Advertisement
01 June 2015

संतुलन के दौर में मोदी की इस्राइल यात्रा

गूगल

शीतयुद्ध समाप्ति के बाद सन 1992 में संबंध खुलने के बाद से भारत-इस्राइल रक्षा सहयोग और व्यापार में लगातार बढ़ोत्तरी होती रही। सन 1992 में दोनों देशों के बीच व्यापार महज 20 करोड़ डॉलर था जो 2013 तक बढ़कर 4.34 अरब डॉलर हो गया। इस्राइल भारत को रक्षा उपकरणों के बड़े आपूर्तिकर्ता के रूप में उभरा है। एनडीए-1 के शासन में ये संबंध और बढ़े। सन 2000 में जसवंत सिंह इस्राइल जाने वाले पहले विदेश मंत्री बने।

एनडीए सरकारों के दौर में इस्राइल से संबंध ज्यादा प्रगाढ़ होने के पीछे भारतीय जनता पार्टी और संघ परिवार के विचारधारात्मक रुझान की बड़ी भूमिका रही है। उन्हें अरब देशों और फिलिस्तीनी विद्रोहियों के प्रति इस्राइल की आक्रामक प्रतिरक्षा नीति भारत के लिए पाकिस्तान के आतंक युद्ध और कश्मीर में बगावत से निपटने के मामले में आदर्श लगती रही है। लेकिन व्यावहारिक तौर पर यूपीए की सरकार ने भी इस्राइल से सहयोग लिया क्योंकि पाकिस्तान के आतंक-युद्ध में मददगार पश्चिम एशिया के जेहादियों के नेटवर्क भेदने के लिए इस्राइल का गुप्तचर-सहयोग काम आता रहा है। रक्षा सामग्री की दृष्टि से भी इस्राइल उन्नत है। टेक्नोलॉजी के अन्य क्षेत्रों में भारत को इस्राइल से लाभ हुआ है।

वैसे पश्चिम एशिया और अरब जगत के तेल पर भारतीय निर्भरता इस्राइल के संबंधों में संतुलन की अपेक्षा रखती है। पर अभी ज्यादा संतुलन ईरान की वजह से करना पड़ेगा। ईरान के परमाणु कार्यक्रम को लेकर इस्राइल सशंकित रहा है और ईरान से हाल के दिनों मे इस्राइल के अस्तित्व को ही धमकियां मिलती रही हैं। इस कारण दुनिया के विभिन्न हिस्सों में ये दोनों देश एक तरह से आतंकी युद्ध लड़ते रहे हैं जिसका मैदान हाल में दिल्ली भी बनी थी।

Advertisement

लेकिन अरब जगत में और भी उग्र जेहादी आतंकवाद उभरने तथा अफगानिस्तान से वापसी की बाध्यताओं ने अमेरिका तक को ईरान से परमाणु फ्रेमवर्क समझौते के जरिये सामंजस्य बैठाने पर मजबूर किया है। अपने पुराने मित्र इस्राइल की नाराजगी मोल लेकर भी अमेरिका ने यह किया। अपने चुनाव अभियान में इस्राइली प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतन्याहू ने यह गुस्सा जाहिर भी किया। ये बाध्यताएं अमेरिका की तरह भारत के लिए भी मायने रखती हैं और भारत को भी ईरान से नया सामंजस्य बैठाने के लिए प्रेरित होना चाहिए। यूपीए के वर्षों में अमेरिकी दबाव के कारण भारत ने ईरान से पाइपलाइन परियोजना हटा ली थी जिससे रिश्तों में भी शिथिलता आ गई। अब इस्राइल से निकटता भारत को फिर ईरान में अवसर न गंवाने दे, यह देखना होगा। विदेश नीति एक जगह गिरवी नहीं रखी जा सकती। पिछले दिनों एक अखबार के कार्यक्रम में ईरानी राजदूत ने जो कहा, वह गौर करने लायक हैः इस्राइल आपका मित्र है, लेकिन वह आपको अपने दुश्मन चुनने के लिएए बाध्य न करे। 

अब आप हिंदी आउटलुक अपने मोबाइल पर भी पढ़ सकते हैं। डाउनलोड करें आउटलुक हिंदी एप गूगल प्ले स्टोर या एपल स्टोरसे
TAGS: नरेंद्र मोदी, इस्राइल, भारत, भारत-अरब संबंध, ईरान, अमेरिका, बेंजामिन नेतन्याहू, दौरा, Narendra Modi, Israel, India, Indo - Arab relations, Iran, America, Benjamin Netanyahu, Tour
OUTLOOK 01 June, 2015
Advertisement