अली खामनेईः मौलवी से रहबर-ए-मोअज्जम
लड़ाई थमने के कई दिन बाद 26 जून को ईरान के सर्वोच्च नेता या रहबर-ए-मोअज्जम अयातुल्लाह अली खामनेई आठ-नौ मिनट के वीडियो में सार्वजनिक हुए और जीत का ऐलान किया तो तेहरान के इंकलाब चौक पर नारों की गूंज आसमान चूमने लगी। उन्होंने कहा, ‘‘इज्राएल के सफाए का डर लगा तो अमेरिका कूद आया। हमने अल उदैद में उसके अड्डे पर मंहतोड़ जवाब दिया। ईरानी कौम कभी पीछे नहीं हटती।’’ लगभग यही बात उन्होंने 13 जून के इज्राएली हमले के साथ लड़ाई छिड़ने के बाद पहली बार 18 जून, 2025 को देश के नाम टेलीविजन संबोधन में कही थी कि ईरान “सरेंडर नहीं करेगा।” उन्होंने कहा, “ईरान, उसकी कौम और तवारीख को जानने वाले समझदार लोग कभी भी हमारी कौम से धमकियों की भाषा में बात नहीं करते क्योंकि ईरानी कौम कदम पीछे नहीं हटाती।”
वे अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप की “बिना शर्त सरेंडर करो” वाली टिप्पणी की ओर इशारा कर रहे थे। खामनेई बोले, “अमेरिकियों को मालूम होना चाहिए कि किसी भी अमेरिकी फौजी दखलंदाजी के बाद उसे ऐसा नुकसान होगा, जिसकी भरपाई नहीं हो पाएगी। अमेरिका का इस मामले [जंग] में कूदना सौ फीसदी उसके लिए ही नुकसानदेह है। उसे जो नुकसान होगा, वह ईरान को होने वाले किसी भी नुकसान से कहीं ज्यादा होगा।”
हालांकि 1989 से सत्ता में और देश के सर्वोच्च हुक्मरान खामनेई ने ऐलान किया कि ईरान इज्राएल पर कोई नरमी नहीं दिखाएगा। इज्राएल और ईरान के बीच यह जंग इज्राएल के गजा पर हमले का ही विस्तार था, जिसमें 50,000 से अधिक फलिस्तीनी जान गंवा चुके हैं, जिनमें 60 फीसदी से ज्यादा बुजुर्ग, महिलाएं और बच्चे हैं। इज्राएल ने 7 अक्टूबर, 2023 को हमास के इज्राएल पर हमले के बाद आक्रमण शुरू किया था, जिसमें कथित तौर पर 1,200 लोग मारे गए थे।
वे दिनः तेहरान में 1992 में नेल्सन मंडेला (बाएं) के साथ अली खामनेई
खामनेई ने अक्टूबर 2024 के पहले हफ्ते लगभग पांच वर्षों में बाद तेहरान में जुम्मे की नमाज की तहरीर में मुस्लिम बिरादरी से सांप्रदायिक बंटवारे भूलकर जुल्मी इज्राएल से लड़ने के लिए एकजुट होने की अपील की थी। मौका हिज्बुल्लाह प्रमुख हसन नसरुल्लाह के मौत पर श्रद्धांजलि का था। लेबनान में 27 सितंबर, 2024 को इज्राएली हवाई हमले में नसरुल्लाह की मौत हो गई थी, जो इज्राएल के साथ लड़ रहे ईरान समर्थित उग्रवादी समूह के लिए बड़ा झटका था।
हाल का टकराव इज्राएल के 13 जून को ईरान पर हमले से शुरू हुआ। इज्राएल का मकसद ईरान के एटमी कार्यक्रम को नुकसान पहुंचाना था। बाद में इजराल और अमेरिका दोनों ईरान में सत्ता परिवर्तन और खामनेई के खत्मे की बातें करने लगें। लेकिन सवाल यह है कि क्या तख्तापलट संभव था। आइए देखें ईरान के शिखर पर बैठे नेता का उभार और सियासत किन मुकाम से होकर गुजरी है।
खामनेई का निजाम
1979 की क्रांति के बाद से ईरान इस्लामी गणराज्य है। उसके सत्ता के तंत्र में मसूद पेजेशकियन 28 जुलाई, 2024 से राष्ट्रपति हैं, लेकिन मजहबी सर्वोच्च नेता ही सबसे शक्तिशाली हैं, जो राष्ट्रपति, संसद और न्यायपालिका से ऊपर हैं। क्रांति के नायक अयातुल्ला खोमैनी के समय में बनाए गए राज्य-तंत्र के मुताबिक, खामनेई को विलायत-ए-फ़कीह, यानी न्याय का संरक्षक कहा जाता है, जो उन्हें सबसे ऊपरी पायदान पर बैठाता है। वे सशस्त्र बलों के शिखर कमांडर हैं और न्यायपालिका में नियुक्तियां करते हैं और प्रमुख सुरक्षा प्रतिष्ठानों के भी प्रमुख हैं। वे निर्वाचित सरकारों को बर्खास्त कर सकते हैं।
पुणे के सिम्बायोसिस स्कूल ऑफ इंटरनेशनल स्टडीज में सहायक प्रोफेसर डॉ. अल्विटे निंगथौजम कहते हैं, "ईरान के मजहबी और सर्वोच्च नेता के नाते पश्चिम एशिया में वे बेहद अहम शख्सियत हैं। वे इस पदवी से ईरानियों और दुनिया भर के शिया मुसलमानों के सबसे बड़े रहनुमा हैं।" दुनिया भर के शिया इस्लामी दुनिया का मार्गदर्शन के लिए उन्हें मजहबी और सियासी रहनुमा मानते हैं। शिया समुदाय में उनके फरमानों की काफी अहमियत है।
शुरुआती जीवन और सियासत
ईरान के मशहद में एक मौलवी के घर अली खामनेई का जन्म 1939 में हुआ था। कई स्रोतों से प्राप्त जानकारी के मुताबिक, परिवार की माली स्थिति अच्छी नहीं थी। सो, गरीबी में ही उनका पालन-पोषण हुआ और पढ़ाई-लिखाई एक मदरसे में।
अली खामनेई ने 18 साल की उम्र में शिया न्यायशास्त्र का अध्ययन किया। वे अपने वक्तृत्व कौशल के लिए चर्चित हुए और कविता तथा साहित्य में अपनी गहरी रुचि के लिए भी जाने जाने लगे। वे विक्टर ह्यूगो की कृति लेस मिजरेबल्स को 'साहित्य के इतिहास में सर्वश्रेष्ठ उपन्यास' बताते हैं। वे जवाहरलाल नेहरू के ग्लिंप्सेस ऑफ वर्ल्ड हिस्ट्री और डिस्कवरी ऑफ इंडिया जैसी किताबों के भी मुरीद बताए जाते हैं। वे टॉलस्टॉय और महात्मा गांधी के भी प्रशंसक हैं और अक्सर उन्हें उद्घृत करते हैं।
खामनेई की पत्नी मसाद के एक मजहबी परिवार की बेटी मंसूरेह खोजस्ते बाघेरजादेह हैं जिनसे उनकी मुलाकात 1964 में हुई थी। उनके चार बेटे मुस्तफा, मोजतबा, मसूद, मेयसाम और 2 बेटियां बोशरा और होदा हैं। पहले मुस्तफा को उनका उत्तराधिकारी घोषित किया गया था। लेकिन, इज्राएल-अमेरिका से हाल की जंग के दौरान खामनेई ने तीन वरिष्ठ मौलवियों को अपना उत्तराधिकारी नामजद किया है, जिनमें बेटे का नाम नहीं है। इसलिए नए हालात के बाद रणनीतियां बदली हैं।
इस्लामी इंकलाब
खामनेई का सियासत में उभार 1960 और 1970 के दशक में तब निर्वासित नेता अयातुल्ला खुमैनी के समर्थक के रूप में हुआ। वे ईरान के शाह मोहम्मद रजा पहलवी की अमेरिका समर्थित शाही निजाम के खिलाफ प्रदर्शनों की अगुआई करते थे, जिस वजह से उन्हें कई बार जेल जाना पड़ा। 1979 की क्रांति में शाह देश छोड़कर भागने पर मजबूर हुए और ईरान 'पश्चिमी साम्राज्यवाद’’ का विरोधी इस्लामी गणराज्य बन गया। खामनेई इस्लामिक रिवोल्यूशनरी काउंसिल के सदस्य और रक्षा उप-मंत्री बनाए गए। उन्हें तेहरान में जुम्मे की नमाज के इमाम की जिम्मेदारी दी गई, जो किसी भी मौलवी के लिए सबसे बड़ा सम्मान माना जाता है।
1982 में राष्ट्रपति मोहम्मद अली राजई की तेहरान में बम हमले में हत्या के बाद खामनेई राष्ट्रपति चुने गए। चुनावों से ठीक पहले खामनेई पर दो बार हत्या की कोशिश में हमले हुए, जिससे उनके दाहिने हाथ को लकवा मार गया। खामनेई ने 95 फीसदी वोट के साथ शानदार जीत हासिल की थी।
अपने पूर्ववर्तियों की तरह वे पश्चिम जगत को 'बाजारवादी और ‘इस्लामोफोबिया से ग्रस्त' मानते हैं। एक बार वे यह भी कह चुके हैं कि "पश्चिम खूबसूरत और बदसूरत का मिश्रण है। लोगों को उसकी अच्छाई को कबूल करना चाहिए और बुराई को छोड़ देना चाहिए।"
रहबर का उभार
1989 में खोमैनी की मृत्यु के बाद खामनेई आला रहनुमा बने। 88 मौलवियों की परिषद ने उन्हें रहबर-ए-मोअज्जम या सर्वोच्च नेता चुना। खामनेई ने पश्चिम और यहां तक कि घरेलू मामलों में भी खोमैनी की नीति ही जारी रखी। खामनेई ने 2040 तक फलिस्तीन से "इज्राएली कब्जे के खत्मे" की कसम खाई थी। उनकी अगुआई में ईरान ने सीरिया में असद की बाथिस्ट पार्टी के साथ साझेदारी में इज्राएल के खिलाफ "प्रतिरोध की धुरी" का निर्माण किया, जिसमें हिजबुल्लाह, हमास और हूती (या अंसार अल्लाह) जैसे पश्चिम एशियाई अर्धसैनिक संगठन शामिल हुए। हूती 1990 के दशक में यमन में उभरा एक जायदी शिया संगठन है। ईरान को उम्मीद थी कि यह "धुरी" अपने दबदबे को भूमध्य सागर तक बढ़ा पाएगी।
लेकिन पिछले वक्त असद के पतन से ईरान की ‘धुरी’ बिखरने लगी, क्योंकि सीरिया के रास्ते ही लेबनान में हिजबुल्लाह को हथियार और दूसरी सामग्रियां पहुंचाई जा सकती थीं। इसका असर यह हुआ कि इज्राएली हमले में हिजबुल्लाह के नेता मारे गए और संगठन बिखर गया। इराक और यमन के मिलिशिया इज्राएल के खिलाफ हमले में रणनीतिक रूप से उतने अहम नहीं हैं, हूती इज्राएल और पश्चिम के मुकाबले सऊदी अरब के लिए अधिक खतरा पैदा करते हैं। लेकिन अब रणनीतियां बदल सकती हैं।
घरेलू समस्याएं
विदेश मोर्चे पर इन नाकामियों के साथ खामनेई की सत्ता के प्रति पेट्रोल की कीमतों में बढ़ोतरी, धीमी आर्थिक प्रगति और राजनैतिक बंदियों की बढ़ती संख्या के खिलाफ लोगों की नाराजगी बढ़ रही था। लोगों का तेजी से मोहभंग हो रहा था, सड़कों पर प्रदर्शन हो रहे थे। तथाकथित इस्लामिक बंदिशों के खिलाफ आवाज बुलंद हो रही थी। हिजाब कानून का विरोध तो भयंकर था। तमाम विरोध प्रदर्शनों को सख्ती से कूचलने से खामनेई की सरकार के खिलाफ नाराजगी और बढ़ रही थी।
ईरान में 1989 से शासन कर रहे 85 वर्षीय "सर्वोच्च नेता" के लिए घरेलू मोर्चे पर स्थितियां कभी भी इतनी खराब नहीं थीं। यहां तक कि उनके समर्थकों के बीच भी असंतोष चरम पर था। राष्ट्रपति पेजेशकियन पर भारी दबाव था। सो, उन्होंने और सख्ती दिखाई। 2024 में ही 798 लोगों को फांसी दी गई।
हिजाब के खिलाफ महिलाओं का प्रदर्शन बढ़ रहा था। आर्थिक मोर्चे पर ईरानी रियाल दुनिया की सबसे कम मूल्य वाली मुद्राओं में एक है। आर्थिक प्रतिबंध, बेरोजगारी, गरीबी और कुपोषण बहुत बड़े मुद्दे की तरह उभरे हैं। 2022 और 2023 में ईरान में जमीनी स्तर पर विद्रोह और लोकतंत्र समर्थक विरोध प्रदर्शनों के दौरान सत्ता संरचना में बदलाव के सवाल उठे और एक हद तक सरकार में उदारपंथी नेताओं को शामिल करके कुछ संकेत भी दिए गए, लेकिन बदलाव में समय लगेगा। बीमार सर्वोच्च नेता और कमजोर राष्ट्रपति की सत्ता पर खतरा मंडराने लगा था।
जंग से ताकत
हाल की जंग से एक मायने में खामनेई और उनकी इस्लामी सरकार को नई ताकत मिली है। जंगबंदी के बाद तेहरान के इंकलाब चौक पर जीत के जश्न के प्रर्दशनों की झड़ी लग गई है। ईरान के बाकी शहरों में जीत और इज्राएल-अमेरिका विरोधी नारों के साथ जुलूस-जलसे निकल रहे हैं। लगता है, लोगों ने साझा दुश्मन के लिए घरेलू मुद्दों को भुला दिया है।
दरअसल इज्राएल-अमेरिका के खामनेई की हत्या और सरकार के तख्तापलट को 'जंग का अंतिम लक्ष्य' के ऐलान से देश में खामनेई की सत्ता शायद मजबूत ही हुई है। डॉ. निंगथौजम कहते हैं, ''मेरा मानना है कि अगर इज्राएल या अमेरिका को उन्हें हटाना होता तो वे इज्राएली खुफिया एजेंसी मोसाद के जरिए कर चुके होते। लेकिन शायद शिया समुदाय में उसके नतीजों का डर है। इसलिए वे कुलमिलाकर खामनेई को मजबूत ही कर रहे हैं।''
इस तरह खामनेई 'ज़ायोनीवाद' या यहूदीवादी आंदोलन खिलाफ प्रतिरोध का चेहरा बन गए हैं, जो मदद में आई महाशक्ति के आगे नहीं झुके। ईरान के लिए, उसकी धरती पर इज्राएल के ईरान पर हमलों ने पूरे पश्चिम एशिया में 'ज़ायोनीवाद और उपनिवेशवाद' के खिलाफ नई लहर पैदा कर दी है और खामनेई उसके रहबर की तरह उभरे हैं।