रिश्तों में नई चुनौती
अमेरिकी राष्ट्रपति बराक ओबामा की यात्रा से ठीक पहले रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन का भारत आना दोनों मुल्कों के बीच पारंपरिक रिश्तों के नवीनीकरण के तौर पर देखा जा रहा है। भारत और रूस के बीच एक दर्जन से अधिक समझौतों पर सहमति बनी। इनमें सबसे महत्वपूर्ण समझौतों में परमाणु करार और दोनों देशों के सहयोग से आने वाले समय में अंतरिक्ष यान का निर्माण करना शामिल है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने दोनों देशों के बीच हुए समझौतों को जहां भारत और रूस की दोस्ती में नया अध्याय बताया वहीं रूस के राष्ट्रपति पुतिन ने इसको विकास की ओर अग्रसर कदम बताया। लेकिन इन सबके बावजूद दोनों दोनों मुल्कों में वह गर्मजोशी नहीं देखी गई जिसकी उम्मीद की जा रही थी। अमेरिका से भारत की बढ़ती नजदीकी यदि रूस को नागवार है तो एक अन्य असंतोष भारत का भी है। यह पाकिस्तान में नागरिक विमान की बिक्री को लेकर है। सूत्रों के मुताबिक पुतिन के तय कार्यक्रम में कई बदलाव किए गए। पहले पुतिन संसद के संयुक्त अधिवेशन को संबोधित करने वाले थे लेकिन ऐसा नहीं हुआ। इसके अलावा कई समझौतों पर भी सहमति नहीं बन पाई। जिन पर सहमति बनी भी उन्हें लेकर भी एक संशय बना हुआ है कि आगे कितना काम हो पाएगा क्योंकि दोनों मुल्कों का अपना अलग एजेंडा है। अमेरिका का रूस से टकराव है जबकि भारत से उसकी नजदीकियां बढ़ रही हैं। भारत में रूस के राजदूत अलेक्जेंडर कडाकिन के मुताबिक भारत एक 'चार्मिंग पावर' है। उसे नए-नए दोस्त मिलेंगे। यह ध्यान रखना भारत का काम है कि नए दोस्त उसे धोखा न दें।
शीत युद्घ का समय था जब भारत का झुकाव पूर्व सोवियत संघ की तरफ ज्यादा था। भारत के पहले प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू के समय भारत की अर्थव्यवस्था की बुनियाद रूसी तकनीकी की मदद से ही रखी गई थी। उस दौर में जितने भी विकास के काम हुए उनमें रूस का बड़ा योगदान रहा है। फिर इंदिरा गांधी अमेरिका-चीन-पाकिस्तान धूरी से संतुलन के लिए सोवियत में सहयोग बढ़ाया। भारत की बांज्लादेश विजय में भारत-सोवियत संधि का बड़ा योगदान था। सोवियत संघ के विघटन के बाद रूस यूरोप में जमीन तलाश रहा था और भारत अपनी अर्थव्यवस्था को मजबूत करने के लिए अमेरिका और मित्र देशों से रिश्ते प्रगाढ़ कर रहा था। यही कारण रहा कि रूस से भारत की दूरी बढ़ती गई। भारत के युवा पेशेवरों को रूस की जगह अमेरिका का बाजार ज्यादा माकूल नजर आने लगा और विदेश नीति के मामले में भी भारत की सरकारों की अमेरिकी नीतियों से सहमति बनने लगी। उधर पश्चिम देशों से टकराव के कारण रूस को कई तरह का आर्थिक नुकसान उठाना पड़ रहा है। ऐसे में रूस की उम्मीद फिर पुराने दोस्त भारत पर टिक गई। विदेश नीति के जानकार नंदन उन्नीकृष्णन के मुताबिक पुतिन अमेरिका और यूरोपिय संघ की ओर से लगाए गए प्रतिबंध से काफी परेशान हैं। ऐसे में उन्हें बड़े समर्थन की जरूरत है। उन्नीकृष्णन के मुताबिक भारत की यात्रा पर आकर पुतिन दुनिया को दिखा देना चाहते थे कि वह अकेले नहीं पड़े हैं और अब भी ब्रिक्स (ब्राजील, रूस, भारत, चीन और दक्षिण अफ्रीका) देशों में उनका बड़ा रुतबा है। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ-भारतीय जनता पार्टी परिवार में माना जाता है कि नरेंद्र मोदी और पुतिन का मिजाज मिलता-जुलता है। दोनों ही प्रबल राष्ट्रवाद के समर्थक हैं। इसलिए दोनों ही एक-दूसरे की तारीफ करते नहीं अघा रहे हैं। पुतिन जहां भारत से पुराने रिश्तों की दुहाई दे रहे हैं वहीं प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने ट्वीट कर कहा, 'भारत और रूस के लोगों के बीच खासे मजबूत संबंध हैं। दोनों देश अच्छे और मुश्किल समय में हमेशा एक दूसरे के साथ खड़े रहे हैं। समय बदल गया है, लेकिन हमारी मित्रता में कोई बदलाव नहीं आया है। अब हम इस संबंध को अगले स्तर पर ले जाना चाहते हैं और यह यात्रा उस दिशा में एक कदम है।Ó जानकारों के मुताबिक दोनों नेताओं की यह कोशिश है कि रिश्तों में नई जान फूंकी जाए। इससे पहले पुतिन दो बार प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से मिल चुके हैं। पहली बार ब्राजील में ब्रिक्स देशों के सम्मेलन में और दूसरी बार ब्रिस्बेन में जी-20 के सम्मेलन में। पुतिन की इन मुलाकातों के बाद ही यह कयास लगाया जाने लगा था कि अब भारत से रिश्ते और मजबूत करने की दिशा में वह महत्वपूर्ण कदम उठाएंगे क्योंकि रूस की अर्थव्यवस्था बुरे दौर में है। अंतरराष्ट्रीय बाजार में कच्चे तेल की कीमतों में जबर्दस्त गिरावट के कारण रूस की स्थिति डांवाडोल है। रूस कच्चे तेल का निर्यात करने वाला बड़ा देश है। इसलिए भारत के साथ जो बड़े समझौते हुए हैं उनमें तेल और गैस शोधन की दिशा में साझेदारी बढ़ाने का फैसला किया गया। विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता सईद अकबरुद्दीन के मुताबिक समझौते के तहत कुडनकुलम परमाणु संयंत्र की तरह ही दूसरी इकाई लगाने के लिए जगह तलाशने पर भी भारत ने सहमति दी है। दोनों देशों के बीच पेट्रोल-गैस, फौजी आदान-प्रदान, परमाणु ऊर्जा और स्वास्थ्य के क्षेत्र में शोध से जुड़े समझौतों पर दस्तखत हुए। सूत्रों के मुताबिक पुतिन जिस उद्देश्य से भारत के दौरे पर आए वह पूरा नहीं हो पाया क्योंकि उनके कार्यक्रमों में जिस तरह से बदलाव किया गया वह भी एक चुनौती ही है। दरअसल पश्चिम से टकराव की वजह से रूस और चीन की बढ़ती करीबी भारतीय नीति निर्माताओं के लिए चिंता का एक बड़ा कारण है।