जलवायु समझौते का नया मसौदा जारी, लेकिन अहम मुद्दे अनसुलझे
पेरिस में निकले नतीजे का यह पहला मसौदा दो दिवसीय मंत्री स्तरीय गहन विमर्श के बाद तैयार किया गया है जिसे फ्रांस के विदेश मंत्री लाॅरेंत फैबियस ने जारी किया। इस मसौदे पर अब 196 देशों द्वारा विचार किया जाएगा जिसके बाद ही अंतिम फैसले पर पहुंचेंगे। नये मसौदा का पाठ पिछले वाले के मुकाबले काफी छोटा महज 29 पृष्ठों का है जिसे वार्ता में शामिल सभी देशों को वितरित किया गया। इससे पहला मसौदा 48 पन्नों का था।
कौन उठाएगा पर्यावरण बचाने का खर्च
मसौदे के बारे में जलवायु परिवर्तन वार्ता के वर्तमान सत्र के अध्यक्ष फैबियस ने बताया कि इस मसौदे का लक्ष्य सभी देशों को अभी तक हुई प्रगति से अवगत कराना है। इस मसौदे में बुनियादी मतभेद को दूर नहीं किया गया कि कम कार्बन वाली ऊर्जा की व्यवस्था की ओर दुनिया को ले जाने का खर्च कौन देश वहन करेंगे। विकासशील देश मांग कर रहे हैं कि अमीर सरकारें देश परिवर्तन संबंधी वित्त को बढ़ायें जिसमें उन्होंने 2020 की शुरूआत में 100 अरब डाॅलर देने का वादा पहले ही किया है। फैबियस ने स्पष्ट किया कि आज जो मसौदा वितरित किया गया है वो समझौते का आखिरी संस्करण नहीं है।
विकासशील देशों पर जिम्मेदारी थोपना चाहते हैं विकसित देश: भारत
भारत ने हर देश की राष्ट्रीय जलवायु कार्य योजनाओं को अहम परिवर्तन लाने वाली करार देते हुए आज इस बात पर गहरी चिंता जताई कि जलवायु परिवर्तन वार्ताकारों ने वार्ता संबंधी जो नया मसौदा जारी किया है, उनमें इन योजनाओं को शामिल नहीं किया गया है। भारत ने कहा कि विकसित देशों ने अपना दायित्व पूरा नहीं किया है।
पेरिस सम्मेलन में मौजूद पर्यावरण मंत्री प्रकाश जावडेकर ने मसौदे के बारे में कहा, वित्त की बात करें तो यह बेहद निराशाजनक है कि एक ओर तो विकसित देश अपनी प्रतिबद्धताएं पूरी नहीं कर रहे और दूसरी ओर वे अपनी जिम्मेदारी विकासशील देशों पर हस्तांतरित करने की कोशिश कर रहे है। इसमें न तो विकसित देशों द्वारा वित्तीय मदद बढ़ाने का कोई संकेत है और न ही इस संबंध में कोई रोडमैप पेश किया गया है। जावडेकर के मुताबिक, मसौदे में जलवायु न्याय और टिकाऊ जीवनशैली जैसे कई अहम मुद्दों का जिक्र अवश्य होना चाहिए था।
सामूहिक लेकिन भिन्न दायित्व के सिद्धांत की अनदेखी?
जलवायु परिवर्तन पर होने जा रहे समझौते के मझौदे में सामूहिक लेकिन भिन्न दायित्व के सिद्धांत की अनेदेखी के आरोप भी लग रहे हैं। इस सिद्धांत के मुताबिक, पर्यावरण को जलवायु परिवर्तन के खतरे से बचाने की जिम्मेदारी सभी मुल्कों की है लेकिन जो देश इस समस्या के लिए ज्यादा जिम्मेदार हैं उनका दायित्व अधिक बनता है। इसी के मद्देनजर अधिकांश देशों ने कार्बन उत्सर्जन में कटौती की अपनी योजनाएं बनाई हैं जिसे अभीष्ट राष्ट्रीय निर्धारित योगदान यानी आईएनडीसी कहते हैं।
जावडेकर ने कहा कि आईएनडीसी एक बड़ी नवीन खोज है और यह महत्वपूर्ण परिवर्तन लाने वाली साबित हुई है। इसने 186 से अधिक देशों की भागीदारी को समर्थ बनाया है। इसके बावजूद आईएनडीसी का मसौदे में जिक्र नहीं किया गया। जलवायु परिवर्तन संबंधी वाताओं के दौरान भारत ने मजबूती से अपनी बात रखी कि एेतिहासिक जिम्मेदारियों को कम करके या प्रदूषकों और पीड़ितों को समान स्तर पर लाकर पेरिस में कोई स्थायी समझौता तैयार नहीं किया जा सकता।
जावड़ेकर ने ताजा मसौदे को केवल निर्णायक कदम का शुरूआती बिंदु बताते हुए कहा कि वार्ता के इस चरण में कई अलग-अलग रूख हैं और किसी एक आम सहमति पर पहुंचने के लिए बहुत काम करने की आवश्यकता है। भारत ने यह भी स्पष्ट किया कि जो समझौता तैयार किया जा रहा है, उसमें जलवायु महत्वाकांक्षाओं और भिन्न दायित्वों के सिद्धांत के बीच संतुलन होना चाहिए क्योंकि दोनों समान रूप से महत्पूर्ण हैं और एक के बिना दूसरे को प्राप्त करना संभव नहीं है।
- एजेंसी इनपुट