भारत-फिलीपींस की मिट्टी से जुड़े हैं हरित क्रांति के बीज
आसियान शिखर सम्मेलन में भाग लेने के लिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी तीन दिनों के फिलीपींस दौरे पर हैं। इस दौरान मोदी इंटरनेशनल राइस रिसर्च इंस्टीट्यूट (आईआरआरआई) के हेडक्वार्टर गए। यहां मोदी अपने नाम पर रखे खेत पर फावड़ा चलाते नजर आए। भारत सरकार वाराणसी में आईआरआरआई का रीजनल सेंटर खोलने जा रही है ताकि चावल के उत्पादन को बढ़ावा दिया जा सके।
इससे पहले भारत के मंत्रिमंडल ने फिलीपींस के साथ कृषि क्षेत्र में सहयोग के करार पर हस्ताक्षर करने के प्रस्ताव को मंजूरी दी थी। इन बातों से पता चलता है कि खेती को लेकर भारत और फिलीपींस के संबंध अच्छे हैं क्योंकि इन दोनों का इतिहास खेती को लेकर जुड़ा हुआ है और हरित क्रांति के बीज भी इन दोनों देशों की मिट्टी से जुड़ते हैं।
भारत, फिलीपींस और चावल
1961 के दौरान भारत में अकाल की स्थिति थी। स्थिति से निपटने के लिए चावल और गेहूं की नई प्रजातियों की खेती के लिए भारत सरकार ने बीज आयात किए। पंजाब को इस प्रयोग के लिए चुना गया, जिसे उत्तर प्रदेश, हरियाणा तक भी ले जाया गया। इसके परिणाम अच्छे आए थे, जिसे बाद में हरित क्रांति का नाम दिया गया। नॉर्मन बॉरलो दुनिया भर में इसके अगुआ रहे, जिन्हें 1970 में नोबेल पुरस्कार दिया गया। भारत में इसकी अगुआई एम एस स्वामीनाथन ने की थी।
इसी दौरान 1966 में चावल की एक प्रजाति आईआर 8 इंटरनेशनल राइस रिसर्च इंस्टीट्यूट (आईआरआरआई) के वैज्ञानिकों ने विकसित की। इस प्रजाति की मदद से कम समय में ज्यादा पैदावार की जा सकती थी।
पहली बार इसका प्रयोग फिलीपींस में हुआ। बाद में 1968 में भारत के एग्रोनॉमिस्ट एस के डे दत्ता ने आईआर 8 से जुड़ी रिसर्च पेश की और बताया कि इस प्रजाति से एक हेक्टेयर में 5 टन चावल बगैर किसी फर्टिलाइजर के पैदा किया जा सकता है और अच्छी परिस्थितियों में 10 टन तक। एस के डे दत्ता फिलीपींस में आईआरआरआई के साथ 27 वर्षों तक काम कर चुके हैं। फिलीपींस ने भी हरित क्रांति के दौरान भारत की काफी मदद की।
2016 में चावल की इस प्रजाति ने अपने 50 साल पूरे किए, जिसका जश्न भारत और फिलीपींस में मनाया गया था।