याद रहेगी मां केे किरदारों में ममता भरने वाली छवि
वैसे इन दिनों वे हिंदी फिल्मों में ज्यादा सक्रिय नहीं थी। पर उनकी उम्र और सेहत को देखते हुए ऐसा नहीं लगता था कि वे इतनी जल्दी जिंदगी से अलविदा कह देंगी। कुछ समय से वे हिंदी फिल्मों में कम ही नजर आ रही थीं, लेकिन दर्शकों के दिमाग से उनकी छवि नहीं मिटी थी। इसलिए सभी को झटका लगना लाजिमी था।
मराठी रंगमंच की कलाकार मंदाकिनी भाडभडे के घर 1958 में पैदा हुई रीमा लागू का घर का नाम नयन भाडभडे था, बाद में मराठी फिल्मों के अभिनेता विवेक लागू से शादी करने के बाद वे रीमा लागू के नाम से जानी जाने लगीं। शादी के कुछ सालों बाद वे अपने पति विवेक से भी अलग हो गईं। उनकी एक बेटी मृणमयी है जो मराठी रंगमंच जगत में अभिनेत्री और निर्देशक के रूप में सक्रिय है।
अभिनय का सफर
रीमा लागू ने अपने अभिनय करियर की शुरुआत रंगमंच से की। इसके बाद वे व्यावसायिक रंगमंच से जुड़ी। हिंदी फिल्मों में उनकी शुरुआत शशि कपूर, राजबब्बर, रेखा स्टारर फिल्म कलियुग (1980) से हुई थी। इसके बाद आक्रोश, नासूर, हमारा खानदान उनकी चर्चित फिल्मेें रही। फिर 1988 में आई ‘कयामत से कयामत तक’ और उसके बाद ‘मैंने प्यार किया’ ।
मां के रोल से परहेज नहीं
उन्हें हिंदी फिल्म इंडस्ट्री ने मां के रूप में स्थापित कर दिया। हालांकि, उस समय उनकी उम्र करीब 30 साल ही थी। पर वे रंगमंच की कलाकार थी, इसलिए उन्होंने मां के रोल करने से कभी परहेज नहीं किया। हिंदी फिल्मों में जैसे-जैसे रोल मिलते गए, वो उनमें ढलती गई। इसके बाद ‘साजन’, ‘ये दिल्लगी’, ‘हम आपके हैं कौन’, ‘राजा बाबू’, जैसी कई फिल्मों में उन्होंने हीरो की मां के रोल अदा किए। सन 1994 में सचिन उन्हें स्टार प्लस पर प्रसारित धारावहिक ‘तू-तू मैं-मैं’ में सास के रोल में लेकर छोटे पर्दे पर आए। सुप्रिया पिलगांवकर के साथ उनकी सास देवकी वर्मा वाला किरदार खूब लोकप्रिय हुआ। इसके लिए उन्हें बेस्ट कॉमिक एक्ट्रेस का इंडियन टेली अवार्ड भी मिला। फिल्म अभिनेता सलमान के साथ उन्होंने मैंने प्यार किया से मां की भूमिका में खूबी लोकप्रियता पाई। इसके बाद ‘साजन’ और ‘हम आपके हैं कौन’ में भी वे सलमान की मां बनी।
याद रहेगी ‘वास्तव की शांता
अब तक वे संभ्रांत घरों के लड़कों की मां कर रही थीं, लेकिन मराठी रंगमंच के कलाकार महेश मांजरेकर ने उन्हें ‘वास्तव’ (1999) में संजय दत्त की मां का रोल दिया। जिन्होंने ‘वास्तव देखी है, उन्हें याद होगा कि कैसे एक मांं अपने दिल पर पत्थर रखकर बेटे को गोली मार देती है। फिल्म बेहद मकबूल हुई और शांता के रोल ने एक बार फिर सिनप्रेमियों को मदर इंडिया की याद दिला दी। महेश मांजरेकर की ही गोविंदा स्टारर फिल्म जिस देश में गंगा रहता है में वे गोविंदा की पालनहार मां के रोल में भी खूब जमी। उन्हें मैंने प्यार किया (1990), आशिकी (1991), हम आपके हैं कौन (1995) और वास्तव (1999) चार बार बेस्ट सर्पोटिंग का अवार्ड मिला।
अंत तक रही एक निष्ठावान कलाकार
वे एक सच्ची कलाकार थीं, जिनमें अपने काम के प्रति निष्ठा कूट-कूट कर भरी हुई थी। उन्होंने कुछ समय पहले महेश भट्ट निर्मित धारावाहिक ‘नामकरण’ में दमयंती का किरदार किया। एक दिन वे शूटिंग कर रही थीं। एक सीन में उनकी साड़ी को थोड़ा जलाना था, लेकिन कॉटन की साड़ी ने तुंरत आग पकड़ ली। इसे बुझाते हुए उनका हाथ जल गया पर उन्होंने शूटिंग नहीं रूकने दी और अपना काम निपटाती रही।
(लेखक मुंबई में पटकथा लेखक हैं।)