द्विपक्षीय संबंधों को मजबूत करने चीन पहुंचे राष्ट्रपति मुखर्जी
प्रणब मुखर्जी राष्ट्रपति के तौर पर पहली बार चीन के दौरे पर गए हैं। इससे पहले विभिन्न पदों पर रहने के दौरान उन्होंने कई बार इस देश का दौरा किया है जिसमें योजना आयोग के उपाध्यक्ष और रक्षा मंत्री के तौर पर किया गया दौरा शामिल है। चीन के औद्योगिक शहर ग्वांगझू में मुखर्जी भारत-चीन बिजनेस फोरम को संबोधित करेंगे जिसमें कुछ शीर्ष भारतीय उद्योगपति भी मौजूद रहेंगे। ग्वांगझू दक्षिण तटीय चीन के गुआंगडोंग प्रांत की राजधानी है, जो देश की जीडीपी में 12 फीसदी योगदान करता है और यहां चीन के कई महत्वपूर्ण उद्योग धंधे हैं।
राष्ट्रपति वृहस्पतिवार को बीजिंग पहुंचेंगे जहां वह राष्ट्रपति शी जिनपिंग और चीन के दूसरे शीर्ष नेताओं से मुलाकात करेंगे जिनमें प्रधानमंत्री ली किकियांग और नेशनल पीपुल्स कांग्रेस के अध्यक्ष झांग देजियांग शामिल हैं। चीन के नेतृत्व के साथ विचार-विमर्श में परमाणु आपूर्तिकर्ता समूह में भारत की सदस्यता और अजहर पर संयुक्त राष्ट्र प्रतिबंध का मुद्दा प्रमुखता से उठने के आसार हैं। चीन के राष्ट्रपति शी के सितंबर 2014 के भारत दौरे के समय से द्विपक्षीय संबंध मजबूत हुए हैं जिस दौरान दोनों देशों ने 12 समझौतों पर हस्ताक्षर किए थे और चीन ने भारत के आधारभूत ढांचे में 20 अरब डॉलर के निवेश की इच्छा जताई थी। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने पिछले साल मई में चीन की यात्रा की थी, जिस दौरान दोनों पक्षों ने कई क्षेत्रों में संबंध प्रगाढ़ करने पर जोर दिया था।
हालांकि हाल ही में दोनों देशों के संबंधों में तब खटास आ गई जब चीन ने जैश ए मोहम्मद के प्रमुख अजहर को संयुक्त राष्ट्र में प्रतिबंधित कराने की भारत की पहल का विरोध किया और एनएसजी में भारत की सदस्यता का विरोध करते हुए कहा कि 48 सदस्यीय समूह में शामिल होने के लिए उसे परमाणु अप्रसार संधि (एनपीटी) पर अवश्य हस्ताक्षर करने चाहिए। भारत ने चीन के तर्क का विरोध करते हुए कहा कि एनएसजी का सदस्य होने के लिए एनपीटी पर हस्ताक्षर करने को लेकर वह भ्रम में है क्योंकि गैर एनपीटी देशों को भी असैन्य परमाणु सहयोग में शामिल होने की अनुमति है। दौरे में मुखर्जी के साथ कपड़ा मंत्री संतोष गंगवार, चार सांसद और विदेश सचिव एस. जयशंकर भी चीन के दौरे पर आए हैं।