Advertisement
16 October 2015

अजान हो तो रोक दो मंदिर की घंटियां

बांग्लादेश की राजधानी ढाका बड़े स्तर के गांव से ज्याद कुछ नहीं लगती। जहां तक नजर जाए, ट्रैफिक में फंसे लोग और बेतरतीब रिक्शे की कतारें। ढाका की यही पहचान है। यहां खुलना के मुकाबले हिंदूओं की संख्या और कम है परेशानियां बहुत ज्यादा। सन 1971 में जब बांग्लादेश अस्तित्व में आया था तब बंगबंधु शेख मुजीबुरर्हमान ने इस देश की नींव धर्मनिरपेक्ष राष्ट्र और संविधान के साथ की थी। लेकिन उनकी हत्या और तख्ता पलट के बाद इस्लामी कट्टरपंथ का प्रभाव बढ़ता गया जिसके कारण बांग्लादेश पर भी इस्लामी रंग चढ़ गया। अब यहां बचे-खुचे हिंदू परिवार मानते हैं कि यहां रहना दिन ब दिन कठिन होता जा रहा है।

बांग्लादेश राष्ट्रीय हिंदू महाजोट के सेक्रेटरी जनरल गोविंद चंद्र प्रामाणिक कहते हैं, ‘बांग्लादेश में सहिष्णुता खत्म होती जा रही है। अल्पसंख्यकों के लिए यहां कोई कानून नहीं है। सरकारें बदलती हैं और समस्या वहीं रह जाती है। हमारे परिवारों के बच्चे पढ़ने के बाद भी अच्छे नंबर नहीं ला पाते। उन्हें सरकारी नौकरियां नहीं मिलतीं। यदि मिलती भी है तो पदोन्नति नहीं दी जाती। साफ तौर पर दिखाई देता है कि हमारे साथ भेदभाव हो रहा है पर हम कुछ नहीं कर पाते।’ 

ढाका में हिंदू महाजोट के ही बिजय कृष्ण भट्टाचार्य कहते हैं, ‘बांग्लादेश में अल्पसंख्यक का एक-दूसरे से परिचय नहीं है। वे एक साथ मिल कर किसी मसले पर बात नहीं करते जिसकी बहुत जरूरत है। दरअसल यहां अभी तक ऐसा कोई मंच नहीं था जिससे सभी को जोड़ा जा सके। अभी तक हमारा महाजोट भी ऐसा कुछ नहीं कर पाया था जिससे अल्पसंख्यकों को कोई फायदा हो सके। महाजोट के अध्यक्ष प्रफुल्ल कुमार राय कहते हैं, ‘संगठित रहने में शक्ति है यह अब हर हिंदू को समझना होगा। वरना बांग्लादेश में एक भी हिंदू परिवार नहीं रह पाएगा।’

Advertisement

बांग्लादेश में अलिखित नियम है, अजान की आवाज आने पर मंदिर में बज रही घंटियां थम जाएंगी। घरों में बहुत सुबह शंख या घंटी नहीं बजाई जा सकती। लेकिन ढाका में अब युवा संगठित हो रहे हैं। कुछ युवाओं ने मिल कर हिंदू जनजागरण समिति बनाई है और उनका मानना है कि सरकार पर जब तक दबाव नहीं बनाया जाएगा कोई हल नहीं निकलेगा। मंच के अध्यक्ष दीनबंधु रॉय कहते हैं, ‘हमने आठ मुख्य बिंदू तैयार किए हैं। हमारी सरकार से इन्हीं बिंदुओं पर काम करने की गुजारिश है। हम सरकार से अल्पसंख्यकों के लिए आरक्षण चाहते हैं। इस आरक्षण में 350 विधायिका सीटों में से 30 सीटें अल्पसंख्यकों के लिए आरक्षित की जाएं। सरकारी नौकरी में 20 प्रतिशत कोटा अल्पसंख्यकों के लिए हो। दुर्गा पूजा पर तीन दिन का सरकारी अवकाश, एनिमी प्रॉपर्टी यानि जो व्यक्ति देश छोड़ कर कहीं और बस जाए तो कोई बात नहीं लेकिन यदि वह व्यक्ति भारत जाना चाहे तो उसकी संपत्ति राजसात कर ली जाती है। हालांकि भारत में भी यही नियम है। मंदिर और मठों की रक्षा के लिए कानून बने और अल्पसंख्यक आयोग या मंत्रालय का गठन किया जाए।

मंच से जुड़े सुशील मंडल कहते हैं, ‘हम मुस्लिम विरोधी नहीं हैं। बस हमें अपने अधिकार चाहिए। सरकार हमारे लिए इतना तो कर ही सकती है कि हम इज्जत से इस देश में रह सकें।’ बांग्लादेश के युवा अब फेसबुक और अन्य सोशल माध्यमों से एक-दूसरे से जुड़ रहे हैं। सोशल मीडिया माध्यम में ब्लॉग ने ही अपनी विशिष्ट जगह बना ली थी। इन ब्लॉगरों की हत्याओं से भी इन युवाओं के हौसले पस्त नहीं हुए हैं।

इन घटनाक्रम के बीच भी कई लोग हैं जो दृढ़ता से खड़े हैं। सन 2008 में जब महाजोट बना था तब से वह लगातार लोगों का डेटाबेस बना रहा है। महाजोट के एक्जीक्यूटिव प्रेसिडेंट देबाशीष साहा कहते हैं, ‘भारत हमारी कोई मदद नहीं करता। दरअसल हम पोलिटिकल विक्टिम हैं। हम भारत को अपना गार्जियन समझते हैं और उसने हमें भुला दिया है। यदि पाकिस्तान भारत से अलग हुआ तो मुसलमानों को उनका देश मिला। बांग्लादेश पाकिस्तान से अलग हुआ तो उन्हें एक स्वतंत्र सत्ता मिली। मगर हिंदुओं को क्या मिला।’ प्रदीप कुमार देव और सुमन सरकार मानते हैं कि यह राह लंबी है मगर उन्होंने 60 जिलों का एक डेटाबेस तैयार कर लिया है। वह एक बड़ा कार्यक्रम करने की योजना बना रहे हैं, जिसमें ज्यादा से ज्यादा हिंदू परिवार को इकट्ठा किया जा सके।

हाल ही में शेख हसीना ने युद्ध अपराध ट्रिब्यूलन का गठन किया है जिसमें उन सभी लोगों को दोषी करार दे कर फांसी की सजा सुनाई गई जिन्होंने जिन्होंने सन 1971 के युद्ध में बंगालियों पर अत्याचार किए थे। फांसी के खिलाफ जमात ने जब सिर उठाया तो ढाका विश्वविद्यालय के धर्मनिरपेक्ष छात्रों ने आंदोलन किया। लेकिन इन सब के बीच इसका खामियाजा हिंदुओं को भुगतना पड़ रहा है। अंतरराष्ट्रीय क्राइम ट्रिब्यूनल प्रॉसीक्यूटर और बांग्लादेश हिंदू बौद्ध क्रिश्चियन एकता परिषद के जनरल सेक्रेटरी राणा दासगुप्ता के विचार थोड़े अलग हैं। वह कहते हैं, ‘एक धर्म विशेष के लोग चाहते हैं कि हिंदू उस देश को छोड़ कर चले जाएं जहां वे पैदा हुए पले-बढ़े। कुछ लोगों को मार कर उन्होंने दहशत भी फैलाई है। बांग्लादेश में हिंदू लगातर डर और आतंक से साए में हैं। हम भारत की ओर देखते हैं। संभव है सरकार बदलने पर कुछ हालात बदलें।’ 

अब आप हिंदी आउटलुक अपने मोबाइल पर भी पढ़ सकते हैं। डाउनलोड करें आउटलुक हिंदी एप गूगल प्ले स्टोर या एपल स्टोरसे
TAGS: bangladesh, dhaka, rana dasgupta, bangladesh national hindu mahajot, govind pramanik, बांग्लादेश राष्ट्रीय हिंदू महाजोट, बांग्लादेश, ढाका, राणा दासगुप्ता, गोविंद प्रमाणिक
OUTLOOK 16 October, 2015
Advertisement