता बरती लेकिन विदेशी नागरिकों सहित सभी निवासियों को सुरक्षित और सुगम जीवन भी सुनिश्चित किया। बसंत उत्सव की छुट्टियों के दौरान जल्दी खुलने वाली सीमित संख्या की दुकानों में फेस मास्क, सेनीटाइजर और दूसरी वस्तुएं जल्दी ही खत्म हो जाती थीं लेकिन दुकानों का स्टॉक ज्यादा समय तक खाली नहीं रहता था। एक सप्ताह के भीतर उनकी रैकों में दोबारा सामान्य दिखने लगता था। शायद विशाल मैन्यूफैक्चरिंग, बेहतरीन सप्लाई चैन और डिलीवरी सिस्टम के चलते वस्तुओं की कोई किल्लत नहीं दिखाई दी। मांसाहारी बंगाली होने के नाते मुझे फ्रोजन मीट और फिश पाने में कोई दिक्कत नहीं हुई। ताजे मीट की अधिकांश मीट की दुकानें बंद होने के कारण फ्रोजन मीट ही एकमात्र विकल्प था। मैं इन बाजारों में से भयभीत भी था क्योंकि चर्चाएं थीं कि कोराना वायरस वुहान के हुआनान सीफूड होलसेल मार्केट से भी फैला।
सफाई का ध्यान रखने से ही सुरक्षित रहे
महामारी के दो महीने दौर में चीन में रुकने के दौरान अपनी सुरक्षा के लिए मैंने किसी खास तरह का अत्यधिक महंगा मास्क इस्तेमाल नहीं खरीदा। मैंने आमतौर पर सुरक्षित माने जाने वाला एन-95 मास्क ही इस्तेमाल किया। इसके अलावा जल्दी-जल्दी सोप से हाथ धोता रहा। इसके अलावा व्यक्तिगत स्वच्छता पर ध्यान रखने से मुझे खुद को सुरक्षित रखने में मदद मिली।
बीजिंग सड़कों का हाल
उस समय हमारा फेस मास्क घर से बाहर जाने के कपड़ों का अभिन्न हिस्सा बन गया था। दैनिक इस्तेमाल की वस्तुएं खरीदने के लिए गिनी-चुनी दुकाने में थोड़े समय के दौरान ही खुलती थी। आमतौर पर सिर्फ घरेलू वस्तुएं खरीदने के लिए घर से बाहर निकलने पर हमारा सामना प्रायः सूट पहने और थर्मल स्क्रीनिंग डिवाइस लिए सिक्योरिटी स्टाफ से ही होता था। दो करोड़ से ज्यादा आबादी वाले मेगासिटी में भीड़ से बचने के लिए मैं प्रायः पार्क में होते हुए सुनसान सड़कों पर जाता था।
धार्मिक मान्यता और डब्ल्यूएचओ की गाइडलाइन
कोरोना वायरस से प्रभावित देश में सुरक्षित रह पाना मेरे लिए कोई मुश्किल नहीं था क्योंकि मैं साधारण सोप से घर पर और ऑफिस में हाथ धोने की विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) की सबसे महत्वपूर्ण और व्यावहारिक गाइडलाइन का पालन धार्मिक मान्यता के तौर पर करता हूं। मुझे किसी सेनीटाइजर की आवश्यकता नहीं है क्योंकि मैंने ऑफिस और घर पर आवश्यक सोशल डिस्टेंसिंग का पालन करते हुए वक्त गुजारा है।
ये तो मैंने बिल्कुल नहीं आजमाया
सबसे महत्वपूर्ण बात कि मैंने व्हाट्सएप पर अनायास पैदा हुए डॉक्टरों से मिलने वाली कथित जीवन रक्षक सलाहों को नजरंदाज किया जो हमारे दोस्तों, रिश्तेदारों के जरिये हम तक पहुंची थीं। हां, मैंने अध्यात्मिक गुरुओं की सलाह के अनुसार गौ मूत्र या इसी तरह की दूसरी सलाह पर अमल करने का भी दुस्साहस नहीं किया। ये दो महत्वपूर्ण महीने चीन में गुजारने के बाद मैं वापस आ गया।
(सुवम पाल बीजिंग में मीडिया प्रोफेशनल और लेखक हैं)