भारत-चीनः मोदी-शी भेंट के मायने
भारत और चीन के बीच 2020 में हुए सैन्य टकराव के बाद वैसे तो कई बहुपक्षीय मंचों पर दोनों देशों के प्रमुखों की मुलाकात होती रही है, लेकिन कजान में ब्रिक्स सम्मेलन के समानांतर पहली बार द्विपक्षीय बैठक हुई है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और शी जिनपिंग के बीच इस बैठक का होना तय माना जा रहा था क्योंंकि दो दिन पहले ही सीमा गश्त पर समझौते की घोषणा की गई थी। इस बैठक के अंत में दोनों नेता द्विपक्षीय संबंधों को बहाल करने पर राजी हुए। बैठक के बाद भारत के विदेश मंत्रालय ने एक बयान जारी कर के बताया कि प्रधानमंत्री मोदी ने ‘‘मतभेदों और टकरावों को कायदे से बरतने के महत्व को रेखांकित किया ताकि उससे अमन-चैन का माहौल न बिगड़ने पाए। दोनों नेता इस बात पर सहमत हुए कि भारत-चीन के सरहद संबंधी सवालों पर उनके विशेष दूतों की जल्द से जल्द बैठक होगी जिसमें वे सरहदी इलाकों में शांति का जायजा लेंगे और एक निष्पक्ष, तर्कपूर्ण और परस्पर स्वीकार्य सीमा-समाधान को खंगालेंगे। इसके अलावा विदेश मंत्रियों और अन्य अफसरों के स्तर पर भी प्रासंगिक वार्ताएं रखी जाएंगी जो द्विपक्षीय रिश्तों को स्थिर और मजबूत कर सकें।’’
सीमा-विवाद पर विशेष दूतों के बीच वार्ता को बहाल करने का फैसला सकारात्मक है। ऐसी बैठकें 2019 के बाद नहीं हुई हैं। माना जा रहा है कि भारत के राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजित डोभाल और चीनी विदेश मंत्रालय के वरिष्ठ अधिकारी वांग यी के बीच यह बैठक होगी। विदेश मंत्रालय ने बताया, ‘‘दोनों के नेताओं ने भरोसा जताया कि दो पड़ोसियों और धरती के दो सबसे बड़े राष्ट्रों भारत और चीन के बीच स्थिर, प्रत्याशित और अनुकूल द्विपक्षीय रिश्तों का क्षेत्रीय तथा वैश्विक शांति और समृद्धि के ऊपर सकारात्मक असर होगा। यह एशिया और विश्व में बहुध्रुवीयता की दिशा में भी योगदान देगा।’’
बैठक के बाद कजान में एक प्रेस कॉन्फ्रेंस में विदेश सचिव विक्रम मिसरी ने बताया, ‘‘सीमावर्ती इलाकों में अमन-चैन की बहाली से हम सामान्यता की राह पर लौट सकेंगे। सभी द्विपक्षीय प्रणालियों को सक्रिय किया जाएगा।’’
जाहिर है ये शुरुआती कदम ही हैं। द्विपक्षीय रिश्तेी के मामले में 2020 के पहले वाली स्थिति पर लौटने के लिए दोनों देशों को अब भी बहुत कुछ करना बाकी है। सब कुछ इस पर निर्भर करता है कि इन घोषणाओं के बाद क्या कदम उठाए जाएंगे।
जेएनयू की चीन विशेषज्ञ अलका आचार्य कहती हैं, ‘‘बाधाओं को पार कर के उच्चस्तरीय वार्ताओं की शुरुआत करने का मतलब 2020 के टकराव या सीमा विवाद का समाधान नहीं है। इसलिए मैं किसी चमत्कार की उम्मीद नहीं कर रही- फिलहाल संवाद जारी रखने और संबंध सुधारने पर एक मोटामोटी सहमति का वक्तव्य ही हमारे सामने है, लेकिन इस बैठक को मुमकिन करने के पीछे के समझौते की वास्तविक प्रकृति अब भी स्पष्ट नहीं है। दोनों ही पक्षों ने बहुत संक्षेप में और अलग तरीके से प्रतिक्रिया दी है। हो सकता है इसके विवरण बाद में सामने आएं, लेकिन मोदी-शी की बैठक को समझने के लिए आधार रूप में इतना ही काफी है। निकट भविष्य में किसी किस्म की सहकारिता या सहयोगात्मक साझीदारी पर समेकित नजरिये के मामले में भारत और चीन आसपास भी नहीं हैं।’’
चाहे जो हो, यह एक बड़ा घटनाक्रम है और जानकारों का मानना है कि ब्रिक्स के नेताओं, खासकर रूस के राष्ट्रपति व्लादीमिर पुतिन ने परदे के पीछे इसमें अहम भूमिका निभाई होगी। आचार्य कहती हैं, ‘‘अगर भारत और चीन ने बात करना बंद कर दिया तो ब्रिक्स की जमीन ही खिसक जाएगी और एससीओ में भी सन्नाटा छा जाएगा।’’
शी ने 2014 में मोदी के प्रधानमंत्री बनने के बाद भारत का दौरा किया था। मोदी ने उन्हें गुजरात बुलाकर अहमदाबाद घुमाया था
चीन के सरकारी अखबार ग्लोबल टाइम्स ने सीमा गश्त पर हुए समझौते का स्वागत किया है। एक के बाद एक सुलझाए गए चार अन्य मुद्दों के बाद लद्दाख की सीमा पर गश्त का मुद्दा आखिरी बचा था जिस पर दोनों देशों में रार थी। अखबार अपने संपादकीय पन्ने पर लिखता है, ‘‘दोनों देशों के संबंधों का पटरी पर आना दोनों के हितों से सुसंगत है और ‘ग्लोबल साउथ’ के देशों की अपेक्षा के अनुरूप है। बदलाव और उथल-पुथल से भरी इस दुनिया में चीन और भारत को अपनी आजादी और स्वायत्तता को बरकरार रखना चाहिए तथा एकता और सहयोग का रास्ता अपनाना चाहिए। एक दूसरे से भिड़ने के बजाय उन्हें मिलकर कामयाबी की दिशा में काम करना चाहिए। उम्मीद है कि इन संकल्पों के सहारे दोनों पक्षों को अपने मतभेद व्यावहारिक ढंग से सुलझाने का एक मौका मिलेगा और सह-अस्तित्व के लिए वे रचनात्मक रास्ते खोज सकेंगे ताकि चीन-भारत के रिश्ते स्वस्थ, स्थिर और सतत विकास की राह पर वापस लौट सकें।’’
भारत और चीन के रिश्ते शुरू से ही ऊपर-नीचे होते रहे हैं। आजादी के शुरुआती दिनों में लगे नारे ‘हिंदी चीनी भाई भाई’ के बाद 1962 में जंग हुई, जिसमें भारत की हार ने आम लोगों की निगाह में चीन को संदिग्ध बना दिया। राजीव गांधी 1988 में बीजिंग गए, तब जाकर रिश्तों में नरमी आई और कुछ दिनों तक संबंध बहाली की दिशा में दोनों पड़ोसी बराबर अग्रसर दिखे, लेकिन रह-रह के पीएलए भारत के कथित क्षेत्र में एलएसी पर अतिक्रमण करता रहा। कई दौर की बातचीत के बावजूद भारत-चीन का सीमा विवाद हल नहीं हो सका है। इस खींचतान की बड़ी वजह यह है कि चीन मैकमोहन रेखा को मानने को तैयार नहीं होता, जिसका नामकरण उस ब्रिटिश अधिकारी के ऊपर है जिसने दोनों देशों को बांटने वाली सीमारेखा खींची थी।
2020 के सैन्य टकराव तक मोदी और शी के बीच रिश्ते अच्छे दिखते थे। शी ने 2014 में मोदी के प्रधानमंत्री बनने के बाद भारत का दौरा किया था। मोदी ने उन्हें गुजरात बुलाकर अहमदाबाद घुमाया था। दोनों के बीच आधिकारिक बातचीत दिल्ली में हुई थी। मई 2015 में शी ने बदले में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को अपने गृह जिले जियान में न्योता दिया और उसके बाद बीजिंग में आधिकारिक बैठकें हुईं, लेकिन 2017 मे दोकलाम का टकराव हुआ और रिश्ते बिगड़ गए।
दोकलाम का टकराव दोनों देशों के रिश्तों का एक कड़ा इम्तिहान साबित हुआ। पूरे सत्रह दिनों तक दोनों पक्षों ने पलक तक नहीं झपकाई, इससे तनाव बढ़ता चला गया। इसके बाद रिश्तों में नरमी आने की कोई वजह दिखाई नहीं पड़ी। फिर 2018 के अप्रैल में वुहान में अनौपचारिक शिखर सम्मेलन हुआ। दूसरा सम्मेलन अक्टूबर 2019 में हुआ। इसके बावजूद 2020 की गर्मियों में भारत और चीन के बीच सैन्य टकराव हो गया। उसका सीधा असर राजनीतिक संबंधों पर पड़ा और रिश्ते बिगड़ गए।