म्यांमार में चुनाव आयोग पर नतीजों में देरी का आरोप
नेशनल लीग फॉर डेमोक्रेसी (एनएलडी) की ओर से आए इस आश्चर्यजनक आरोप के कारण, अब तक मैत्रीपूर्ण कहे जा रहे चुनाव में चिंताजनक मोड़ आ गया है। इन चुनावों में सत्ताधारी पार्टी अपने संभावित नुकसान को गरिमापूर्ण ढंग से स्वीकार करती दिखाई दे रही थी।
एनएलडी के प्रवक्ता विम टीन ने पार्टी की बैठक के बाद सू की के आवास के बाहर संवाददाताओं को बताया, केंद्रीय चुनाव आयोग जानबूझकर देरी कर रहा है क्योंकि वे शायद कोई तरकीब लड़ाना चाहते हैं। उन्होंने कहा, उनके द्वारा नतीजों को टुकड़ा-टुकड़ा करके जारी करने का कोई औचित्य नहीं है। ऐसा नहीं होना चाहिए। उन्होंने कहा, वे बेईमानी करने की कोशिश कर रहे हैं।
कुल 664 सदस्यीय संसद की सिर्फ 50 सीटों पर ही नतीजे जारी करने वाले चुनाव आयोग ने इस आरोप का तत्काल कोई जवाब नहीं दिया। एनएलडी ने देश के 14 राज्यों की 164 सीटों में से चार राज्यों की कुल 154 सीटों पर जीत का दावा किया है। इसके अलावा आयोग ने घोषणा की कि एनएलडी ने चार अन्य क्षेत्रीय संसदों की 15 में से 11 सीटें जीतीं थीं। इन आरोपों के साथ सत्ताधारी पार्टी के इरादों के बारे में चिंताएं पैदा हो गई हैं। यह पार्टी वर्ष 1962 से 2011 तक देश में शासन करने वाली सेना के अधीन है। सेना के शासन के बाद देश का शासन यूनियन सॉलिडेरिटी पार्टी के हाथ आया। राष्ट्रपति थीन सीन के नेतृत्व वाली यह पार्टी सैन्य जुंटा के पूर्व सदस्यों वाली पार्टी है।
म्यांमार के दुनिया में अलग-थलग पड़ जाने की अवधि खत्म करने के लिए राजनीतिक और आर्थिक सुधार शुरू करने और इसकी मृतप्राय पड़ी अर्थव्यवस्था में जान फूंकने के लिए पूर्व जनरल थीन सीन की सराहना की जाती है। नतीजों में टालमटोल इसलिए भी परेशान करने वाली है क्योंकि वर्ष 1990 के चुनावों में एनएलडी ने भारी जीत हासिल की थी लेकिन जुंटा ने नतीजों को मानने से इंकार कर दिया था।
फिर भी पर्यवेक्षकों का मानना है कि दोबारा हस्तक्षेप करने से सेना को ज्यादा कुछ हासिल नहीं करना है क्योंकि लोकतंत्र को प्रगति करने देने के लिए चलाए गए सुधार कार्यक्रम के तहत वह पहले ही संवैधानिक रूप से प्रदत्त ताकतों पर अपनी स्थिति पक्की कर चुकी है। उदाहरण के लिए, सरकार कोई भी बनाए, रक्षा मंत्राालय, गृह मंत्रालय और सीमा सुरक्षा का नियंत्रण सेना ने अपने पास ही रखा है। वह राष्ट्रीय अर्थव्यवस्था के बड़े हिस्सों पर नियंत्रण रखती है। इसके अलावा सेना संवैधानिक संशोधनों को अवरूद्ध करने में भी सक्षम होगी क्योंकि संसद की 25 फीसदी सीटें सेना के लिए आरक्षित है जबकि संशोधनों के लिए 75 फीसदी से अधिक वोटों की जरूरत होती है।
ऐसी उम्मीद की जा रही है कि एनएलडी संसद की अधिकतर सीटें हासिल कर लेगी। दो तिहाई बहुमत मिल जाने पर एनएलडी को म्यांमार की पेचीदा संसदीय व्यवस्था में कार्यकारी पदों पर नियंत्रण मिल जाएगा।