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09 May 2016

जश्न-ए-अदब और उर्दू की चिंता

जश्न-ए-अदब के पांचवे सत्र में शिरकत करने वाले प्रसिद्ध लेखकों और शायरों में पाकिस्तान से आए कासमी भी शामिल थे। इस साल के शहंशाह-ए-तंज-ओ-मिजा पुरस्कार से नवाजे गए कासमी ने कहा कि उर्दू भाषा को उसकी शुरूआती ऊंचाइयों तक वापस पहुंचाना संभव है क्योंकि इसकी जड़ें भारत और पाकिस्तान दोनों जगहें गहराई तक जमी हैं।

समारोह में भारतीय फिल्मकार मुजफ्फर अली भी मौजूद थे। उन्होंने इस बात पर चिंता जाहिर की कि फिल्में दर्शकों के लिए भाषाई सूक्ष्मता लेकर आने का समय और स्थान नहीं दे रही हैं। सिनेमा को हकीकत के करीब होना होता है, जिससे हमारे सामने यह सवाल उठता है कि क्या सौंदर्य शास्त्र किरदार से बड़ा है या बात इससे उलट है? हम हवा के रुख के विपरीत चल रहे हैं लेकिन हमें उर्दू के भविष्य को लेकर उम्मीद नहीं छोड़नी चाहिए।

प्रसिद्ध शायर असगर नदीम सईद ने सिनेमा में उर्दू भाषा की खराब होती स्थिति पर टिप्पणी करते हुए कहा, चूंकि समाज सिनेमा की भाषा का प्रतिबिंब है, ऐसे में सिनेमा वही दिखाता है, जो समाज देखना चाहता है। 

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TAGS: jashn-e-adab, muzaffar ali, ata-al-haqe kasmi, जश्न-ए-अदब, मुजफ्फर अली, अता-उल-हक कासमी
OUTLOOK 09 May, 2016
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