पुतिन की धमकी से बेअसर, नेटो में शामिल होंगे स्वीडन और फिनलैंड!
11 अप्रैल को रूस ने खुलेआम चेतावनी देते हुए कहा था कि स्वीडन और फिनलैंड ने अगर नेटो देशों की सदस्यता के बारे में सोचा तो ये उनकी एक बड़ी भूल साबित होगी। क्रेमलिन के प्रवक्ता पेसकोव ने एक आधिकारिक बयान जारी करते हुए कहा था नेटो के संभावित विस्तार का रूस हमेशा विरोध करता रहा है और आगे भी करता रहेगा। इस विस्तारसे न तो यूरोपीय महाद्वीप में अतिरिक्त सुरक्षा आएगी और न हीं ये ऐसा विस्तार है जिससे शांति और स्थिरता सुनिश्चित की जा सकती है। लेकिन उसके ठीक एक महीने बाद 12 मई को फिनलैंड के राष्ट्रपति साउली निनिस्तो और प्रधानमंत्री सना मरीन ने फिनलैंड के नेटो में "बिना देर किए" शामिल होने को समर्थन देने की घोषणा कर दी है। ये घोषणा ऐसे समय में हुई है जब एक दिन पहले ही ब्रिटेन के प्रधानमंत्री बोरिस जॉनसन ने इन दोनों देशों का दौरा किया है और कई व्यापारिक समझौतों पर दस्तखत किए हैं। इन दोनों देशों के नेटो में शामिल होने पर चल रही बहस के बीच जॉनसन का ये दौरा महत्वपूर्ण माना जा रहा था। अपने दौरे में ब्रिटिश प्रधानमंत्री ने कहा था कि फिनलैंड और स्वीडन पर किसी भी संकट में ब्रिटेन उनकी सहायता करेगा। जॉनसन और स्वीडिश पीएम मैग्डेलेना एंडरसन के साझा बयान में कहा गया कि यूक्रेन पर रूस के आक्रमण को देखते हुए सहयोग और भी महत्वपूर्ण हो जाता है।
जिस तरह से यूक्रेन की सीमाएँ रूस से मिलती है ठीक उसी तरह फिनलैंड की सीमाएं भी रूस से मिलती हैं। फिनलैंड रूस के साथ 800 मील (1300 किमी) लंबी सीमा साझा करता है, जो नेटो की सेना को मास्को के बहुत करीब लाता है।पुतिन ने यूक्रेन पर हमला करते हुए इसी बात को दोहराया था कि यूक्रेन को नेटो में शामिल नहीं होना चाहिए। पुतिन ने नेटो देशों के अपनी सीमा तक पहुंचने की आशंका जताते हुए यूक्रेन पर हमला तो कर दिया था लेकिन ऐसी परिस्थिति में अब रूस क्या करेगा? भले ही भौगोलिक दृष्टि से दोनों देश की सीमाएं रूस से मिलती हों लेकिन दोनों देशों के हालात में फर्क आ चुका है। जब रूस ने यूक्रेन पर हमला किया था तो वो नेटो का सदस्य नहीं था और साथ ही उसे हल्के में लेने की भूल पुतिन ने कर दी थी। उनको ये उम्मीद नहीं थी कि यूक्रेन के साथ उनकी लड़ाई इतनी लंबी खिंच जाएगी। कहने तो तो ये लड़ाई यूक्रेन और रूस के बीच लड़ी जा रही है लेकिन यूक्रेन की जमीन पर लड़ी जाने वाली इस लड़ाई में नेटो देशों के सहयोग से तैयार किए गए यूक्रेनी लड़ाके मैदान में हैं और हर तरह के हथियार यूरोपीय देशों से उनके पास पहुंचाए जा रहे हैं। ऐसे मेंफ़िनलैंड का ये कहना कि नेटो में शामिल होने के लिए आवेदन करना उनकी अपनी रक्षा के बारे में हैपुतिन को चिंतित करेगा। भले ही व्लादिमीर पुतिन इस पर भरोसा न करें लेकिन उनके लिए इन देशों के खिलाफ युद्ध का रास्ता खोलना आसान नहीं होगा। पुतिन ने हमेशा नाटो के पूर्वी विस्तार को एक खतरे के रूप में देखा है। जाहिर है फ़िनिश और स्वीडिश सदस्यता नेटो को और अधिक मजबूत बनाएगी और क्रेमलिन जवाबी कार्रवाई की धमकी तो देगा लेकिन इससे आगे कुछ कर पाए इसकी संभावना फिलहाल नहीं दिखती है। इसके कई कारण हैं, पहला कारण तो यही है कि यूक्रेन के साथ युद्ध में पुतिन चाहे कितना भी दंभ भरें लेकिन उनके पसीने छूट गए हैं। यूरोप अमेरिका समेत तमाम देशों की पाबंदियों ने रूस की आर्थिक हालात खराब कर दिए हैं और इस समय वो एक और युद्ध में जाने की स्थिति में कतई नहीं है। दूसरी तरफ जब यूक्रेन और रूस की लड़ाई शुरु हुई थी तो उस वक्त यूक्रेन की जनता ने अपनी सरकार से युद्ध में नहीं जाने की बात कही थी और साथ ही ये भी कहा था कि अगर नेटो में शामिल न होकर युद्ध टाला जा सकता है तो ऐसा किया जाना चाहिए लेकिन फिनलैंड और स्वीडन में हालात अब बिल्कुल बदल चुके हैं।
यूक्रेन पर रूसी हमले के बाद पूरे यूरोप में आम लोगों की राय रूस और पुतिन को लेकर तो बदली ही है साथ ही फिनलैंड और स्वीडन जैसे रूसी सीमा से सटे देशों में नेटो को लेकर भी ख्याल बदले हैं। 2017 में किए गए एक सर्वे में जहां महज 40 फीसदी फिनलैंड के नागरिक नेटो के पक्ष में थे अब 76 फीसदी इसे एक जरूरी कदम मानते हैं। इतना ही नहीं इन देशों की विपक्षी पार्टियों ने भी नेटो की ओर रूख किए जाने के सरकार के फैसले के साथ सहमति जताई है। नॉर्डिक देशों में डेनमार्क, नॉर्वे और आइसलैंड तो 1949 में नाटो का गठन होने के समय से ही इसके सदस्य हैं।ऐसे में अब नेटो का विस्तार तो साफ दिख रहा है, जल्द ही नेटो सदस्य देशों की संख्या 30 से 32 होने वाली है जो निश्चित तौर पर रूस के लिए आने वाले दिनों में खतरे की घंटी है।