नेपाल में नए संविधान को लेकर हो रहे बवाल से भारत भी असंतुष्ट
दरअसल, नेपाल में नए संविधान पर बवाल हो रहा है। भारत का मानना है कि सबको साथ लेकर चलने वाला संविधान ही शांति ला पाएगा। लेकिन संविधान बनने के बाद से जिस तरह का विरोध-प्रदर्शन नेपाल में हो रहा है वह चिंता का विषय है। नेपाल का मधेसी समाज पिछले दो महीने से अलग राज्य और सामानुपातिक प्रतिनिधित्व के लिए आंदोलन कर रहा है। इस आंदोलन में 60 से अधिक मधेशियों की जान जा चुकी है और सैकड़ों लोग घायल है। हालात ये हैं कि भारत-नेपाल सीमा पर हजारों ट्रक पेट्रोल, दवा और अन्य सामग्री लेकर खड़े हैं।
माना जा रहा है कि नेपाल भारत से बिगड़े रिश्तों के कारण चीन से नजदीकियां बढ़ा सकता है। जो कि भारत के लिए चिंता का विषय हो सकता है। उपाध्याय ने कहा भी है कि नेपाल को चीन के पाले में जाने के लिए विवश न करे भारत। उन्होने कहा कि जरूरी सामान लेकर जाने वाले ट्रकों के नेपाल न जाने से वहां का जन-जीवन अस्त व्यस्त है। ऐसा तो लड़ाई के हालात में होता है। नेपाल ने भारत से इस स्थिति को जल्द से जल्द ठीक करने की गुजारिश की है। उपाध्याय बताते हैं कि संविधान से असंतुष्ट लोगों से बातचीत के लिए एक पीस कमेटी बनाई गई है। भारत ने कहा है कि सरकार की ओर से कोई नाकेबंदी नहीं की गई है। दोनों पक्षों में बातचीत से समस्या का समाधान होगा। मधेसी फ्रंट का दावा है कि संविधान दक्षिणी नेपाल में रहने वाले मधेसियों और थारू जनजाति को पर्याप्त अधिकार और प्रतिनिधित्व की गारंटी प्रदान नहीं करता।
मधेसी भारत के साथ लगते सीमाई तराई क्षेत्र में रहने वाले भारतीय मूल के लोग हैं जो नेपाल को सात प्रांतों में बांटे जाने का विरोध कर रहे हैं। मधेशियों का कहना है कि भारत के साथ जो बेटी-रोटी का रिश्ता रहा है उसे बरकरार रखा जाए। लेकिन नए संविधान में मधेशियों को वे बातें नहीं मिली। मधेशियों को इस बात का भी गुस्सा है कि संविधान बनाने के लिए गठित अंतरिम समिति की अहम सिफारिशों को खारिज कर दिया गया। संविधान की धारा 28& में इस बात का साफ तौर पर प्रावधान है कि देश के शीर्ष पदों पर केवल नेपालवंशी ही चुने जा सकते हैं। विवाह करके नेपाल आई गैर नेपाली महिलाओं को भी नागरिकता देने की लंबी प्रक्रिया और उन्हें उच्च पदों से वंचित रखने के प्रावधान भी मधेशी अपने खिलाफ मानते हैं। आज भी बड़ी संख्या में मधेशियों की शादी भारत में होती है। रामबाबू राय आउटलुक से कहते हैं कि नेपाल सरकार तानाशाही रवैया अपनाए हुए है। अगर मधेशियों की बात नहीं मानी गई तो आंदोलन और तेज होगा।
नेपाल में खडग प्रसाद शर्मा ओली को नया प्रधानमंत्री चुना गया है। उनके सामने तात्कालिक और बड़ी चुनौती नया संविधान लागू होने के बाद से ही आंदोलन कर रहे मधेसी समुदाय को मनाने की और भारत के साथ तल्खी खत्म करने की है। प्रधानमंत्री बनने से कुछ दिन पूर्व आउटलुक से बातचीत में ओली ने कहा कि भारत से रिश्ते और मजबूत होंगे (पढ़े साक्षात्कार)। दरअसल, दोनों देशों के बीच 1,700 किलोमीटर लंबी खुली सीमा है जिसके दोनों ओर रहने वाले लोग ऐतिहासिक, सांस्कृतिक, धार्मिक और राजनीतिक रूप से बहुत ही घुले-मिले हैं। लेकिन इतिहास बताता है कि रिश्ते हमेशा मधुर नहीं रहे। नेपाल की अर्थव्यवस्था लगभग पूरी तरह से, भारत से आने वाले सामान की आपूर्ति पर टिकी है। नेपाल में लोकतांत्रिक व्यवस्था को स्थापित करने में मदद का श्रेय भी बहुत हद तक भारत को ही जाता है। लेकिन इसके बावजूद नेपाल का एक वर्ग भारत के साथ मजबूत रिश्तों का विरोध करता रहा है।
नेपाल के कई लोग यह कहते हैं कि भारत कूटनीतिक ताकत का प्रयोग इस देश में अपने हितों को साधने के लिए करता है। कई ऐसे समझौते हुए जिनसे नेपाल को नुकसान हो रहा है। इनमें जलसंधि भी है। काम की तलाश में भारत आने वाले बहुत से नेपाली कामगार शिकायत करते हैं कि प्रवेश चौकियों पर भारतीय सीमा सुरक्षा बल के जवान उनसे ठीक बर्ताव नहीं करते हैं। जानकार बताते हैं कि नेपाल के कुछ राजनीतिक दलों द्वारा चीन की ओर झुकाव को लेकर भारत की चिंताओं को जरूरत से ज्यादा तूल दिया जाता है। इसलिए नेपाल के मीडिया का एक वर्ग भी भारत से नाराज रहता है। फिर भी ज्यादातर नेपाली लोगों का मानना है कि कोई भी देश नेपाल के इतने करीब नहीं हो सकता जितना भारत है ञ्चयोंकि उनके बीच बहुत सी समानताएं हैं। लेकिन नए संविधान ने दोनों देशों के बीच तल्खी बढ़ा दी है।