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28 September 2025

आवरण कथा/युवा विद्रोह: तख्तापलट का जवां तेवर

ताजा-ताजा नेपाल और इसके पहले के वर्षों में बांग्लादेश और श्रीलंका में समूचे सत्ता प्रतिष्ठान के खिलाफ नवयुवा वर्ग या जेन जी में बगावत और उसमें सोशल मीडिया की महती भूमिका आंदोलनों की नई बानगी पेश कर रही है और नई सियासी बहस का आधार बनी

आधी सदी पीछे मुड़िए, तो कवि धर्मवीर भारती की ‘मुनादी’ याद आएगी ‘‘खल्क खुदा का, मुल्क बादशाह का...बहत्तर बरस का एक बूढ़ा सड़कों पर सच बोलता घूम रहा है...’’ वह बूढ़ा यानी लोकनायक जयप्रकाश नारायण 1973 में सरकारी तंत्र की निरंकुशता, भ्रष्टाचार, बेरोजगारी, शिक्षा की दुर्दशा, महंगाई से लोगों को पस्त देख ‘यूथ फॉर डेमोक्रेसी या लोकतंत्र के लिए युवा’ पर्चा निकालते हैं और उससे पहले गुजरात और फिर बिहार के छात्र और युवा इस कदर उद्वेलित होते हैं कि पूरे देश में नई बयार बहने लगती है और आखिर में वाकई सत्ता पलट जाती है। मिसालें और भी हैं। आज फिर समूचे दक्षिण पूर्व एशिया में उन्हीं युवाओं या 18-25 वर्ष उम्र की पीढ़ी बगावती तेवर के लिए सुर्खियों में है, जिन्हें आज जेन जी कहा जाने लगा है, खासकर इसलिए कि वह नए दौर के आजाद सोशल मीडिया के हुनर के साथ ही पली-बढ़ी है। वही उसका संवाद, जुटान, बगावत सबका अस्त्र बन गया है। इसलिए हाल में नेपाल का तख्तापलट उसके उग्र जोर से हुआ, तो हर जगह उसकी ओर विपक्ष उम्मीद से और सत्तारूढ़ खौफ की नजरों से देखता लगने लगा है।

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उखाड़ फेंकाः विद्रोह की आग ऐसी फैली की सत्ता हिल गई

अभी एकदम ताजा-ताजा अमेरिका के राष्‍ट्रपति डोनाल्‍ड ट्रम्‍प ने 50 फीसद टैरिफ के अलावा वहां आप्रवासियों के लिए एच1बी वीजा पर शुल्‍क सालाना 6,000 डॉलर से बढ़ाकर 1,00,000 डॉलर कर दिया और सऊदी अरब तथा पाकिस्‍तान के बीच रक्षा समझौता हुआ, तो प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 21 सितंबर की शाम, ऐन नवरात्रि के पहले राष्‍ट्र को संबोधित किया। उनके संबोधन में ज्‍यादा जिक्र मध्‍यवर्ग और नव मध्‍यवर्ग के युवाओं की ओर ही था, मानो वे उन्‍हें निराश-हताश न होने का ढांढस बंधा रहे हों। उसके पहले 18 सितंबर को लोकसभा में प्रतिपक्ष के नेता, कांग्रेस के राहुल गांधी कर्नाटक की आलंद विधानसभा क्षेत्र में 2023 के चुनावों में वोट कटवाने के किसी केंद्रीय तंत्र के इस्तेमाल का आरोप लगाने के बाद जेन जी से अपील करते हैं। उन्होंने एक्‍स पर पोस्‍ट किया, ‘देश के युवा, देश के छात्र, देश के जेन जी संविधान बचाएंगे। लोकतंत्र की रक्षा करेंगे और वोट चोरी को रोकेंगे। मैं उनके साथ हमेशा खड़ा हूं।’ इस जिक्र से सत्तारूढ़ भाजपा में तीखी प्रतिक्रिया हुई।

दरअसल, नेपाल में जिस तरह जेन जी ने समूची व्‍यवस्‍था का सिरे से तख्‍तापलट कर दिया, वह हैरान करने वाला है। फिर, जिस तरह युवाओं ने सोशल मीडिया का इस्तेमाल किया, वह बीते कई वैश्विक आंदोलनों में सोशल मीडिया के इस्‍तेमाल से दो कदम आगे का था। ऐसे में अब यह बहस आम है कि क्या आने वाले वक्‍त में सोशल मीडिया सत्ता बनाने या गिराने का अमोघ अस्‍त्र बन सकता है? इधर कुछ चुनावों, खासकर अमेरिका में उसकी विवादास्‍पद भूमिका पहले ही चर्चा में है।

बढ़ता सिलसिला

लेकिन दक्षिण पूर्व एशिया, खासकर भारतीय उपमहाद्वीप में तो ऐसा लगता है कि नौजवानों ने अधबीच में संसदीय प्रणाली की निर्वाचित सरकारें पलटने का एक अजीब ताकतवर सिलसिला ढूंढ निकाला है, जो चुनावी लोकतांत्रिक व्‍यवस्‍था पर नए सवाल खड़ा करता है। ऐसा नहीं है कि इतिहास में इसकी मिसालें नहीं हैं, मगर आज की ये मिसालें और उनका लगभग सालाना सिलसिला नई कहानी कहती लगती हैं। गौर करें:

श्रीलंका में सचिवालय के बाहर विरोध

जुलाई 2022: श्रीलंका में भारी आर्थिक संकट और पेट्रोल, डीजल, बिजली, दवाई, खाद्य वस्‍तुओं की तंगी चरम पर पहुंची, तो नौजवान नई टेक्‍नोलॉजी की भाषा पिंग जुटान से अरागालय (संघर्ष) के लिए सड़कों पर उतर आए। उनका हुजूम सत्ता-केंद्रों राष्ट्रपति तथा प्रधानमंत्री के सचिवालयों की ओर बढ़ा और धावा बोल दिया। सत्तारूढ़ राजपक्षे परिवार देश छोड़ भागने पर मजबूर हुआ और अंतरिम सरकार बनी।

सुलगते सवालः ढाका में छात्रों का प्रदर्शन

अगस्त 2024: बांग्लादेश में चिंगारी तो सरकारी नौकरी में वहां सत्तर के दशक के स्‍वतंत्रता संग्राम के सेनानियों के लिए आरक्षण बढ़ाए जाने की घटना बनी। यह धारणा बनी कि आरक्षण अमूमन सत्तारूढ़ शेख हसीना की आवामी लीग से जुड़े लोगों के लिए है। इससे बेरोजगारी से पस्‍त विश्वविद्यालय छात्र संघ आंदोलन पर उतर आए। पहले से चुनावी धांधली के आरोपों में घिरी सरकार की ढाका पुलिस ने युवाओं के जुलूस पर अंधाधुंध गोलीबारी शुरू कर दी, जिसमें 100 से ज्‍यादा हताहत हुए। फिर‍ नौजवानों का गुस्‍सा सत्ता-ठिकानों, संसद भवन, चुनाव आयोग पर फूटा। प्रधानमंत्री शेख हसीना को फटाफट फौजी विमान से भारत भागना पड़ा।

सितंबर 2025: नेपाल में प्रधानमंत्री खड़ग प्रसाद शर्मा ओली की सरकार ने फेसबुक, इंस्‍टाग्राम वगैरह सोशल मीडिया प्‍लेटफॉर्म पर प्रतिबंध का ऐलान किया तो नौजवान जेन जी जुटान के तहत 7 सितंबर को राजधानी काठमांडू में सड़कों पर उतर आए। जुलूस में, ‘केपी चोर, गद्दी छोड़’ के नारे गूंज रहे थे। जुलूस पर पुलिस की गोलीबारी में 20 नौजवान मारे गए। अगले दिन आग भड़क उठी। उस आग में संसद, राष्ट्रपति भवन, प्रधानमंत्री आवास सब धू-धूकर जल उठे। राष्ट्रपति रामचंद्र पाउडेल और प्रधानमंत्री ओली को सुरक्षित ठिकाने तलाशने पड़े। कथित तौर पर फौज ने ओली से इस्‍तीफा लिखवा लिया या वे इस्‍तीफा देकर सेना की सुरक्षा में पहुंचे।

यह सिलसिला बताता है कि अब चुनावी संसदीय प्रणाली, देशों के सत्तारूढ़ अभिजात वर्ग के राजकाज से समस्‍याओं से पस्‍त नवयुवा अब बर्दाश्‍त के मूड में नहीं हैं। फटाफट जुटान के लिए सोशल मीडिया उनका अमोघ अस्‍त्र बन रहा है। हालांकि उसकी राजनैतिक धारा स्‍पष्‍ट नहीं है। इसलिए इन सभी देशों की घटनाओं पर साजिश के इल्‍जाम भी उठ रहे हैं और अमेरिका, चीन या ऐसी ही दूसरी बाहरी शक्तियों के हस्‍तक्षेप की अटकलें भी हवा में हैं। इसके लिए हाल में बांग्‍लादेश के चटगांव में अमेरिकी सेना की बढ़ती पैठ की मिसाल भी दी जा रही है। नेपाल में भी जिस तरह बाद में पुलिस और सेना आगजनी और राजनैतिक नेताओं की पिटाई वगैरह की घटनाओं के दौरान दो दिनों तक मूक दर्शक बनी रही, उससे भी सवाल उठ रहे हैं। फिर, 73 वर्षीय पूर्व प्रधान न्‍यायाधीश सुशीला कार्की की अगुआई में अंतरिम सरकार बनाई गई। हालांकि नवयुवाओं में सबसे लोकप्रिय, काठमांडू के मेयर रैपर बालेन शाह पर जोर था।

सोशल मीडिया की पिंग

खैर, नेपाल में सरकार की नीतियों और राजनैतिक अभिजात वर्ग को लेकर गहरा असंतोष सुलग रहा था, और इस असंतोष को सोशल मीडिया के जरिए लगातार धार मिल रही थी। फेसबुक, इंस्टाग्राम, व्हॉट्सऐप, यूट्यूब, एक्स और ऐसे कुछ दूसरे प्लेटफार्म पर विरोध के लगातार वीडियो, मीम, रिसर्च, पोल और छोटी टिप्पणियों के माध्यम से फैल रहे थे। “नेपोकिड्स” या “नेपोबेबिज” जैसे हैशटैग के जरिए नेताओं के संतानों की विलासिता और उनकी जीवनशैली की पोल खोली जा रही थी। टिकटॉक, स्नैपचैट और इंस्टाग्राम रीलें खूब वायरल हुईं। रेडिट पर युवा चर्चा कर रहे थे कि कैसे ऑनलाइन आक्रोश को सड़क के विरोध प्रदर्शन में बदला जाए?

सरकार भी सोशल मीडिया पर उभरते आक्रोश को समझ रही थी लिहाजा नेपाल सरकार ने गलत सूचना रोकने और जवाबदेही तय करने के नाम पर 26 सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म पर प्रतिबंध लगा दिया, जिसे 1.43 करोड़ लोग जुड़े हुए थे। दिलचस्प यह है कि सोशल मीडिया बैन और इंटरनेट पर प्रतिबंधन लगाने के बावजूद नेपाल की आधी से ज्यादा आबादी ऑनलाइन थी। इसके लिए प्रदर्शनकारियों ने वीपीएन की मदद ली। 7 सितंबर को स्विस कंपनी प्रोटोन एजी ने बताया कि नेपाल से प्रोटोन वीपीएन कनेक्शन 3 दिन में 6000 प्रतिशत तक बढ़ गए थे। गूगल पर भी वीपीएन सर्च भी तेजी से बढ़ा। इसके अलावा ब्लूटूथ मैसेजिंग ऐप बिटचैट पर भी लोग एक-दूसरे को खूब संदेश भेज रहे थे। इन प्लेटफार्म पर प्रदर्शन आयोजित करने से लेकर अंतरिम प्रधानमंत्री चुनने तक की मुहिम चलाई गई।

हालांकि सोशल मीडिया की यह ताकत कोई नई नहीं है। 2009 में ईरान, 2010-11 में मिस्र और पश्चिम एशिया के “अरब स्प्रिंग” आंदोलन को “फेसबुक क्रांति” कहा गया था। इसी तरह इंडोनेशिया, ट्यूनीशिया के आंदोलनों में सोशल मीडिया बड़ी भूमिका निभा चुकी थी। फिर, श्रीलंका और बांग्लादेश में भी युवाओं ने सत्ता को उखाड़ने में अहम भूमिका निभाई है। यूट्यूबरों की लाइव रिपोर्टिंग ने सरकार के खिलाफ माहौल बनाया था। भारत में अन्ना आंदोलन के वक्त देश ने सोशल मीडिया की ताकत को महसूस किया था (विस्‍तार के लिए साथ की रिपोर्ट और नजरिया देखें)।

नई व्‍यवस्‍था के अक्‍स

अलबत्ता, नेपाल की यह आग सिर्फ सत्ता के ठिकानों तक ही सीमित नहीं रही। नौजवानों ने तमाम मुख्‍यधारा के राजनैतिक दलों के नेताओं को भी निशाना बनाया, खासकर पूर्व प्रधानमंत्री शेर बहादुर देउबा और झालानाथ खनल। खनल की पत्नी राज्यलक्ष्मी चित्रकार ने घर में लगी आग में झुलसकर दम तोड़ दिया। आक्रोश की आग सुप्रीम कोर्ट और काठमांडू के मध्य में स्थित एक पांच सितारा होटल को भी झुलसा गई। मतलब यह कि गुस्सा राजनैतिक प्रतिष्ठान से आगे पहुंच गया। दूसरे शहरों और कस्बों में भी सरकार की तानाशाही के खिलाफ ज्‍वालाएं उठीं। आखिरकार नेपाली सेना के प्रमुख जनरल अशोक राज सिगडेल ने हिंसा रोकने की अपील की और सैनिकों को शहर में गश्त के लिए उतारा, तो शांति लौटी।

स्वाहाः काठमांडू में आग के हवाले हिल्टन होटल

नेपाल के इस तख्‍तापलट में सेना की महत्‍वाकांक्षा नहीं दिखी। सेना प्रमुख सिंगडेल ने जेन जी और तमाम लोगों से बातचीत करके हल निकाला, लेकिन सेना ने आगे आने की कोई मंशा जाहिर नहीं की है। नेपाल में पाकिस्‍तान या बांग्‍लादेश के उलट सेना ने कभी भी राजनैतिक सत्ता में दखलंदाजी नहीं की। इसलिए सुशीला कार्की की अगुआई में कुछ प्रोफेशनल, नौकरशाह, अर्थशास्त्री और न्यायिक विशेषज्ञों की अंतरिम सरकार बनाई गई है। जेन जी के जोर देने पर संसद भंग की गई और अगले छह महीने में चुनाव कराने का वादा किया गया है। हालांकि, सिगडेल को इस पर रजामंदी बनाने में काफी मशक्‍कत करनी पड़ी। दरअसल जेन जी कोई एकरूप संगठन नहीं, बल्कि अलग-अलग समूह हैं और सबके अपने-अपने एजेंडे हैं। इनमें कुछ समूह बालेंद्र शाह के हिमायती हैं। 35 वर्षीय शाह रैपर हैं, जो युवाओं में काफी लोकप्रिय हैं और जिन्होंने अपने गीतों के जरिए सत्ता प्रतिष्ठान को बदलने की मुहिम चलाई थी। एक दूसरे दावेदार नेपाल विद्युत प्राधिकरण के पूर्व प्रबंध निदेशक 54 वर्षीय कुलमन घिसिन थे, जिन्‍हें देश में बिजली ग्रिड सुधारने का श्रेय दिया जाता है। वे अब कार्की की अगुआई वाली सरकार में हैं।

संभ्रांत अय्याशी और आर्थिक संकट

इस बगावत की फौरी वजह तो 26 प्रमुख सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म पर लगाई गई बंदिश थी। ओली सरकार ने स्थानीय पंजीकरण, शिकायत अधिकारियों की नियुक्ति और संपर्क सूत्र स्थापित करने की हफ्ते भर की मोहलत खत्‍म होने पर यह बंदिश लगाई, जैसा कि भारत में दो साल पहले किया गया था। लेकिन लाखों नेपालियों- खासकर नौजवानों के लिए सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म विलासिता की नहीं, बल्कि रोजगार, संपर्क-संचार और विदेश में परिवारों तथा अवसरों से जुड़ने का अहम साधन है। असल में, नेपाल दक्षिण एशिया में सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म के सबसे अधिक इस्‍तेमाल करने वाले देशों में है। फिर, लोग अपनी तंगहाली के मुकाबले राजनैतिक परिवारों के वारिसों के ऐशोआराम की जिंदगी से ईर्ष्या की आंच में सुलग रहे थे, जो इंस्टाग्राम पोस्ट पर अपनी रोलेक्स घड़ियां और गुच्ची बैग दिखाते उन्‍हें चिढ़ा रहे थे।

दूसरी ओर, आम नेपालियों के लिए देश में घटते रोजगार के अवसरों के मद्देनजर बाहरी देशों की ओर रुख करना ही इकलौता रास्‍ता है। गांव खाली हो रहे हैं, मां-बाप बच्चों से दूर हैं, बच्‍चों के भेजे पैसे से तो काम चल रहा है लेकिन देश में रोजगार के मौके नहीं बन रहे हैं। इस तरह नेपाल में जेन जी की सबसे बड़ी समस्या बेरोजगारी से बढ़ती आर्थिक तंगी है। एक के बाद एक लगातार सरकारें इस ओर ध्‍यान देने में नाकाम रही हैं।

कोविड महामारी ने बेरोजगारी के आंकड़ों को और बढ़ा दिया और उसके बाद से अर्थव्‍यवस्‍था सुधर नहीं पाई। दूसरे देशों में पलायन की रफ्तार बढ़ी और खासकर 30 वर्ष से कम उम्र के नौजवानों को इसका दंश सबसे अधिक भुगतना पड़ा, जिन्‍हें रोजगार की सबसे ज्‍यादा दरकार होती है। ये युवा देश की कुल 2.96 करोड़ की आबादी में तकरीबन 56 प्रतिशत हैं। 2024 में नेपाल की मौजूदा बेरोजगारी दर 10.8 फीसदी थी, लेकिन 15-24 वर्ष के युवाओं के मामले में यह 20.8 फीसदी या लगभग दोगुनी थी। रोजगार के अवसरों की कमी से अनुमानित 45 लाख लोग भारत, खाड़ी देशों और सुदूर पूर्व जैसे देशों की ओर गए। विश्व बैंक के मुताबिक, विदेशों में काम कर रहे नेपालियों की भेजी गई रकम ही दरअसल घरेलू अर्थव्यवस्था की रीढ़ है, जो सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) का 33 फीसदी है। 2024 में विदेश से भेजी गई रकम करीब 14 अरब डॉलर थी और करीब 76 प्रतिशत परिवार उसी पर पल रहे हैं।

सामाजिक पक्ष

आर्थिक और राजनैतिक समस्याएं नेपाल के भूगोल और सामाजिक बनावट से भी जटिल हो जाती है। यह तीन प्रमुख जनसंख्या समूहों में बंटा हुआ है, जो एक-दूसरे से बेमेल हैं। पहाडि़यों (पहाड़ी मूल के जाति समूह) में प्रमुख बाहुन (ब्राह्मण), छेत्री (क्षत्रिय) और ठाकुरी समुदाय हैं, जो कुल आबादी का लगभग 31 प्रतिशत बताया जाता है और ज्‍यादातर राजनैतिक अभिजात वर्ग उसी समुदाय का है। राजशाही से लेकर नेपाली कांग्रेस, विभिन्‍न कम्‍युनिस्‍ट और माओवादी पार्टियों के जितने नेताओं के नाम याद कर सकते हैं, सभी इसी समुदाय से हैं। दूसरे हैं जनजाति (आदिवासी या मूलवासी) जो पहाड़ों और मैदानी में फैले हुए हैं। उनकी संख्या भी 31 प्रतिशत बताई जाती है और यह वहां सबसे वंचित समूह है। इसके अलावा मधेसी (तराई या मैदानी मूल के लोग) लगभग 28 प्रतिशत हैं। ये भारत की सीमा से लगे जिलों में हैं। उनके अलावा बाकी दलित जातियों के लोग हैं। इन समुदायों के बीच लगातार सत्ता संघर्ष चलता रहा है।

मौजूदा युवा विद्रोह की खास बात यह है कि उसके भूचाल का केंद्र काठमांडू था, जिसे ताकतवर पहाड़ी समुदायों का गढ़ माना जाता है। ज्‍यादातर मुखर लड़के-लड़कियां इसी प्रभावशाली समुदाय से हैं। यह इससे भी समझा जा सकता है कि सड़कों पर नाराजगी मुख्‍यधारा के राजनैतिक दलों के नेताओं के घरों पर भी टूटी। यानी उन तमाम प्रतीकों पर जिनसे उन्‍हें नाकामी हाथ लगी।

राजनीति की उलटबांसी

इधर कुछ दशकों में नेपाली राजनीति बारी-बारी सत्ता का खेल बनकर रह गई थी। सत्ता का सिंहासन तीन प्रमुख राजनैतिक दलों के नेताओं की पुरानी तिकड़ी के बीच बारी-बारी से बदलता रहा है। राजशाही के दौर को भी जोड़ लें, तो नेपाली कांग्रेस के शेर बहादुर देउबा पांच बार प्रधानमंत्री रहे; नेपाल कम्युनिस्ट पार्टी-माओवादी केंद्र या सीपीएन (एमसी) के पुष्प कुमार दहल उर्फ प्रचंड चार बार प्रधानमंत्री रहे और नेपाल कम्युनिस्ट पार्टी-एकीकृत मार्क्सवादी लेनिनवादी (सीपीएन-यूएमएल) के के.पी. शर्मा ओली मौजूदा आग उठने से पहले चौथा कार्यकाल पूरा कर रहे थे। यह बिरादरी सत्ता के केंद्र में थी, लेकिन युवाओं के बीच उसकी लोकप्रियता भी घटती जा रही थी, क्योंकि वे उनकी आकांक्षाओं पर खरे नहीं उतर रहे थे।

इसके अलावा, 2008 में राजशाही के खात्मे और 2015 में नए संविधान के लागू होने के बाद से नेपाल में राजनैतिक अस्थिरता जारी रही है। पिछले 15 साल में 10 बार सरकार बदली है। लगातार अस्थिरता की एक वजह नेपाल की मिश्रित चुनाव प्रणाली है, जिसमें आसानी से पूर्ण बहुमत हासिल नहीं हो पाता। निचले सदन की 275 सीटों में 165 भारत की तरह पहले नंबर यानी सबसे ज्‍यादा संख्‍या में वोट की प्रणाली के तहत और 110 सीटें पार्टी की वोट हिस्‍सेदारी के आधार पर आनुपातिक प्रतिनिधित्व प्रणाली के तहत भरी जाती हैं। इसके बावजूद, कोई भी प्रमुख राजनैतिक दल 138 सीटों के साधारण बहुमत से आगे बढ़कर अकेले सरकार नहीं बना पाया है। लिहाजा, गठबंधन सरकारों का सिलसिला चलता रहा है।  

बहरहाल, नेपाल की घटनाएं गवाह हैं कि लोगों के मुद्दों को दरकिनार करने और अर्थव्‍यवस्‍था को लोगों के हक में दुरुस्‍त नहीं करने और सत्ता के लिए हर तरह के समझौते करने की प्रवृत्ति सोशल मीडिया के दौर में छुपाई नहीं जा सकती। गौर से देखें, तो भारत में भी वे सभी स्थितियां मौजूद हैं। शायद इसीलिए उस पर चर्चाएं भी जारी हैं। अगर ये घटनाएं ‌अहिंसक हों और लोकतंत्र को सुधार की ओर ले जाएं तो स्वागत योग्य हैं।

सोशल मीडिया से जुड़े प्रमुख आंदोलन

2009: ईरान, ग्रीन मूवमेंट

एक्स और फेसबुक के जरिए चुनावी धांधली के खिलाफ युवाओं का विरोध संगठित हुआ

2010: ट्यूनीशिया, जैस्मीन क्रांति

फेसबुक-एक्स पर भ्रष्टाचार और बेरोजगारी के खिलाफ जनआंदोलन भड़का

2011: मिस्र, तहरीर चौक आंदोलन

फेसबुक पेज “वी आर ऑल खालिद सैद” ने युवाओं को जोड़ा, सरकार गिर गई और नई व्यवस्‍था कायम हुई

2011: स्पेन, इंडिग्नाडोस मूवमेंट (15-एम)

‌ट्वीटर पर पोस्ट और ब्लॉग्स से बेरोजगारी और आर्थिक असमानता के खिलाफ विरोध फैला और जोरदार हो उठा

2011: अमेरिका, ऑक्युपाई वॉल स्ट्रीट

“वी आर द 99 परसेंट” स्लोगन ट्वीटर और यूट्यूब से वायरल होकर वैश्विक बना

2011: भारत में भ्रष्टाचार के खिलाफ अन्ना आंदोलन

फेसबुक-एक्स और एसएमएस के जरिए भ्रष्टाचार विरोधी जनांदोलन फैला

2013: तुर्की, गेज़ी पार्क प्रोटेस्ट

एक्स और इंस्टाग्राम पर पर्यावरण आंदोलन

2014: हांगकांग, अंब्रेला मूवमेंट

फेसबुक-व्हॉट्सऐप के जरिए लोकतांत्रिक अधिकारों के लिए युवाओं ने प्रदर्शन किए

2015: नेपाल, भूकंप राहत नेटवर्क

एक्स और फेसबुक से स्वयंसेवकों का विशाल नेटवर्क खड़ा हुआ

2019: हांगकांग, एंटी-एक्सट्राडिशन प्रोटेस्ट

टेलीग्राम और रैडिट का इस्तेमाल कर भीड़ संगठित और लोकेशन साझा की गई

2020: अमेरिका, ब्लैक लाइव्स मैटर

एक्स हैशटैग # ब्लैकलाइव्स मैटर और इंस्टाग्राम पोस्ट से आंदोलन विश्वययापी

2022: श्रीलंका, अरगालय प्रोटेस्ट

फेसबुक, एक्स, यूट्यूब पर भ्रष्टाचार और आर्थिक संकट के खिलाफ आंदोलन खड़ा हुआ

2024: बांग्लादेश, स्टूडेंट अप्राइजिंग

फेसबुक-एक्स से लाखों छात्रों ने सरकार के खिलाफ विद्रोह किया। आखिर में तत्कालीन प्रधानमंत्री शेख हसीना को देश छोड़कर भागना पड़ा

2025: नेपाल, “हामी नेपाल” आंदोलन

डिस्कॉर्ड और इंस्टाग्राम से युवाओं ने नेता चुना और सरकार गिरा दी

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TAGS: Nepal protest, Gen Z protest, interim government, youth rebellion, revolution
OUTLOOK 28 September, 2025
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