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30 August 2016

बांग्लादेश के सुप्रीम कोर्ट ने जमात नेता की मौत की सजा बरकरार रखी

गूगल

प्रधान न्यायाधीश सुरेंद्र कुमार सिन्हा की अध्यक्षता वाली पांच सदस्यीय पीठ ने अदालत कक्ष में एक शब्द में ही फैसला सुना दिया। शीर्ष न्यायाधीश ने 64 वर्षीय अली की अपील के बारे में कहा, खारिज। प्रधान न्यायाधीश सुरेंद्र कुमार मुस्लिम बहुल देश में इस पद पर आसीन होने वाले पहले हिंदू हैं। अली को जमात का प्रमुख वित्त पोषक माना जाता है। जमात 1971 में पाकिस्तान से बांग्लादेश की आजादी के खिलाफ था।

फैसले के बाद अपनी संक्षिप्त टिप्पणी में अटॉर्नी जनरल महबूब ए आलम ने संवाददाताओं को बताया कि अली राष्ट्रपति से क्षमा याचना कर सकता है। अब यही एक अंतिम विकल्प है, जो उसे मौत की सजा से बचा सकता है। आलम ने कहा, यदि वह क्षमा याचना नहीं करता है या अगर उसकी दया याचिका खारिज हो जाती है तो उसे किसी भी समय मौत की सजा के लिए भेजा जा सकता है। अली के वकील टिप्पणी के लिए तत्काल उपलब्ध नहीं हो सके।

इस फैसले ने अली को मिली मौत की सजा पर तामील का रास्ता खोल दिया है, बशर्ते उसे राष्ट्रपति की ओर से माफी न मिले। अली मीडिया से भी जुड़ा रहा है। शीर्ष अदालत की ओर से पूरा फैसला प्रकाशित किए जाने और अंतरराष्ट्रीय अपराध न्यायाधिकरण की ओर से उसके खिलाफ छह जून को मौत का वारंट जारी किए जाने के बाद अली ने समीक्षा याचिका दायर की थी। अली के कई व्यवसाय और मीडिया संस्थान हैं। इनमें इस समय निलंबित एक टीवी चैनल भी शामिल है। वह जमात-ए-इस्लामी की केंद्रीय कार्यकारी परिषद का सदस्य है।

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उसे लोगों को यातना देने वाला अल बदर नाम का मिलिशिया संगठन चलाने का दोषी करार दिया गया था। इस संगठन ने अनेक लोगों को मौत के घाट उतार दिया था। ऐसा कहा जाता है कि पाकिस्तानी सेना और उसके स्थानीय सहयोगियों ने इस युद्ध में 30 लाख लोगों की हत्या कर दी थी। अभियोजन पक्ष के वकीलों ने पूर्व में कहा था कि अली ने 1971 के मुक्ति संग्राम के दौरान मानवता के खिलाफ किए गए अपराधों के आरोपों की सुनवाई को प्रभावित करने का हरसंभव प्रयास किया। उन्होंने कहा कि अली ने अमेरिकी लॉबी कंपनी कैसिडी एंड असोसिएट्स के साथ 2.5 करोड़ डॉलर का सौदा किया था ताकि वह उसके हित की रक्षा के लिए अमेरिका और बांग्लादेश की सरकारों से संपर्क करे।

अली की मौत की सजा के खिलाफ दायर अपील की सुनवाई के दौरान सरकार की ओर से अदालत के समक्ष एक रसीद पेश की गई, जो अमेरिकी लॉबी कंपनी ने जारी की थी। इसे पेशेवर सेवा के लिए जारी रसीद बताया गया था। साक्ष्य के अनुसार, मार्च 2014 में, इसी लॉबी कंपनी के साथ अली की ओर से 50 हजार डॉलर का एक और सौदा किया गया। यह सौदा अंतरराष्ट्रीय अपराध न्यायाधिकरण-बांग्लादेश के कदमों की निंदा करने के लिए था। इस सौदे में कंपनी से कहा गया था कि वह सदन (सीनेट) में अंतरराष्ट्रीय अपराध न्यायाधिकरण-बांग्लादेश का विरोध करने वाली विधायी भाषा लाने के लिए हरसंभव काम करे। छह साल पहले युद्ध अपराध के मामले की सुनवाई शुरू होने के बाद से अब तक जमात के तीन नेताओं समेत चार लोगों और बीएनपी के एक वरिष्ठ नेता को फांसी पर चढ़ाया जा चुका है। वहीं, दो लोगों की जेल में मौत हो चुकी है।

भाषा

 

 

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TAGS: Bangladesh, Supreme Court, upholds, death sentence बांग्लादेश, सुप्रीम कोर्ट, मीर कासिम अली, मौत की सजा
OUTLOOK 30 August, 2016
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