Advertisement
26 October 2022

ब्रिटेन में हिन्दू प्रधानमंत्री के मायने

भारतवंशी ऋषि सुनक ब्रिटेन के नए प्रधानमंत्री बन गए हैं। पिछले कई दिनों से ऋषि के प्रधानमंत्री बनने के कयास लग रहे थे और जब पीएम बनने की दौड़ से पूर्व प्रधानमंत्री और बाद में पेनी मॉर्डेन्ट ने अपना नाम वापस लिया तो तय हो गया कि अब ब्रिटेन की कमान सुनक के हाथों में ही आएगी। ब्रिटेन के नए राजा किंग चार्ल्स तृतीय ने पहले एक प्रधानमंत्री का इस्तीफा लिया फिर अपने कार्यकाल के पहले प्रधानमंत्री के तौर पर ऋषि सुनक को नियुक्त किया। लेकिन जैसे ही सुनक ने बतौर प्रधानमंत्री 10 डाउनिंग स्ट्रीट ( प्रधानमंत्री निवास) पहुंचे भारत समेत पूरी दुनिया में एक वर्ग एक नया नैरेटिव गढ़ने की कोशिश में जुट गया। हालांकि ज्यादातर देशों ने ब्रिटेन के इस ऐतिहासिक घटना को बदलते दौर की जरूरत बताया और सही करार दिया लेकिन ब्रिटेन और भारत दोनों देशों में ऋषि सुनक को लेकर अपने अपने तर्क दिए जाने लगे। खासतौर पर अगर भारत की बात करें तो एक धड़ा बार बार ऋषि सुनक को हिन्दू के साथ साथ अल्पसंख्यक बताते हुए ये सवाल उठाने लगा कि ब्रिटेन का लोकतंत्र तो इतना मजबूत हो चुका कि वो एक हिन्दू को प्रधानमंत्री के तौर पर स्वीकार कर रहा है लेकिन क्या भारत ऐसा करेगा। मतलब किसी मुसलमान को प्रधानमंत्री स्वीकार करेगा। सवाल बेतुका और बेबुनियाद है। पहले हम जरा ऋषि सुनक को समझते हैं। ब्रिटेन में जन्मे और ब्रिटेन में ही पले बढ़े ऋषि सुनक पूरी तरह से ब्रिटिशर हैँ। उनके दादाजी अपने बच्चों को लेकर साठ के दशक में ही दक्षिण अफ्रीका से ब्रिटेन आ गए थे। सुनक के दादाजी जब भारत से दक्षिण अफ्रीका गए थे उस वक्त भारत पर ब्रितानियों का ही राज था। सुनक पूरी तरह से ब्रिटेन के कायदे कानून और सिस्टम में विश्वास रखने वाले ब्रितानी नागरिक हैँ। दरअसल सुनक को सिर्फ हिन्दू कहकर संबोधित करना,उनको एक दायरे में समेटना होगा। सुनक सनातनी हैं। भारत में एक बड़ा हिन्दू समुदाय आम जीवन में रोज रोज के क्रियाकलापों में जिन सनातनी आस्थाओं से अपनी दूरी बना रहा है वहीं ब्रिटेन में जन्म लेने के बाद भी सुनक उन विश्वासों से मजबूत धागे से बंधे हैं जो कि जाहिर है उनकी परवरिश का परिणाम है। ऋषि मंदिर जाते हैं, गाय की पूजा करते हैं, दिवाली पर सरकारी आवास के बाहर दीए जलाते हैं, होली-जन्माष्टमी मनाते हैं, सनातनी गुरुओं का आदर करते हैं, उनमें विश्वास रखते हैं, गीता हाथ में लेकर शपथ लेते हैं और दाहिने हाथ में कलावा, जिसे आम हिन्दू रक्षा बंधन के तौर पर देखता है, बांधते हैं। सुनक दरअसल व्यवहार से सनातनी हैं क्यूंकि वो गर्व से कहते हैं कि उन्हें सभी धर्मों में विश्वास है लेकिन वो हिन्दू हैं। ऋषि सुनक के हिन्दू बने रहने के लिए सुनक से ज्यादा उनके माता-पिता, दादा-दादी और नाना-नानी को साधुवाद देना चाहिए। जिनकी जड़ें हिन्दुस्तान से कट गई हों, जो जन्म से ब्रितानी हो और परवरिश भी ब्रिटेन में हुई हो, फिर भी अगर वो हिन्दू धर्म में विश्वास रखता है तो उनके ही संस्कार हैं।

ऐसे में जो लोग सुनक के बहाने भारत की राजनीति में अल्पसंख्यकों की स्थिति पर चर्चा कर रहे हैं दरअसल वो अपनी राजनैतिक रोटी सेंक रहे हैं। जो ये कह रहे हैं कि भारत को ब्रिटेन से ये सीखना चाहिए कि कैसे किसी अल्पसंख्यक को प्रधानमंत्री बनाया जा सकता है उनको सही मायने में ये समझना चाहिए कि दुनिया के सबसे बड़े औपनिवेशिक साम्राज्य ने ये दिखाया है कि काबलियत की पूछ होनी चाहिए। सुनक इसलिए प्रधानमंत्री नहीं बने क्यूंकि वो हिन्दू हैं, जिन 200 सासंदों ने सुनक का समर्थन किया उनमें एक भी हिन्दू नहीं है। ब्रिटेन ने उन्हें अपना नेता इसलिए नहीं माना कि वो किसी भारतीय मूल के व्यक्ति को इस दौर में अपने देश का प्रधानमंत्री बनाकर दुनिया में संदेश देना चाहता है बल्कि सुनक को इसलिए चुना गया क्यूंकि ब्रिटेन ने ये एक बार फिर साबित किया कि आप अगर काबिल हैं तो आपको मौका मिलेगा। यहां के राजनीति गलियारों में एक चर्चा आम है कि अगर आप पहले ऑक्सफर्ड और उसके बाद अमेरिका के स्टैनफर्ड या हार्वर्ड से शिक्षित होकर ब्रिटिश राजनीति में प्रवेश पाना चाहते हैं तो ये सबसे सही और आजमाया हुआ रास्ता है। आप इसी से कल्पना कर सकते हैं कि ब्रिटेन की राजनीति में किस किस्म के लोगों को प्रवेश मिलता है।

ऋषि सुनक न सिर्फ पहले भारतवंशी हैं जो ब्रिटेन के प्रधानमंत्री बने हैं बल्कि 210 साल बाद सबसे कम उम्र में इस पद तक पहुंचने वाले व्यक्ति हैं। ऋषि की उम्र महज बयालीस साल है। इससे पहले तैंतालीस साल की उम्र में डेविड कैमरन ब्रिटेन के प्रधानमंत्री बने थे। अपने कार्यकाल में कैमरन ने तकरीबन 10 साल पहले ब्रिटिश लोकतंत्र की खूबियां गिनाते हुए कहा था कि ब्रिटेन में कभी भी कोई भारतवंशी प्रधानमंत्री बन सकता है। आज उनकी बात सच साबित हुई है। इसका मतलब ये कतई नहीं है कि सुनक की नीतियां ब्रिटेन के नुकसान की कीमत पर भारत को लाभ देनेवाली होंगी। ऐसा बिल्कुल नहीं होगा और होना भी नहीं चाहिए। सुनक ब्रिटेन के प्रधानमंत्री बने हैं और उसका हित देखना ही उनकी पहली प्राथमिकता होगी और उसे महज हिन्दू के दायरे में सीमित करके भारत तक सीमित करना नाइंसाफी होगी। हालांकि ब्रिटेन में भी एक धड़ा ऐसा है जिसे आप अतिवादी कह सकते हैं और उनकी तादाद भी राजनीति में अच्छी खासी है। दरअसल वो अभी अपनी औपनिवेशिक मानसिकता से नहीं निकल पाए हैं। इसीलिए सुनक के प्रधानमंत्री बनते ही उन्होंने अपना मोर्चा खोल दिया है। इसमें विपक्षी पार्टी के नेताओं के साथ साथ सुनक की कंजर्वेटिव पार्टी के भी कुछ नेता शामिल हैं। जब आपके अपने देश में लोग आपको एक सीमा में बांधने लगे तो आपकी मुश्किलें भी बढ़ती हैं और जिम्मेदारियां भी। सुनक के साथ अभी वही हालात हैं। बतौर वित्त मंत्री सुनक ने बड़ी बारीकी से देश को कोविड से बाहर निकालने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है, अब जबकि ब्रिटेन ऐतिहासिक चुनौतियों से जूझ रहा है नए प्रधानमंत्री के सामने भी चुनौतियों का अंबार है। पहले ब्रेग्जिट, फिर कोविड और उसके बाद रूस-यूक्रेन के जंग ने ब्रिटेन को ऐसे दौर में ला खड़ा किया है जहां ये आसानी से कहा जा सकता है कि ब्रिटेन आर्थिक तौर पर अपने सबसे बुरे दौर से गुजर रहा है। ऐसे में ब्रिटेन को स्थायित्व की ओर ले जाने की बड़ी चुनौती सुनक के सामने है। पिछले महीने जब सुनक लिज ट्रस से आखिरी दौर में पिछड़ गए थे तब सुनक ने ट्रस की आर्थिक नीतियों को देश के लिए भयावह कहा था। उन्हीं नीतियों की वजह से ट्रस को महज 45वें दिन त्यागपत्र देने की नौबत आ गई। अब सबकी नजर सुनक की आर्थिक नीतियों पर होंगी। भारत के साथ मुक्त व्यापार के मुद्दे पर एक दूसरी भारतवंशी नेता सुएला ब्रेवरमैन के बतौर गृहमंत्री बयानों ने भी लिज ट्रस के लिए मुश्किलें पैदा की थीं और लिज ने अपने इस्तीफे से एक दिन पहले ही उन्हें उनके पद से हटाया था । अब सुएला दोबारा ब्रिटेन की गृहमंत्री हैं और भारत के साथ मुक्त व्यापार पर आखिरी दौर की चर्चा निकट भविष्य में ही होनी है शायद अगले 15 दिनों के अंदर। ऐसे में ऋषि सुनक के लिए फैसले आसान नहीं होंगे। फिर सब ये भी जानते हैं कि ऋषि की पत्नी, इँफोसिस के संस्थापक नारायण मूर्ति की बेटी अक्षता मूर्ति अब भी ब्रिटिश नागरिक नहीं है। ये सारे पहलू ऋषि सुनक के लिए केकवॉक नहीं होंगे। सुनक हिन्दू नहीं भी होते तब भी वो ब्रिटेन के प्रधानमंत्री बन सकते थे, उनके सामने चुनौतियां भी ऐसी ही होतीं लेकिन उनके हिन्दू होने से उनकी चुनौतियां कम नहीं हुई हैं बल्कि बढ़ गई हैं। लेकिन इतना तय है कि आने वाले सालों में ब्रिटेन की राजनीति में भारतवंशियों की संख्या में बढ़ोतरी जरूर देखी जाएगी। वो भारतीय ब्रिटिश जो पहली, दूसरी या तीसरी पीढ़ी के ब्रितानी हैं वे संभावनाओँ को देखते हुए निश्चित ही राजनीति में दिलचस्पी लेंगे और जब अगले कुछ सालों में कोई दूसरा सनातनी भारतवंशी इस पद तक पहुंचेगा तब ऋषि की ये यात्रा पूरी होगी। ऋषि का ब्रिटेन का प्रधानमंत्री बनना एक नए युग की शुरुआत है।

Advertisement

(लेखक इंग्लैंड रहकर में भारत-यूरोप संबंधों पर शोधरत हैं)

 

अब आप हिंदी आउटलुक अपने मोबाइल पर भी पढ़ सकते हैं। डाउनलोड करें आउटलुक हिंदी एप गूगल प्ले स्टोर या एपल स्टोरसे
TAGS: ब्रिटेन, हिंदू प्रधानमंत्री, ऋषि सुनक, अनुरंज झा, Britain, Hindu Prime Minister, Rishi Sunak, Anuranj Jha
OUTLOOK 26 October, 2022
Advertisement