दर-दर भटकते रोहिंग्या मुसलमानों की कहानी, कहीं क्यों नहीं मिलता ठौर
रोहिंग्या लोग, कोई इन्हें आतंकी कहता है, तो कोई प्रताड़ित। सही मायनों में इनका कोई ठौर ठिकाना नहीं है। इनके पास किसी देश की नागरिकता नहीं है। दरअसल रहते तो ये म्यामांर में हैं, लेकिन वहां उन्हें केवल गैरकानूनी बांग्लादेशी प्रवासी माना जाता है। आज बड़ी तादात में ये भारत, बांग्लादेश, थाईलैंड, मलेशिया जैसे देशों में शरण लेने की तलाश में ठोकरें खा रहे हैं।
कौन है रोहिंग्या?
विकीपीडिया की मानें तो कहा जाता है कि रोहिंग्या मुसलमान इस्लाम को मानने वाले वो लोग हैं जो 1400 ई. के आस-पास बर्मा (आज के म्यांमार) के अराकान प्रांत में आकर बस गए थे। इनमें से बहुत से लोग 1430 में अराकान पर शासन करने वाले बौद्ध राजा नारामीखला (बर्मीज में मिन सा मुन) के राज दरबार में नौकर थे। इस राजा ने मुस्लिम सलाहकारों और दरबारियों को अपनी राजधानी में प्रश्रय दिया था।
लेकिन रखाइन स्टेट में 2012 में सांप्रदायिक हिंसा भड़कने के बाद रोहिंग्या वैश्विक स्तर पर चर्चा में आए। इस हिंसा में बड़ी संख्या में लोगों की जानें गई हैं और एक लाख से ज्यादा लोग विस्थापित हुए। म्यामांर में कई पीढ़ियों से रह रहे रोहिंग्या मुसलमान अब बड़ी संख्या में वहां की जर्जर कैंपो में रह रहे हैं।
यहां तकरीबन 10 लाख रोहिंग्या मुसलमान हैं। इनके बारे में कहा जाता है कि वे ‘अवैध बांग्लादेशी प्रवासी हैं।’ यहां की सरकार ने इन्हें नागरिकता देने से मना कर दिया है। वहीं बांग्लादेश कुछ ही रोहिंग्या लोगों को शरणार्थी के तौर पर मान्यता देता है। बांग्लादेश के चटगांव में बोली जाने वाली भाषा बोलने वाले रोहिंग्या लोग सुन्नी मुसलमान हैं। जबकि बांग्लादेश में घुसने की कोशिश करने वाले बहुत से रोहिंग्या लोगों को वह वापस लौटा देता है। हालांकि लाखों की संख्या में दस्तावेज के बगैर रोहिंग्या बांग्लादेश में रह रहे हैं।
रखाइन प्रांत में हिंसा और ‘रोहिंग्या’ का आतंकी कनेक्शन?
म्यांमार के मौंगडोव सीमा पर 9 पुलिस अधिकारियों के मारे जाने के बाद पिछले महीने रखाइन स्टेट में सुरक्षा बलों ने बड़े पैमाने पर ऑपरेशन शुरू किया। इसे लेकर म्यांमार सरकार का दावा है कि ये हमला रोहिंग्या समुदाय के लोगों द्वारा किया गया। इस घटना के बाद सुरक्षाबलों ने मौंगडोव जिला की सीमा को पूरी तरह से सील कर दिया और एक बड़े ऑपरेशन को अंजाम दिया। 18 सितंबर को ह्यूमन राइट्स वॉच द्वारा जारी एक सैटेलाइट तस्वीर के जरिए बताया गया कि रखाइन प्रांत में 214 गांवों को पूरी तरह से नष्ट कर दिया गया है।
वहीं 19 सितंबर को आंग सान सू की ने कहा कि 25 अगस्त को 30 पुलिस चौकी पर हमले किए गए, परिणामस्वरूप सरकार ने अराकन रोहिंग्या साल्वेशन आर्मी को आतंकवादी समूह घोषित किया।
भारत और रोहिंग्या
भारत में रोहिंग्या मुसलमान 1980 और 1990 से रह रहे हैं, जिन्हें यहां रहते हुए लगभग 20 साल से ज्यादा समय हो चुका है। यहां रह रहे रोहिंग्या मुसलमानों पर तब खतरा मंडराने जब भारत सरकार ने इनके भारत में रहने को खतरनाक करार दिया। 9 अगस्त, 2017 को भारत सरकार ने संसद को बताया कि देश में 14 हजार रोहिंग्या ही दस्तावेज के साथ रह रहे हैं जबकि 40 हजार रोहिंग्या गैर-कानूनी तरीके से यहां रह रहे हैं, जिन्हें बाहर किया जाएगा।
18 सितंबर को सुप्रीम कोर्ट को दिए अपने हलफनामा में भारत सरकार ने कहा है कि देश की सुरक्षा की बात कहते हुए केंद्र ने कहा है, रोहिंग्या मुसलमान आतंकवाद में शामिल हैं। इनके पाकिस्तान और आतंकी संगठन इस्लामिक स्टेट से भी संपर्क है जो की देश के लिए खतरा है। इसलिए ये यहां नहीं रह सकते।
हालांकि विपक्ष समेत कई सामाजिक कार्यकर्ता भारत सरकार के इस कदम को गलत ठहरा रहे हैं।
बर्मा के बिन लादेन अशीन विराथु
समाचार एजेंसी रॉयटर्स के मुताबिक इंडोनेशिया में बर्मा के दूतावास के बाहर रोहिंग्या संकट को लेकर विरोध प्रदर्शन हुए। इस दौरान प्रदर्शनकारियों के हाथ में तख्तियां थीं जिन पर अशीन विराथु की तस्वीर के साथ 'चरमपंथी' लिखा हुआ था।
बहुत लोग मानते हैं कि म्यामांर में जो घटना हो रही है, वह सांप्रदायिक कारणों से हो रही है। इसके पीछे अशीन विराथु का भी नाम जोड़ा जाता रहा है। जुलाई, 2013 को टाइम मैगजीन ने विराथु को कवर पेज पर छापा और इसकी हेडलाइन थी, 'दि फेस ऑफ बुद्धिस्ट टेरर' ।
बीबीसी के मुताबिक वे अक्सर सोशल मीडिया या अन्य माध्यमों के जरिए रोहिंग्या मुसलमानों को निशाना बनाते दिखाई देते हैं। बौद्ध भिक्षु अशीन विराथु से जब पूछा गया कि क्या वे 'बर्मा के बिन लादेन' हैं, उन्होंने कहा कि वे इससे इनकार नहीं करेंगे।
और कब तक भटकेंगे रोहिंग्या?
म्यांमार के द्वारा इन्हें जहां आतंकी करार दिया गया, वहीं रखाइन प्रांत में साम्प्रदायिक ताकतें भी इन्हें वहां नहीं रहने देना चाहती। हालांकि म्यांमार में पिछले महीने शुरू हुई हिंसा के बाद से अब तक लगभग 3,79,000 रोहिंग्या शरणार्थी सीमा पार करके बांग्लादेश में शरण ले चुके हैं। इस बीच बांग्लादेश की प्रधानमंत्री शेख हसीना ने इन्हें मदद का वादा भी किया। शेख हसीना ने यह भी कहा कि रोहिंग्या मुसलमानों को वापस लेने के लिए वे म्यांमार पर दबाव डालेंगी। जबकि भारत में गैर कानूनी तरीके से रह रहे रोहिंग्या मुसलमानों को सरकार द्वारा बाहर किए जाने के बाद इनके सामने आसरा ढूंढने की चुनौती होगी।
हालांकि सू की ने कहा है कि जो लोग म्यांमार में वापस आना चाहते हैं, उनके लिए वे रिफ्यूजी वेरिफिकेशन की प्रक्रिया शुरू करेंगी। इस दौरान मानवाधिकार समूहों ने अपील जारी की है कि म्यांमार रोहिंग्या लोगों को नागरिकता दे और उनका दमन रोका जाए।