सरकारी जांच में खुलासा, श्रीलंकाई सैनिकों ने युद्ध अपराध किया
पूर्व राष्ट्रपति महिंदा राजपक्षे द्वारा गठित आयोग ने अपनी 178 पन्नों की रिपोर्ट में कहा कि ऐसे विश्वसनीय आरोप हैं जिनके जरूरी मानदंड पर साबित होने से पता चल सकता है कि सशस्त्र बलों के कुछ सदस्यों ने युद्ध के अंतिम चरण में ऐसे कृत्य किए जो युद्ध अपराधों के दायरे में आते हैं। सेवानिवृत्त न्यायाधीश मैक्सवेल परानागमा ने भी युद्ध अपराधों के आरोपों की एक स्वतंत्र न्यायिक जांच की मांग की। अगस्त 2015 की तारीख वाली रिपोर्ट कल संसद में रखी गई।
आयोग ने श्रीलंकाई विधि तंत्र के भीतर एक अलग युद्ध अपराध प्रभाग स्थापित करने का प्रस्ताव रखा है। परानागमा ने कहा कि ऐसे सबूत हैं जिनसे पता चलता है कि चैनल फोर की डाक्यूमेंट्री ‘नो फायर जोन’ में दिखाए गए श्रीलंकाई सैनिकों द्वारा तमिल कैदियों को मारने के फुटेज वास्तविक हैं। परानागमा आयोग ने कहा कि उनका मानना है कि चैनल 4 ने नाटकीयता के साथ चीजों को पेश किया और उसमें थोड़ी अनावश्यक भाषा भी थी लेकिन तब भी उसमें ऐसी काफी चीजें हैं जो एक न्यायाधीश के नेतृत्व में जांच का औचित्य साबित करने के लिए काफी हैं।
श्रीलंकाई सेना ने तब डॉक्यूमेंटी को मनगढ़ंत बताकर खारिज कर दिया था। पिछले महीने आई यूएनएचआरसी की रिपोर्ट का समर्थन करते हुए आयोग ने युद्ध अपराधों की किसी भी जांच में विश्वसनीयता सुनिश्चित करने के लिए अंतरराष्ट्रीय न्यायाधीशों की भूमिका की सिफारिश की। रिपोर्ट में श्रीलंका की न्यायिक एवं आपराधिक प्रक्रियाओं में अविश्वास जताते हुए आरोपों की जांच के लिए एक हाइब्रिड कोर्ट की सिफारिश की गई थी।