WTO वार्ता संपन्न, दोहा मुद्दों पर भारत 'निराश'
भारत की वाणिज्य मंत्री निर्मला सीतारमण ने कहा कि भारत ने वार्ता की मेज पर अपना रुख बहुत स्पष्ट तरीके से रखा और विकासशील देशों के हितों की रक्षा के लिए 14 साल पुरानी दोहा दौर की वार्ता के मुद्दे पर कुछ भी निश्चित कहे जाने को लेकर एकमत होने में 'नाकाम' रहने के खिलाफ पुरजोर विरोध किया। बहरहाल, वैश्विक व्यापार संस्था के सदस्य विकासशील देशों के किसानों के संरक्षण के लिए विशेष सुरक्षा तंत्र का रास्ता अपनाने का अधिकार विकासशील देशों को देने की प्रतिबद्धता पर सहमत हो गए। भारत लंबे समय से यह मांग कर रहा था। भारत और अन्य विकासशील देशों की ओर से की जा रही लॉबीइंग के कारण डब्ल्यूटीओ में सार्वजनिक अंशधारिता (पब्लिक स्टॉकहोल्डिंग) के मुद्दे पर पहले लिए गए फैसलों की फिर से पुष्टि भी हुई।
वाणिज्य मंत्री निर्मला सीतारमण ने बताया, 'हमने सुनिश्चित किया कि सार्वजनिक अंशधारिता पर बाली और जनरल काउंसिल के नवंबर 2014 के फैसले, जिससे हमारे किसानों को संरक्षण प्राप्त होता है, की फिर से पुष्टि की जाए।' उन्होंने कहा, 'यहां लिए गए फैसले वह आधार तैयार करेंगे, जिससे इस पर काम शुरू होगा ताकि स्थायी समाधान तक पहुंचा जा सके।' केंद्रीय मंत्री ने कहा, 'हम ऐसे हालात में जो कर सकते थे, उस हिसाब से हमने अपना सर्वश्रेष्ठ काम किया है। डब्ल्यूटीओ की ओर से हमसे जो भी प्रतिबद्धताएं जाहिर की गई हैं उसे पूरे आश्वासन के साथ आगे बढ़ाया गया है और हमने कोई आधार नहीं गंवाया है।'
बहरहाल, सीतारमण ने कहा, 'भारत निराश है कि भारत, चीन, जी-33, अफ्रीकी संघ जैसे बड़े समूह, जो जोर दे रहे थे कि दोहा दौर की फिर से पुष्टि की जाए, के होने के बावजूद पुनर्पष्टि बंटी रही। इस मोर्चे पर हम पूरी तरह निराश हैं।' मंत्री ने कहा, 'यह इन तीन मुद्दों पर भारत के हितों की रक्षा की लड़ाई थी जिसे मेरे हिसाब से हमने पा लिया है।'
उन्होंने कहा कि वार्ता पूरी होने के बाद आज बांटे गए मंत्री-स्तरीय घोषणा-पत्र 'दोहा दौर की वार्ता के निष्कषरें की फिर से पुष्टि करने के मुद्दे पर डब्ल्यूटीओ के सदस्य देशों के बीच के विभाजन को दिखाते हैं।' उन्होंने कहा कि भारत अन्य विकासशील देशों के साथ चाह रहा था कि दोहा दौर की फिर से पुष्टि की जाए। इसमें जी-33, कम विकसित देश (एलडीसी), अफ्रीकी समूह भी शामिल थे। सीतारमण ने कहा, 'बहुमत जहां फिर से पुष्टि के पक्ष में था, वहीं कुछ सदस्यों ने इसका विरोध भी किया। यह आम राय के आधार पर फैसले लेने के डब्ल्यूटीओ के चलन से बहुत अलग था।'