नागरिकता कानून के खिलाफ प्रस्ताव पर यूरोपीय संसद में होगी बहस, भारत ने जताई आपत्ति
देश में नागरिकता कानून के खिलाफ प्रदर्शन लगातार जारी हैं। यूरोपीय संसद भारत के संशोधित नागरिकता कानून (सीएए) के खिलाफ उसके कुछ सदस्यों द्वारा पेश किए गए प्रस्ताव पर बहस और मतदान करेगी। संसद में लाए गए इस प्रस्ताव में कहा गया कि इससे भारत में नागरिकता तय करने के तरीके में खतरनाक बदलाव हो सकता है। इससे बहुत बड़ी संख्या में लोग स्टेटलेस यानी बिना नागरिकता के हो जाएंगे। यूरोपीय संसद के कुछ सदस्यों के इस प्रस्ताव पर भारत सरकार ने कड़ी आपत्ति जताई है।
यूरोपीय संसद में इस सप्ताह की शुरुआत में यूरोपियन यूनाइटेड लेफ्ट/नॉर्डिक ग्रीन लेफ्ट (जीयूई/एनजीएल) समूह ने सीएए को लेकर प्रस्ताव पेश किया था, जिस पर बुधवार को बहस होगी और इसके एक दिन बाद मतदान होगा। प्रस्ताव में भारत सरकार से अपील की गई है कि वह सीएए के खिलाफ प्रदर्शन कर रहे लोगों के साथ 'रचनात्मक बात' करे और भेदभावपूर्ण कानून को निरस्त करने की उनकी मांग पर विचार करे।
‘सीएए के खिलाफ प्रदर्शन कर रहे लोगों के साथ रचनात्मक वार्ता करें’
इस प्रस्ताव में संयुक्त राष्ट्र के घोषणापत्र, मानवाधिकार की सार्वभौमिक घोषणा (यूडीएचआर) के अनुच्छेद-15 के अलावा 2015 में हस्ताक्षरित किए गए भारत-यूरोपीय संघ सामरिक भागीदारी संयुक्त कार्य योजना और मानवाधिकारों पर यूरोपीय संघ-भारत विषयक संवाद का जिक्र किया गया है। इसमें भारतीय शासकों से अपील की गई है कि वे सीएए के खिलाफ प्रदर्शन कर रहे लोगों के साथ रचनात्मक वार्ता करें और भेदभावपूर्ण सीएए को निरस्त करने की उनकी मांग पर विचार करें।
सीएए भारत में नागरिकता तय करने के तरीके में करेगा खतरनाक बदलाव
प्रस्ताव में कहा गया है, सीएए भारत में नागरिकता तय करने के तरीके में खतरनाक बदलाव करेगा। इससे नागरिकता विहीन लोगों के संबंध में बड़ा संकट विश्व में पैदा हो सकता है और यह बड़ी मानव पीड़ा का कारण बन सकता है।
सांसदों का आरोप- भारत सरकार ने विरोध में उठी आवाज दबाई
यूरोपीय सांसदों के इस प्रस्ताव में भारत सरकार पर भेदभाव, उत्पीड़न और विरोध में उठी आवाजों को चुप कराने का आरोप लगाया गया है। वहीं, इसमें कहा गया कि नए कानून से भारत में मुस्लिमों की नागरिकता छीनने का कानूनी आधार तैयार हो जाएगा। साथ ही, नागरिकता रजिस्टर (एनआरसी) के साथ मिलकर सीएए कई मुस्लिमों को नागरिकता से वंचित कर सकता है। सांसदों ने यूरोपीय संघ से इस मामले में दखल देने की मांग भी की।
भारत ने जताई आपत्ति
आधिकारिक सूत्रों ने कहा कि नया नागरिकता कानून पूरी तरह भारत का आंतरिक मामला है। सांसदों के ड्राफ्टेड प्रस्ताव के जवाब में, भारत सरकार ने कहा है कि इस कानून को संसद के दोनों सदनों में बहस के बाद अपनाया गया है। इस पर सार्वजनिक बहस हुई है। इसे लोकतांत्रिक प्रक्रिया के तहत ही अस्तित्व में लाया गया है।
अधिकारी ने कहा कि हम उम्मीद करते हैं कि यूरोपीय यूनियन में इस प्रस्ताव को लाने वाले और इसका समर्थन करने वाले लोग सभी तथ्यों को समझने के लिए भारत से संपर्क करेंगे। ईयू संसद को ऐसी कार्रवाई नहीं करनी चाहिए, जिससे लोकतांत्रिक तरीके से चुनी विधायिका के अधिकारों पर सवाल खड़े करता हो।
पिछले साल दिसंबर में लागू किया गया था सीएए
सीएए भारत में पिछले साल दिसंबर में लागू किया गया था जिसे लेकर देशभर में विरोध प्रदर्शन हो रहे हैं। भारत सरकार का कहना है कि नया कानून किसी की नागरिकता नहीं छीनता है बल्कि इसे पड़ोसी देशों में उत्पीड़न का शिकार हुए अल्पसंख्यकों की रक्षा करने और उन्हें नागरिकता देने के लिए लाया गया है।