ओबामा की प्रेरणा से भारत-पाक बातचीत?
पाकिस्तान पहले ही इस बात की आशा जता चुका है कि भारत वार्ता की प्रक्रिया दोबारा शुरू करेगा। हालांकि अब यह सवाल उठ रहे हैं कि आखिर अचानक भारत ने अपने विदेश सचिव को पाकिस्तान भेजने का फैसला लिया क्यों? दोनों देशों के बीच स्थिति में ऐसा क्या बदलाव आ गया है कि भारत ने यह कदम उठाया है?
भारतीय कूटनीति जगत से गहरे जुड़े सूत्र बताते हैं कि इसके पीछे अमेरिकी राष्ट्रपति बराक ओबामा की प्रेरणा होने से इनकार नहीं किया जा सकता। इन सूत्रों का कहना है कि ओबामा को इस बात की चिंता है कि अगले वर्ष जब अफगानिस्तान से अमेरिकी सैनिकों की वापसी हो जाएगी तब भारत-पाकिस्तान के बीच तनाव के बरकरार रहने का खराब असर वहां की स्थिति पर पड़ सकता है क्योंकि दोनों ही देशों के हित अफगानिस्तान से जुड़े हुए हैं। ऐसी स्थिति से बचने के लिए ही ओबामा ने दोनों देशों को बातचीत की प्रक्रिया फिर से शुरू करने की सलाह दी। सूत्र बताते हैँ कि ओबामा की सलाह पर ही पाकिस्तान ने जकीउर रहमान लखवी को अदालत से छोड़ दिए जाने के बावजूद फिर से गिरफ्तार कर लिया। दूसरी ओर ओबामा ने भारत को सलाह दी कि वह पाकिस्तान से बातचीत की मेज पर फिर से लौटने का फैसला करे।
हालांकि मोदी सरकार के लिए सीधे ऐसा करना मुश्किल था क्योंकि इससे पहले जब विदेश सचिव स्तर की बातचीत होनी थी उससे ठीक पहले हुर्रियत नेताओं से पाकिस्तानी अधिकारियों के मिलने और सीमा पर गोलीबारी के मुद्दे को लेकर मोदी सरकार ने बातचीत रोकने का फैसला किया था। उस स्थिति में कोई खास बदलाव नहीं आया है। ऐसे में अगर सरकार बातचीत अचानक शुरू करने का फैसला लेती तो उसे जनता को यह समझाना भारी पड़ता कि उसने ऐसा क्यों किया। कूटनीतिक जानकार बताते हैँ कि इसलिए सार्क देशों की यात्रा के बहाने जयशंकर को पाकिस्तान भेजा गया। अब वहां हुई प्रगति के आधार पर दोनों देशों के बीच फिर से बातचीत बहाल करने की सुविधा सरकार को मिल जाएगी।
राजनयिक हलके में यह चर्चा आम है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने जिस तरह अपने शपथग्रहण समारोह में पाकिस्तान के प्रधानमंत्री को बुलाया था उसके पीछे उनकी मंशा यही थी कि अटल बिहार वाजपेयी और परवेज मुशर्रफ की तरह वह भी भारत-पाकिस्तान के संबंधों को सामान्य बनाने का ऐतिहासिक प्रयास कर सकें मगर बीच की घटनाओं ने उनके मंसूबे पर पानी फेर दिया। अब यह उम्मीद जताई जा रही है मोदी अगले वर्ष किसी समय पाकिस्तान की यात्रा करना चाहते हैं और इसलिए जयशंकर को जिम्मेदारी दी गई है कि इस यात्रा के लिए भी वह जमीन तैयार करें। देखना यही है कि जयशंकर अपनी भूमिका में कितनी सफलता हासिल कर सकते हैं।