रूस-यूक्रेन युद्ध: तबाही की आग ले आई तंगहाली
हमले में यूक्रेन के अनेक शहर बर्बाद तो प्रतिबंधों के कारण रूस भी आर्थिक तबाही की ओर बढ़ रहा, कई देशों के सामने खाद्य संकट के आसार...
कहा जाता है कि जिस पर युद्ध थोपा जाता है, वह तो बर्बाद होता ही है, युद्ध थोपने वाला भी तबाही से नहीं बचता। रूस-यूक्रेन युद्ध की भी यही परिणति दिख रही है। रूस ने 24 फरवरी को यूक्रेन पर हमला शुरू किया था। तीन हफ्ते में यूक्रेन के कई शहर खंडहर बन चुके हैं। रूस ने सैनिक ठिकानों के अलावा रिहायशी इमारतों और अस्पतालों को भी निशाना बनाया है। स्थिति दिनोंदिन बिगड़ती जा रही है। रूस से लगती यूक्रेन की पूर्वी सीमा पर शुरू हुआ युद्ध पश्चिम में पोलैंड की सीमा तक पहुंच गया है। यूक्रेन को पश्चिमी देशों से हथियारों की सप्लाई इसी इलाके से होती रही है। पोलैंड नाटो का सदस्य है और अमेरिका ने चेतावनी दी है कि अगर नाटो के किसी सदस्य देश पर हमला हुआ तो जवाबी कार्रवाई की जाएगी। जान बचाने के लिए यूक्रेन से करीब 30 लाख शरणार्थी पड़ोसी देशों में जा चुके हैं, जिनमें अधिकांश महिलाएं, बच्चे और बुजुर्ग हैं। संयुक्त राष्ट्र के अनुसार 600 से ज्यादा आम नागरिक मारे जा चुके हैं। अब तक कई दौर की शांति वार्ता बेनतीजा रही है।
युद्ध से रूस भी आर्थिक तबाही की ओर बढ़ रहा है। गूगल, नेटफ्लिक्स, फेसबुक, ट्विटर, वीजा, मास्टरकार्ड जैसी अनेक अंतरराष्ट्रीय कंपनियों और बैंकों ने रूस में बिजनेस बंद कर दिया है। रूसी उड़ानों पर अमेरिका और यूरोपीय देशों ने पाबंदी लगा रखी है, इसलिए अनेक रूसी युवा उन देशों में जा रहे हैं जहां विमान उतरने की अनुमति है। उन्हें लगता है कि आने वाले दिनों में जीवन नर्क हो जाएगा। रूस कारें, मशीनरी, रसायन, खाने के सामान, दवा आदि का आयात करता है। प्रतिबंध के चलते वहां जल्दी ही इन चीजों की किल्लत होने वाली है। चीन रूस के साथ है, लेकिन रूस के कुल आयात में चीन का हिस्सा सिर्फ 20 फीसदी है। नए घटनाक्रम में अमेरिका ने कहा है कि रूस ने चीन से सैन्य और आर्थिक मदद मांगी है।
रूस और यूक्रेन ऊर्जा, खाद्य पदार्थ और रसायन के बड़े निर्यातक हैं, इसलिए अन्य देशों पर भी असर होना लाजिमी है। दुनिया के गेहूं निर्यात में रूस और यूक्रेन की 30 फीसदी हिस्सेदारी है। यूक्रेन में गेहूं बुवाई का सीजन शुरू होने वाला है, पर युद्ध को देखते हुए लगता नहीं कि यह संभव है। दोनों देश मक्का, सोयाबीन और खाद्य तेल के भी बड़े निर्यातक हैं। दुनिया का आधा सूरजमुखी तेल निर्यात यूक्रेन ही करता रहा है और भारत जरूरत का 93 फीसदी सूरजमुखी तेल यूक्रेन तथा रूस से ही खरीदता है। रूस और बेलारूस उर्वरकों तथा उन्हें बनाने में इस्तेमाल होने वाले रसायनों के भी बड़े निर्यातक हैं। इन सबकी सप्लाई बंद होने पर आने वाले दिनों में अनेक देशों में खाद्य संकट की आशंका है। मध्य पूर्व, दक्षिण एशिया और अफ्रीका के अनेक देशों के लिए रूस और यूक्रेन ‘ब्रेड बास्केट’ के रूप में जाने जाते रहे हैं। विशेषज्ञ अब अनुमान लगा रहे हैं कि संकट कितना गहरा होगा।
मारिउपोल में एक अस्पताल पर हमले के बाद गर्भवती महिला को ले जाते सैनिक
रसायनों की कमी के चलते यूरोप की उर्वरक कंपनियां आधी क्षमता पर काम कर रही हैं। यानी वहां भी खाद्यान्न उत्पादन प्रभावित होगा। उन देशों का तो और बुरा हाल होगा जो पूरी तरह आयात पर निर्भर हैं।
आसन्न संकट को देखते हुए विभिन्न देश अपने यहां भंडार बढ़ाने में लग गए हैं। मिस्र ने गेहूं और दालों का निर्यात रोक दिया है। पाम तेल के सबसे बड़े उत्पादक इंडोनेशिया ने भी इसका निर्यात कम कर दिया है। भारत समेत अनेक देशों में पाम तेल का ही खाने में सबसे अधिक इस्तेमाल होता है। कॉस्मेटिक्स बनाने में भी इसका इस्तेमाल किया जाता है।
उद्योगों में सेलफोन, लैपटॉप, कार और दूसरे इलेक्ट्रॉनिक्स सामान बनाने वाली कंपनियों के तत्काल प्रभावित होने के आसार हैं। इन सबमें चिप लगाया जाता है और चिप बनाने में इस्तेमाल होने वाली सेमीकंडक्टर ग्रेड की नियॉन गैस का लगभग 70 फीसदी निर्यात यूक्रेन करता है। वहां भी 50 फीसदी उत्पादन यूक्रेन की दो कंपनियां इनगैस और क्रायोइन करती हैं। इनगैस कंपनी मारिउपोल में और क्रायोइन ओडेसा में है। हमले के बाद दोनों शहरों पर रूस का नियंत्रण है और इन कंपनियों ने उत्पादन बंद कर दिया है। दुनियाभर की कंपनियां पहले ही दो साल से चिप की कमी का सामना कर रही हैं। अब इनकी किल्लत और बढ़ने वाली है।
अमेरिका और यूरोपीय देश आर्थिक पाबंदी के जरिए ही पुतिन को रोकना चाहते हैं, क्योंकि यूक्रेन में इनके सीधे शामिल होने का मतलब तीसरा विश्व युद्ध शुरू हो सकता है। पुतिन परमाणु हमले की भी धमकी दे चुके हैं। अमेरिका ने रूस से कच्चा तेल और प्राकृतिक गैस का आयात पूरी तरह रोक दिया है। हालांकि यूरोपीय देश तत्काल ऐसा कदम नहीं उठाने वाले। यूरोपियन यूनियन 40 फीसदी गैस, 27 फीसदी कच्चा तेल और 46 फीसदी कोयला रूस से ही आयात करता है। यूनियन ने 2022 के अंत तक रूस से तेल आयात दो तिहाई कम करने और 2027 तक पूरी तरह बंद करने का फैसला किया है।
भारतीय लोगों को सरकार लगातार निकालने का काम कर रही है
भारत पर असर
यूक्रेन में फंसे भारतीय छात्र स्वदेश तो लौट चुके हैं, लेकिन अब उनकी चिंता आगे की पढ़ाई को लेकर है। छात्रों को लाने वाली सरकार ने अभी तक इस बारे में अपना रुख साफ नहीं किया है। लेकिन इन सबसे ज्यादा चिंता अर्थव्यवस्था को लेकर है। जरूरत का 85 फीसदी कच्चा तेल आयात करने वाले भारत में सबसे अधिक डर महंगाई को लेकर है। महंगाई बढ़ने पर हमारी क्रय क्षमता घटेगी और अर्थव्यवस्था में मांग कम होगी। पेट्रोलियम प्लानिंग एंड एनालिसिस सेल (पीपीएसी) के अनुसार 2020-21 में 62.24 अरब डॉलर का कच्चा तेल आयात किया गया था। इस साल दाम बढ़ने के कारण जनवरी तक ही भारत कच्चे तेल के लिए 94.26 अरब डॉलर यानी डेढ़ गुना भुगतान कर चुका है। कच्चा तेल 10 डॉलर महंगा होने पर चालू खाते का घाटा 10 अरब डॉलर बढ़ जाता है। तमाम एजेंसियां इसके एक दशक में पहली बार तीन फीसदी से ऊपर जाने का अंदेशा जता रही हैं। खाद्य तेलों के भी दाम बढ़े हैं। केंद्रीय उपभोक्ता मंत्रालय के आंकड़ों के अनुसार दिल्ली में महीने भर में सोया और पाम ऑयल करीब 20 फीसदी महंगे हो चुके हैं।
भारत उर्वरकों का भी काफी आयात करता है और महीने भर में यूरिया 50 फीसदी, म्यूरेट ऑफ पोटाश 35 फीसदी और फॉस्फोरिक एसिड 15 फीसदी महंगे हो गए हैं। म्यूरेट ऑफ पोटाश का सबसे अधिक आयात बेलारूस तथा रूस से ही होता रहा है। रूस इसका दूसरा और बेलारूस तीसरा सबसे बड़ा उत्पादक है। भारत अपनी जरूरत का लगभग सारा म्यूरेट आफ पोटाश आयात से पूरा करता है। 2020-21 में एक तिहाई आयात बेलारूस और रूस से ही किया गया था। आगे खरीफ की बुवाई होनी है और रूस तथा बेलारूस से सप्लाई रुकने पर भारत में उर्वरकों की कमी होने की आशंका है। उर्वरकों के दाम बढ़ना भी चिंता का विषय है। अंतरराष्ट्रीय बाजार में उर्वरक बनाने में इस्तेमाल होने वाले कच्चे माल भी महंगे हो रहे हैं। यूरिया उत्पादन में 70 फीसदी लागत प्राकृतिक गैस की होती है, जो महंगी हो गई है। इस साल के लिए संशोधित अनुमानों में उर्वरक सब्सिडी 79,500 करोड़ से बढ़ाकर 1.4 लाख करोड़ कई गई थी। इसके और 10 से 15 करोड़ रुपए बढ़ने के आसार हैं। अगले वित्त वर्ष के लिए उर्वरक सब्सिडी 1.05 लाख करोड़ रुपए अनुमानित है। हालात जल्दी न सुधरे तो इसमें भी वृद्धि करनी पड़ेगी।
एक और अहम बात यह है कि भारतीय सेना में करीब 60 फीसदी हथियार रूसी हैं। रूस इनके पुर्जों की भी सप्लाई करता है। रूस से सीधे आयात में फिलहाल तो भारत को कोई खास मुश्किल होती नहीं दिख रही, लेकिन युद्ध लंबा खिंचने पर हालात बदल सकते हैं। रूसी बैंकों को ‘स्विफ्ट’ से अलग करने के कारण भारत को भुगतान करने में दिक्कतें आ सकती हैं।
रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन की सेना अपने अस्तित्व की लड़ाई लड़ रहे यूक्रेन पर चारों दिशाओं में हमले कर रही है। अभी तो बस उम्मीद ही की जा सकती है कि यूक्रेन के मासूम बच्चों की दारुण तस्वीरें देखकर पुतिन पसीजेंगे और जल्द से जल्द हमला रोकेंगे और यह संकट तीसरे विश्व युद्ध का रूप नहीं लेगा।
आपबीती: लाशों और मलबे के बीच से निकल कर आए भारतीय छात्र
चंद्रप्रकाश, एमबीबीएस, छठा वर्ष, खारकीव
जांजगीर-चांपा, छत्तीसगढ़
मैं वहां जिस स्थिति से गुजरा, उसे भूल नहीं सकता। खारकीव में जीवन बेहद डरावना था। हर जगह विस्फोट और गोलाबारी हो रही थी। बमबारी बंद होने पर हम कमरे में जाते, कुछ बनाते-खाते। फिर धमाका होते ही बंकर में आ जाते। बंकर में भीड़ बढ़ने से घुटन होने लगी तो जैसे-तैसे मेट्रो स्टेशन के भीतर गए, वहां सिर्फ खड़े होने की जगह थी। लग रहा था कि भारत-रूस की दोस्ती है तो खारकीव से 26 किलोमीटर दूर उनके बॉर्डर से हमें रास्ता मिल जाएगा, लेकिन वह नहीं हो सका। हम 8-9 भारतीयों ने जान जोखिम में डालकर निकलने का फैसला किया। रास्ते में लाशें और मलबा बिखरे थे। टैक्सी और ट्रेन के जरिए हंगरी बॉर्डर पहुंचे। वहां हमें भारतीय अधिकारी मिले। कॉलेज की ओर से ऑनलाइन क्लास की बात सामने आ रही है, इसलिए लग रहा है पढ़ाई प्रभावित नहीं होगी।
नीलेश जायसवाल, एमबीबीएस, पांचवा वर्ष कीव
तखतपुर, जिला बिलासपुर, छत्तीसगढ़
24 फरवरी की तारीख मेरे लिए बेहद डरावनी साबित हुई। मुझे और मेरे दोस्तों को राजधानी कीव में मेट्रो स्टेशन के भीतर आश्रय लेना पड़ा। उन पलों में मैं सिर्फ ईश्वर को याद कर रहा था। हम चाहते थे कि किसी तरह भारत सरकार हमें वहां से निकाले। हमें वहां खाने-पीने की कोई समस्या नहीं आई। एक आंटी तो मुझे एक महीने के लिए ब्रेड का स्टॉक दे रहीं थी, लेकिन मैंने मना कर दिया था। चार-पांच दिनों के भीतर हम लोगों ने भारतीय मिशन से संपर्क किया और हमें पूरी सहायता मिली। हंगरी तक पहुंचने के बाद मैं देश लौटने में सफल हो पाया। मेरे पिता किसान हैं। उन्होंने काफी रुपये लगाकर मुझे पढ़ाई के लिए भेजा था, ऐसे में भारत सरकार से उम्मीद है कि वह जरूर कोई रास्ता निकालेगी जिससे हमारी पढ़ाई का कोई नुकसान न हो।
संतोष बरेठ, एमबीबीएस, पांचवा वर्ष, कीव
खरसिया, जिला रायगढ़, छत्तीसगढ़
रूस-यूक्रेन के बीच युद्ध की बात सुनकर मैं चौंक गया था, क्योंकि हमने कभी नहीं ऐसा सोचा नहीं था। हालांकि मैंने काफी पहले 28 फरवरी को भारत आने का टिकट बुक करवा लिया था, लेकिन युद्ध शुरू होते ही बंकर में जाना पड़ा। पास में ही शॉपिंग मॉल से जूस और खाने-पीने का सामान मिल जाता था। मुझे व्यक्तिगत तौर पर ज्यादा दिक्कत नहीं हुई, लेकिन अनेक भारतीय छात्र उतने खुशनसीब नहीं थे। बंकर में चार दिन बिताने के बाद ट्रेन के जरिए हम बॉर्डर आ गए। वहां कई भारतीय अधिकारी मिले जिन्होंने हमारी सहायता की, भोजन का प्रबंध किया और हमें हंगरी ले गए। भारत सरकार से गुजारिश है कि वह हमारी पढ़ाई को लेकर कोई रास्ता निकाले। स्थानांतरण का भी विकल्प होता है, उसमें सहायता करे।
अक्षय दुबे ‘साथी’