बढ़ा हुआ मतदान किसी एक राजनैतिक दल और उसके उम्मीदवार के पक्ष में जा सकता है
छत्तीसगढ़ में इस बार का लोकसभा चुनाव कई मायनों में अलग-सा रहा। एक ओर चुनाव के दौरान राज्य में माओवाद के खिलाफ बड़े ऑपरेशन चले। दूसरा और सबसे अहम यह कि लगभग सभी राज्यों से जब कम मतदान प्रतिशत की खबरें आ रही थीं, छत्तीसगढ़ में सबसे ज्यादा मतदान हुआ। माओवाद प्रभावित लोकसभा सीटों पर भी मतदान का प्रतिशत अधिक रहा। प्रदेश में तीन चरणों में हुए मतदान में कुल 72.8 प्रतिशत मतदाताओं ने अपने मताधिकार का प्रयोग किया। मुख्य निर्वाचन पदाधिकारी रीना बाबासाहेब कंगाले के अनुसार यह प्रदेश में हुए अब तक के लोकसभा चुनावों में मतदान का सर्वाधिक प्रतिशत है।
कुल मिलाकर प्रदेश में मतदान में 1.31 प्रतिशत की बढ़ोतरी हुई है। तीसरे और अंतिम चरण में 7 मई को 71.98 प्रतिशत मतदान हुआ। इससे पहले 26 अप्रैल को दूसरे चरण में तीन सीटों पर 72.13 प्रतिशत मतदान हुआ, जो 2019 की तुलना में 1.3 फीसदी ज्यादा है। 19 अप्रैल को माओवाद प्रभावित बस्तर लोकसभा सीट के लिए 68.30 फीसदी वोटिंग हुई, जो पिछले लोकसभा चुनाव से 2.25 फीसदी ज्यादा है। पंद्रह विधानसभा क्षेत्र ऐसे हैं जहां मतदान 80 प्रतिशत से भी अधिक रहा है। ऐसी लोकसभा सीटों में सरगुजा, रायपुर, रायगढ़, कोरबा, दुर्ग और बस्तर हैं।
इन 15 विधानसभा क्षेत्रों में से आठ में कांग्रेस के विधायक हैं जबकि सात में भाजपा के विधायक हैं। सबसे ज्यादा मतदान वाले विधानसभा क्षेत्रों में कांग्रेस ने बाजी मारी। मतलब कि बढ़ता मतदान किसी एक राजनैतिक दल और उसके उम्मीदवार के पक्ष में जा सकता है। यही नहीं, 15 में से छह विधानसभाएं ऐसी रहीं जहां महिला मतदाताओं ने पुरुषों के मुकाबले ज्यादा मतदान किया। 80 प्रतिशत से अधिक मतदान वाले विधानसभा क्षेत्र में महिला मतदाताओं ने ज्यादा मतदान किया। इनमें भरतपुर सोनहत, खुज्जी, बस्तर, बिंद्रानवागढ़, धर्मजयगढ़ और लैलूंगा शामिल हैं।
दिलचस्प यह भी है कि ज्यादातर अधिक मतदान वाले वे संसदीय क्षेत्र भी हैं जहां भाजपा और कांग्रेस के दिग्गजों ने सभाएं कीं। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, कांग्रेस नेता राहुल गांधी और मुख्यमंत्री विष्णुदेव साय ने बहुत सभाएं कीं। मुख्यमंत्री मध्य प्रदेश, ओडिशा और झारखंड में गए। साय ने 53 दिन में कुल 117 सभाएं कीं। उन्होंने कांग्रेस और ‘इंडिया’ गठबंधन पर हमले किए और मोदी सरकार की योजनाओं और गारंटी की चर्चा की। प्रधानमंत्री ने 8 अप्रैल को छत्तीसगढ़ में पहली सभा बस्तर के आमाबेल क्षेत्र में की। राहुल गांधी ने 13 अप्रैल को बस्तर विकासखंड में सभा की।
जानकारों का कहना है कि लोकसभा चुनाव परिणाम के बाद छत्तीसगढ़ में राजनीतिक हलचलें तेज हो जाएंगी। साय सरकार मंत्रिमंडल में विस्तार के साथ कई राजनैतिक नियुक्तियां शुरू करने जा रही है। राजनैतिक हलकों में कहा जा रहा है कि सबसे पहले निगम-मंडल और आयोगों में नियुक्तियां की जाएंगी।
प्रदेश में लगभग 50 से ज्यादा निगम-मंडल, आयोग हैं जिनमें राजनैतिक नियुक्तियां की जानी हैं। इनमें 250 से ज्यादा नेताओं को समाहित किया जा सकता है। निगम-मंडल आयोग के अध्यक्षों को कैबिनेट मंत्री का दर्जा दिया जाता है। इसके साथ ही उन्हें वेतन-भत्ता, वाहन, आवास आदि की सुविधा दी जाती है।
छत्तीसगढ़ में भाजपा की सरकार बनते ही कांग्रेस सरकार के 21 निगम-मंडल और आयोगों के अध्यक्ष समेत 32 नेताओं की नियुक्तियां रद्द कर दी गई थीं। कुछ निगम-मंडल के पदाधिकारियों ने इस्तीफा दे दिया था। इसमें खादी ग्रामोद्योग बोर्ड, आरडीए समेत अन्य निगम मंडल के सदस्य शामिल थे। आरडीए के कुछ सदस्यों ने तो परिणाम आने के साथ ही अपना त्यागपत्र दे दिया था। कुछ ने भूपेश बघेल के मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा देने के बाद अपना चेयरमैन पद छोड़ दिया था। साय सरकार अपने 13 से ज्यादा विधायकों को संसदीय सचिव बनाने की तैयारी कर रही है। उन्हें संसदीय सचिव बनाकर मुख्यमंत्री समेत सभी मंत्रियों के साथ अटैच किया जाएगा। कांग्रेस शासनकाल में 15 विधायकों को संसदीय सचिव बनाया गया गया था। कई मायनों में लोकसभा चुनाव परिणाम के साथ ही छत्तीसगढ़ जल्द ही एक बार फिर से सुर्खियों में बनने जा रहा है।