श्रीलंका के नए राष्ट्रपति का बयान, "मैं कोई जादूगर नहीं, आर्थिक संकट से उबारने की सामूहिक जिम्मेदारी का हिस्सा बनूंगा"
श्रीलंका के नए राष्ट्रपति अनुरा कुमारा दिसानायके ने सोमवार को लोकतंत्र को बचाने और सार्वजनिक जीवन से भ्रष्टाचार समाप्त करने के लिए हरसंभव प्रयास करने का संकल्प लिया।
दिसानायके ने चुनाव जीतने के बाद पहली बार देश को संबोधित करते हुए जनादेश का सम्मान करने और शांतिपूर्ण सत्ता हस्तांतरण के लिए पूर्व राष्ट्रपति रानिल विक्रमसिंघे का आभार जताया।
उन्होंने शपथ ग्रहण करने के बाद दिए संबोधन में कहा, ‘‘मैं आपको आश्वस्त करता हूं कि मैं लोकतंत्र को बचाने और नेताओं का सम्मान बहाल करने की दिशा में काम करने के लिए सर्वश्रेष्ठ प्रयास करूंगा क्योंकि लोगों के बीच नेताओं के आचरण को लेकर संदेह है।’’
दिसानायके ने कहा कि श्रीलंका अलग-थलग नहीं रह सकता और उसे अंतरराष्ट्रीय सहयोग की जरूरत है।
उन्होंने कहा कि वह कोई जादूगर नहीं हैं बल्कि उनका उद्देश्य आर्थिक संकट से जूझ रहे देश को ऊपर उठाने की सामूहिक जिम्मेदारी का हिस्सा बनना है।
नवनिर्वाचित राष्ट्रपति ने कहा, ‘‘मैं कोई जादूगर नहीं हूं। मैं इस देश में जन्मा आम नागरिक हूं। मुझमें क्षमताएं और अक्षमताएं हैं। मैं कुछ चीजें जानता हूं और कुछ नहीं जानता। मेरा पहला काम लोगों की प्रतिभाओं का इस्तेमाल करना और इस देश का नेतृत्व करने के लिए बेहतर निर्णय लेना है।’’
उन्होंने कहा, ‘‘मैं सामूहिक जिम्मेदारी में एक योगदानकर्ता बनना चाहता हूं।’’
सफेद रंग का लंबी बाजू वाला अंगरखा और काले रंग की पतलून पहने हुए दिसानायके ने शपथ ग्रहण समारोह के बाद बौद्ध धर्मगुरु से आशीर्वाद लिया।
‘मार्क्सवादी जनता विमुक्ति पेरामुना पार्टी’ के विस्तृत मोर्चे ‘नेशनल पीपुल्स पावर’ के (एनपीपी) नेता दिसानायके ने शनिवार को हुए चुनाव में अपने करीबी प्रतिद्वंद्वी ‘समागी जन बालवेगया’ (एसजेबी) के साजिथ प्रेमदासा को पराजित किया।
यह देश में आर्थिक संकट के कारण 2022 में हुए व्यापक जन आंदोलन के बाद पहला चुनाव था। इस जन आंदोलन में गोटबाया राजपक्षे को अपदस्थ कर दिया गया था।
उनके शपथ ग्रहण से कुछ घंटे पहले प्रधानमंत्री दिनेश गुणवर्धने ने देश में सत्ता हस्तांतरण के तहत अपने पद से इस्तीफा दे दिया।
गुणवर्धने (75) जुलाई 2022 से इस द्वीपीय देश के प्रधानमंत्री पद पर काबिज थे।
गुणवर्धने ने दिसानायके को संबोधित कर लिखे पत्र में कहा कि वह नया राष्ट्रपति निर्वाचित होने के कारण पद से इस्तीफा दे रहे हैं और वह नए मंत्रिमंडल के गठन के अनुकूल माहौल बनाएंगे।
देश के निर्वाचन आयोग को राष्ट्रपति चुनाव में किसी भी उम्मीदवार को जीत के लिए जरूरी 50 प्रतिशत से अधिक वोट नहीं मिलने के बाद रविवार को इतिहास में पहली बार दूसरे दौर की मतगणना कराने का आदेश देना पड़ा था।
दिसानायके ने 57.4 लाख वोट हासिल करते हुए चुनाव जीत लिया जबकि प्रेमदासा को 45.3 लाख वोट मिले।
चुनाव के दौरान दिसानायके के भ्रष्टाचार विरोधी संदेश और राजनीतिक संस्कृति बदलने के वादे ने युवा मतदाताओं को आकर्षित किया जो आर्थिक संकट के बाद से राजनीतिक व्यवस्था बदलने की मांग करते रहे हैं।
‘एकेडी’ के नाम से मशहूर दिसानायके का शीर्ष पद तक पहुंचना उनकी आधी सदी पुरानी जेवीपी पार्टी के लिए एक उल्लेखनीय उपलब्धि है जो लंबे समय तक हाशिये पर रही है। वह राष्ट्राध्यक्ष बनने वाले श्रीलंका की किसी मार्क्सवादी पार्टी के पहले नेता हैं।
एनपीपी की लोकप्रियता 2022 के बाद तेजी से बढ़ी है। उसने 2019 के आखिरी राष्ट्रपति चुनाव में महज तीन फीसदी वोट ही हासिल किए थे।
नॉर्थ सेंट्रल प्रांत में ग्रामीण थम्बट्टेगामा के रहने वाले दिसानायके ने केलानिया विश्वविद्यालय से विज्ञान विषय में स्नातक किया है। वह 1987 में भारत विरोधी विद्रोह के चरम के दौरान जेवीपी में शामिल हुए थे।
वह 2000 के संसदीय चुनाव में जेवीपी की ओर से संसद पहुंचे। वह श्रीलंका फ्रीडम पार्टी के साथ गठबंधन में 2004 के चुनाव के बाद कुरुनेगाला जिले से फिर से संसद पहुंचे और कृषि मंत्री बने।
दिसानायके 2008 में जेवीपी के संसदीय समूह के नेता बने। वह 2010 के संसदीय चुनाव में कोलंबो जिले से फिर सांसद बने और 2014 में पार्टी प्रमुख बने।
वह 2015 में एक बार फिर कोलंबो से जीते और 2019 तक मुख्य विपक्षी सचेतक पद पर रहे।
जेवीपी ने 2019 में अपना नाम बदलकर एनपीपी रख लिया। ऐतिहासिक रूप से उसने अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष कार्यक्रमों का विरोध किया है लेकिन हाल ही में उसने अपनी शर्तों पर इसका समर्थन किया।