नेपाली पीएम दहल चीन के बजाए भारत पहले आ रहे, अंदाज भी है नरम
यात्रा से पहले माहौल को बेहतर करने के लिए नेपाल के विदेश मंत्री प्रकाश शरण महत ने विदेश मंत्री सुषमा स्वराज से मुलाकात की। दौरे के मुद्दे पर मंगलवार को नेपाल में सर्वदलीय बैठक भी बुलाई गई। प्रचंड ने भी विश्वास जताया है कि उनका दौरा दोनों देशों के संबंधों को सामान्य बनाने में मददगार होगा, जो हाल के समय में खराब दौर से गुजर रहे थे। पिछली केपी शर्मा ओली की सरकार के दौरान नेपाल को चीन के करीब देखा जा रहा था, लेकिन प्रचंड की भारत यात्रा से अक्टूबर में चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग के प्रस्तावित नेपाल दौरे पर सवालिया निशान उठ रहे हैं। चीन के महत्वाकांक्षी 'वन बेल्ट वन रोड' प्रॉजेक्ट से जुड़ने में भी नेपाल हिचकिचाहट दिखा रहा है।
प्रचंड जब पहली बार 2008 में पीएम बने थे, तब भारत में उनकी विचारधारा को लेकर चिंता हो गई थी। उनका रुझान भारत के प्रति दोस्ताना नहीं देखा जाता था। लेकिन इस बार उन्होंने अपने अंदाज में बदलाव के संकेत दिए हैं। इसकी वजह यह भी है कि प्रचंड की सरकार नेपाली कांग्रेस और मधेसी दलों के संगठन युनाइटेड डेमोक्रेटिक मधेसी फ्रंट के समर्थन पर टिकी है, जिनका भारत से अच्छा संबंध रहा है।
भारत और नेपाल के संबंधों में पिछले कुछ समय में जो मतभेद रहेे, उसकी शुरुआत नए संविधान से हुई। इसके रोडमैप को नेपाल के तराई या मधेस क्षेत्र में भेदभावकारी माना गया। भारतीय मूल के नेपाली नागरिक मधेसी चाहते थे कि उनकी जनसंख्या के मुताबिक उनको प्रतिनिधित्व मिले। इस विरोध के बावजूद संविधान को 2015 में अंगीकार कर लिया गया। इसके बाद उनका आंदोलन हिंसक हो गया। आंदोलनकारियों ने नेपाल-भारत के बॉर्डर को बंद कर दिया। इससे नेपाल में जरूरी चीजों की किल्लत हो गई। तब केपी शर्मा ओली सरकार ने इसके लिए भारत सरकार को जिम्मेदार माना। अब दहल ने अब कहा है कि संविधान में संशोधन पर चर्चा चल रही है, इसमें असंतुष्ट गुटों की मांगों पर चर्चा सकारात्मक नतीजे के करीब है।
दहल की भारत यात्रा से पहले पूर्व पीएम केपी शर्मा ओली ने दहल को एक ज्ञापन सौंपा, जिसमें भारत के साथ 1950 की संधि संशोधित करने के लिए कदम उठाने की मांग की गई है। दहल ने नेपाली संसद की अंतरराष्ट्रीय संबंधों की समिति से कहा है कि वह भारत के साथ कोई नया समझैता नहीं करेंगे, बल्कि पुराने समझौतों के अमल पर ही ध्यान देंगे।